बाराबंकीः लगातार एक के बाद एक जल निगम के कामों को सरकार ने दूसरी संस्थाओं को दे दिए जाने से निगम के कर्मचारी खासे दुखी हैं. पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन योजना का काम भी दूसरी संस्थाओं को दे दिए जाने से कर्मचारियों को अब निगम के अस्तित्व पर ही खतरा महसूस होने लगा है. पिछले 6 महीनों से कर्मचारियों को वेतन तक नहीं मिला. इसके चलते इनके परिवार भुखमरी के दौर से गुजर रहे हैं.
अस्तित्व को लेकर खौफ
वर्ष 1975 से पहले जल निगम स्वायत्त शासन अभियंत्रण विभाग था. वर्ल्ड बैंक से लोन लेने के लिए इसका नाम बदलकर जल निगम कर दिया गया. जल निगम पर नगरीय और ग्रामीण पेयजल, सीवरेज, ड्रेनेज और नदी प्रदूषण नियंत्रण संबंधी कार्यों का दायित्व था. इन कामों के बदले में जल निगम को 22 फीसदी सेन्टेज राशि मिलती थी. बाद में इसे 1997 में और घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया. किसी तरह इसी सेन्टेज की रकम से निगम के कर्मचारियों का वेतन और दूसरे खर्चे निकलते थे. धीरे-धीरे इनके कामों को इनसे छीन लिया गया .इससे कामों के बदले मिलने वाली सेन्टेज की राशि कम हो गई और वेतन के लाले पड़ने लगे.
बकाया है सेन्टेज कि 21 सौ करोड़ रुपये
जल निगम ने पूर्व में किए गए कार्यों की सेन्टेज की 21 सौ करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि शासन पर बकाया हैं. तमाम आंदोलनों और माननीय हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी शासन से अभी तक ये धनराशि जल निगम को नहीं मिल पाई.
निश्चय ही निगम की गलत नीतियों का खामियाजा कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में सरकार को निगम के लिए कोई ठोस योजना बनानी होगी जिससे कि इससे जुड़े कर्मचारियों को वेतन के लाले न पड़ें.