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बाराबंकी: वकालत छोड़ शुरू की फूलों की खेती, आज कमा रहे लाखों - barabanki

यूपी के बाराबंकी जिले में वकालत की पढ़ाई करने के बाद मोइनुद्दीन ने फूलों की खेती करने का फैसला लिया. खेती से वो आज लाखों रुपये कमा रहे हैं. मोइनुद्दीन को राज्य सरकार सम्मानित भी कर चुकी है.

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किसान मोइनुद्दीन
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Published : Jan 30, 2020, 4:52 AM IST

Updated : Jan 30, 2020, 12:15 PM IST

बाराबंकी: वकालत की पढ़ाई करने के बाद जिले के किसान मोइनुद्दीन ने खेती करने का फैसला लिया था. जिसके बाद वह हजारों किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं. दरअसल परंपरागत खेती छोड़ फूलों की खेती करके देश-दुनिया में मोइनुद्दीन ने नाम कमाया. वहीं फूलों की खेती के लिए मोइनुद्दीन को राज्य सरकारे सम्मानित भी कर चुकी हैं.

ईटीवी भारत ने किसान मोइनुद्दीन से की बातचीत.


जिलाधिकारी आवास से लेकर संसद तक के गलियारों में जिन फूलों की महक पहुंचती है, उन्हें उगाने का श्रेय किसान मोइनुद्दीन को जाता है. किसान मोइनुद्दीन ने कानून की पढ़ाई करने के बावजूद अपने पुश्तैनी पड़ी जमीन पर विदेशी फूलों की खेती करके सबको हैरानी में डाल दिया. मोइनुद्दीन के इस काम की सराहना जिला उद्यान विभाग भी करता है. मोइनुद्दीन ने न सिर्फ अपने खेतों में रंग-बिरंगे विदेशी फूल उगाकर गांव के चारों तरफ उसकी महक बिखेरी, बल्कि उस महक के साथ-साथ अब तक हजारों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं. शायद यही वजह है कि आज गांव के रोजगार पाए लोगों ने मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मान लिया है. गांव वाले अब मोइनुद्दीन को प्रधान जी कहकर बुलाते हैं और उन्होंने इन्हें प्रधान भी चुन लिया है.

मोइनुद्दीन को मिल चुके हैं कई पुरस्कार
देश के प्रधानमंत्री से लेकर, कई राज्यों की सरकार मोइनुद्दीन को अलग-अलग प्रकार के पुरस्कारों से नवाज चुकी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने मोइनुद्दीन को किसान आयोग का सदस्य बनाया है. मोइनुद्दीन को उत्तर प्रदेश का पहला पाली हाउस लगाने का श्रेय भी जाता है.

पढ़ें: कस्तूरबा विद्यालयों की दो दिवसीय जिलास्तरीय प्रतियोगिता का रंगारंग आगाज

अन्य किसान भी हुए मोइनुद्दीन से प्रेरित
किसान मोइनुद्दीन ने सबसे पहले हालैंड के जरबेरा फूल की खेती की शुरुआत की. उसके बाद आज मोइनुद्दीन कई प्रकार के विदेशी फूलों की खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं. इनके इस प्रयास से गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी और राज्य के अन्य जिलों के किसान भी इस प्रकार की खेती से जुड़ चुके हैं. शुरुआत में फूल की खेती कम थी तो, लखनऊ में ही फूल बिक जाते थे. वहीं जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा फूलों को बड़े महानगरों में भेजने की आवश्यकता पड़ने लगी.

बाराबंकी: वकालत की पढ़ाई करने के बाद जिले के किसान मोइनुद्दीन ने खेती करने का फैसला लिया था. जिसके बाद वह हजारों किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं. दरअसल परंपरागत खेती छोड़ फूलों की खेती करके देश-दुनिया में मोइनुद्दीन ने नाम कमाया. वहीं फूलों की खेती के लिए मोइनुद्दीन को राज्य सरकारे सम्मानित भी कर चुकी हैं.

ईटीवी भारत ने किसान मोइनुद्दीन से की बातचीत.


जिलाधिकारी आवास से लेकर संसद तक के गलियारों में जिन फूलों की महक पहुंचती है, उन्हें उगाने का श्रेय किसान मोइनुद्दीन को जाता है. किसान मोइनुद्दीन ने कानून की पढ़ाई करने के बावजूद अपने पुश्तैनी पड़ी जमीन पर विदेशी फूलों की खेती करके सबको हैरानी में डाल दिया. मोइनुद्दीन के इस काम की सराहना जिला उद्यान विभाग भी करता है. मोइनुद्दीन ने न सिर्फ अपने खेतों में रंग-बिरंगे विदेशी फूल उगाकर गांव के चारों तरफ उसकी महक बिखेरी, बल्कि उस महक के साथ-साथ अब तक हजारों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं. शायद यही वजह है कि आज गांव के रोजगार पाए लोगों ने मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मान लिया है. गांव वाले अब मोइनुद्दीन को प्रधान जी कहकर बुलाते हैं और उन्होंने इन्हें प्रधान भी चुन लिया है.

मोइनुद्दीन को मिल चुके हैं कई पुरस्कार
देश के प्रधानमंत्री से लेकर, कई राज्यों की सरकार मोइनुद्दीन को अलग-अलग प्रकार के पुरस्कारों से नवाज चुकी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने मोइनुद्दीन को किसान आयोग का सदस्य बनाया है. मोइनुद्दीन को उत्तर प्रदेश का पहला पाली हाउस लगाने का श्रेय भी जाता है.

पढ़ें: कस्तूरबा विद्यालयों की दो दिवसीय जिलास्तरीय प्रतियोगिता का रंगारंग आगाज

अन्य किसान भी हुए मोइनुद्दीन से प्रेरित
किसान मोइनुद्दीन ने सबसे पहले हालैंड के जरबेरा फूल की खेती की शुरुआत की. उसके बाद आज मोइनुद्दीन कई प्रकार के विदेशी फूलों की खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं. इनके इस प्रयास से गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी और राज्य के अन्य जिलों के किसान भी इस प्रकार की खेती से जुड़ चुके हैं. शुरुआत में फूल की खेती कम थी तो, लखनऊ में ही फूल बिक जाते थे. वहीं जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा फूलों को बड़े महानगरों में भेजने की आवश्यकता पड़ने लगी.

Intro: बाराबंकी, 29 जनवरी। वकालत की पढ़ाई करने के बाद मोइनुद्दीन साहब ने किया खेती करने का फैसला . आज हजारों किसानों के लिए है प्रेरणा स्रोत . परंपरागत खेती छोड़ फूलों की खेती करके देश - दुनिया में कमाया नाम. देश के कई राज्य सरकारों ने इस किसान को किया है सम्मानित. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान , 2013 वाइब्रेंट गुजरात में इन्हें दे चुके हैं गुजरात का बेस्ट फार्मर अवार्ड. उत्तर प्रदेश के किसान कमीशन में है मेंबर. 2019 में प्रधानमंत्री के साथ किसानों की आय दोगुनी कैसे हो इस पर रख चुके हैं विचार.
स्वभाव से संघर्षशील और इरादों से मजबूत मोइनुद्दीन साहब ने, खेती किसानी करने वाले युवाओं को किया है प्रेरित. इनके सफल प्रयास से पहले लखनऊ और अब देश के बड़े महानगर जैसे - दिल्ली , मुंबई में भी बाराबंकी के फूलों की खुशबू महकती है. देश के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और संसद भवन में भी महकती है बाराबंकी के फूलों की खुशबू.
मुख्य रूप से हालैंड के जरबेरा फूल और ग्लाइडररस फूल की खेती की जाती है.


Body:जिलाधिकारी आवास से लेकर संसद तक के गलियारों में जिन फूलों की महत्व पहुंचती है, उन्हें उगाने का श्रेय मोइनुद्दीन को जाता है . मोइनुद्दीन साहब ने कानून की पढ़ाई करने के बावजूद अपने पुश्तैनी पड़ी जमीन पर विदेशी फूलों गाकर सबको हैरानी में डाल दिया . इनके इस कार्य को जिला उद्यान विभाग भी सराहना करता है. मोइनुद्दीन साहब ने न सिर्फ अपने खेतों में रंग-बिरंगे विदेशी फूल उगा कर गांव के चारों तरफ उसकी महक बिखेरी , बल्कि उस महक के साथ-साथ अब तक हजारों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं. शायद यही वजह है कि आज गांव के रोजगार पाए लोगों ने मोइनुद्दीन को अपना आदर्श मान लिया है. गांव वाले अब मोइनुद्दीन को प्रधान जी कहकर बुलाते हैं, और उन्होंने इन्हें प्रधान भी चुन लिया है.
देश के प्रधानमंत्री से लेकर, कई राज्यों की सरकार ने इन्हें अलग-अलग प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें किसान आयोग का सदस्य बनाया है. मोइनुद्दीन साहब को उत्तर प्रदेश का पहला पाली हाउस लगाने का श्रेय जाता है. इन्होंने ही सबसे पहले हालैंड के जरबेरा फूल की खेती की शुरुआत की . उसके बाद आज यह कई प्रकार के विदेशी फूलों की खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं. इनके इस प्रयास से गोंडा, बहराइच ,बलरामपुर ,सीतापुर ,लखीमपुर खीरी और राज्य के अन्य जिले के किसान भी इस प्रकार की खेती से जुड़ चुके हैं.
शुरुआत में फूल की खेती कम थी तो, लखनऊ में ही इस प्रकार के फूल बिक जाते थे. लेकिन जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा इसे बड़े महानगरों में भेजने की आवश्यकता पड़ी . पहले तो लखनऊ से दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में भेजने का कार्य लगातार किया जाता रहा. जिसमें उन्हें कई बार दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता था .
अपने गांव के नजदीकी स्टेशन फतेहपुर पर गाड़ी बहुत कम समय रुकती थी, जिससे वह यहां फूल ट्रेन पर नहीं लाद पाते थे. लेकिन उन्होंने इसके लिए रेलवे के अधिकारियों से बात किया, रेलवे मंत्रालय में बात की, जिसके कारण फतेहपुर में अब गाड़ियों का 10 मिनट स्टॉपेज हो गया. जिससे बाराबंकी के फूलों की खुशबू दिल्ली - मुंबई सहित देश के अन्य महानगरों में महसूस की जाने लगी.
आज बाराबंकी के फूलों की खुशबू संसद से लेकर देश के बड़े महानगरों में फैली हुई है ,और इसकी पहचान बाराबंकी के फूलों के नाम पर की जाती है. जिसका पूरा श्रेय बाराबंकी शहर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटे से गांव दफेदारपुरवा के मोइनुद्दीन साहब को जाता है.


Conclusion:ढ़धघदघ
Last Updated : Jan 30, 2020, 12:15 PM IST
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