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बाराबंकी को पहचान देने वाली 'चन्द्रकला' की क्या है खासियत, जानने के लिये पढ़ें

यूपी के बाराबंकी की चंद्रकला की पहचान दूर-दूर तक है. यहां के लोग रिश्तेदारों और खास मेहमानों को चंद्रकला खिलाना नहीं भूलते. आप सोच रहे होंगे कि क्या है ये चंद्रकला, और आखिरकार क्यों इसकी पहचान दूर-दूर तक है.

प्रसिद्ध मिठाई चंद्रकला
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Published : Aug 11, 2019, 1:54 PM IST

Updated : Aug 11, 2019, 3:18 PM IST

बाराबंकी: पवित्र धाम देवा, महादेवा, शायर खुमार, हाकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू के अलावा बाराबंकी की पहचान एक और चीज से होती है. यहां की स्पेशल मिठाई चंद्रकला की पहचान दूर-दूर तक है. यहां के लोग अपने रिश्तेदारों और खास मेहमानों को चंद्रकला खिलाना नहीं भूलते. तकरीबन छह दशक से चंद्रकला यहां दूसरी मिठाइयों पर भारी है शायद यही वजह है कि पहले जहां ये चुनिंदा दुकानों पर ही बना करता था वहीं अब इसके कारीगर बढ़ने लगे हैं.

जानिए चंद्रकला की खासियत.

ऐसे बनाई जाती है 'चंद्रकला' मिठाई

  • पहले मैदा में पानी और घी मिलाकर उसे देर तक गूंथा जाता है.
  • फिर उसकी छोटी छोटी टिकिया बना ली जाती हैं.
  • एक टिकिया में पहले से ही तैयार खोया, मेवा और इलायची के मिश्रण को रखा जाता है.
  • ऊपर से दूसरी टिकिया रखकर इसको बंद कर दिया जाता है.
  • उसके बाद इसको किनारे-किनारे बड़े ही खास ढंग से तैयार कर डिजाइन दी जाती है.
  • इन कच्चे चंद्रकला को कढ़ाई में डालकर तेल या घी में फ्राई किया जाता है.
  • आंच तेज न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है और इसे सुनहरा होने तक तला जाता है.
  • फिर इनको निकालकर पहले से ही तैयार शक्कर की गाढ़ी चाशनी में डाल दिया जाता है.
  • 10 से 15 मिनट बाद इसे चाशनी से निकाल लिया जाता है.
  • इस तरह चंद्रकला बनकर तैयार हो जाती है.

तीन पीढ़ियों पहले चंद्रकला बनाने की शुरुआत सफदरगंज से हुई थी. फिर हमारा परिवार मसौली आ गया और तब से यहीं पर दुकान है. चंद्रकला जैसे मिठाई दूसरी जगह कहीं नहीं बनती लेकिन इसकी डिमांड देखकर अब तमाम दुकानें खुल गई हैं.
विवेकानंद, दुकान के मालिक

बाराबंकी: पवित्र धाम देवा, महादेवा, शायर खुमार, हाकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू के अलावा बाराबंकी की पहचान एक और चीज से होती है. यहां की स्पेशल मिठाई चंद्रकला की पहचान दूर-दूर तक है. यहां के लोग अपने रिश्तेदारों और खास मेहमानों को चंद्रकला खिलाना नहीं भूलते. तकरीबन छह दशक से चंद्रकला यहां दूसरी मिठाइयों पर भारी है शायद यही वजह है कि पहले जहां ये चुनिंदा दुकानों पर ही बना करता था वहीं अब इसके कारीगर बढ़ने लगे हैं.

जानिए चंद्रकला की खासियत.

ऐसे बनाई जाती है 'चंद्रकला' मिठाई

  • पहले मैदा में पानी और घी मिलाकर उसे देर तक गूंथा जाता है.
  • फिर उसकी छोटी छोटी टिकिया बना ली जाती हैं.
  • एक टिकिया में पहले से ही तैयार खोया, मेवा और इलायची के मिश्रण को रखा जाता है.
  • ऊपर से दूसरी टिकिया रखकर इसको बंद कर दिया जाता है.
  • उसके बाद इसको किनारे-किनारे बड़े ही खास ढंग से तैयार कर डिजाइन दी जाती है.
  • इन कच्चे चंद्रकला को कढ़ाई में डालकर तेल या घी में फ्राई किया जाता है.
  • आंच तेज न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है और इसे सुनहरा होने तक तला जाता है.
  • फिर इनको निकालकर पहले से ही तैयार शक्कर की गाढ़ी चाशनी में डाल दिया जाता है.
  • 10 से 15 मिनट बाद इसे चाशनी से निकाल लिया जाता है.
  • इस तरह चंद्रकला बनकर तैयार हो जाती है.

तीन पीढ़ियों पहले चंद्रकला बनाने की शुरुआत सफदरगंज से हुई थी. फिर हमारा परिवार मसौली आ गया और तब से यहीं पर दुकान है. चंद्रकला जैसे मिठाई दूसरी जगह कहीं नहीं बनती लेकिन इसकी डिमांड देखकर अब तमाम दुकानें खुल गई हैं.
विवेकानंद, दुकान के मालिक

Intro:बाराबंकी ,11 अगस्त । पवित्र धाम देवां, महादेवा ,शायर खुमार, हाकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू के अलावा बाराबंकी की पहचान एक और चीज से होती है । वह है यहां की स्पेशल मिठाई ।जी हां यहां के चंद्रकला की पहचान दूर-दूर तक है । यहां के लोग अपने रिश्तेदारों और खास मेहमानों को चंद्रकला खिलाना नहीं भूलते ।


Body:वीओ - गोल मटोल खूबसूरत सी दिखने वाली इस मिठाई का नाम है चंद्रकला । चांद जैसी गोल होने के चलते ही इसे चंद्रकला कहा जाता है ।देवा ,महादेवा ,शायर खुमार और हाकी खिलाड़ी केडी सिंह की तरह चंद्रकला ने भी बाराबंकी की पहचान कराई है । इस मिठाई के लाखों दीवाने हैं । बाराबंकी से गुजरने वाला हर कोई इसको खाना नहीं भूलता ।
बाईट - रवी तिवारी , चंद्रकला के शौकीन

वीओ - आइए जानते हैं यह कैसे तैयार होता है । पहले मैदा में पानी और घी मिलाकर उसे देर तक गूंथा जाता है फिर उसकी छोटी छोटी टिकिया बना ली जाती हैं । एक टिकिया में पहले से ही तैयार खोया, मेवा और इलायची के मिश्रण को रखा जाता है ।ऊपर से दूसरी टिकिया रखकर इसको बंद कर दिया जाता है । उसके बाद इसको किनारे किनारे बड़े ही खास ढंग से गोठ कर डिजाइन दी जाती है ।
बाईट - रामकुमार , कारीगर

वीओ - इन कच्चे चंद्रकला को कढ़ाई में डालकर तेल या घी में फ्राई किया जाता है । आंच तेज ना हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है । गोल्डन होने तक इसको तला जाता है । फिर इनको निकाल कर पहले से ही तैयार शकर की गाढ़ी चाशनी में डाल दिया जाता है । दस से 15 मिनट बाद इनको चाशनी से निकाल लिया जाता है । इस तरह चंद्रकला बनकर तैयार हो गया ।
बाईट - दिलीप , कारीगर

वीओ - मसौली स्थित लक्ष्मी स्वीट के मालिक बताते हैं कि तीन पीढ़ियों पहले चंद्रकला बनाने की शुरुआत सफदरगंज से हुई थी। फिर उनका परिवार मसौली आ गया और तब से यही पर वह दुकान कर रहे हैं । इनका कहना है कि चंद्रकला जैसे मिठाई दूसरी जगह कहीं नहीं बनती लेकिन इसकी डिमांड देख अब तमाम दुकानें खुल गई हैं ।
बाईट - विवेकानंद , दुकान मालिक


Conclusion:तकरीबन छह दशक से चंद्रकला यहां दूसरी मिठाइयों पर भारी है शायद यही वजह है कि पहले जहां ये चुनिंदा दुकानों पर ही बना करता था वहीं अब इसके कारीगर बढ़ने लगे हैं।
रिपोर्ट - अलीम शेख बाराबंकी
9454661740
Last Updated : Aug 11, 2019, 3:18 PM IST
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