बाराबंकी: तकरीबन डेढ़ महीने से लॉकडाउन के चलते मजदूरी बंद होने से परेशान मजदूरों को पहले दिन काम मिला तो वे भागे चले आये. यह इत्तेफाक ही है कि जिस 'मजदूर दिवस' के दिन उनकी छुट्टी होनी चाहिए, उसी दिन उन्हें काम मिला. काम बंद होने के चलते आर्थिक तंगी से जूझ रहे मजदूरों को ये काम डूबते को तिनके के सहारे जैसा लगा. इन्हें मजदूर दिवस में कोई दिलचस्पी नहीं है, इन्हें तो बस दो जून की रोटी का इंतजाम करना है.
कोरोना संकट की मार सबसे ज्यादा मजदूर तबके पर पड़ी है. रोज कमाने और खाने वाले मजदूरों की कमर लॉकडाउन ने तोड़ कर रख दी है. पिछले डेढ़ महीने से इनकी मजदूरी छिन गई है. घर की पूंजी खत्म हो गई है. यहां तक कि तमाम मजदूर कर्जदार हो गए हैं. शुक्रवार को पहले दिन काम मिला तो वे दौड़े चले आये. लॉकडाउन के दौरान मजदूरों का ये संघर्ष 1886 से किसी तरह कम नहीं है.
आज से 134 वर्ष पहले 8 घण्टे से ज्यादा काम न करने के लिए आंदोलन कर रहे मजदूरों को पुलिस की गोलियों का शिकार होना पड़ा था. इस बार लॉकडाउन में मजदूर फंसे हैं. उनकी रोजी छिन गई है. परिवार पालना मुश्किल हो रहा है.
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हालांकि प्रदेश सरकार ने ऐसे तमाम श्रमिकों को एक-एक हजार रुपये देकर उनकी मुश्किलें कम करने की कोशिश की है, लेकिन ये नाकाफी है. मजदूरों का कहना है कि घर में खाने को कुछ नहीं बचा है. काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि ब्याज पर रुपये कर्ज लेकर किसी तरह काम चला रहे हैं.