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खतरनाक मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करने में लापरवाही बरत रहे प्राइवेट अस्पताल

नियमों के अनुसार यह जो हाइपोडर्मिक प्लास्टिक सुईया इत्यादि होते हैं .इनको निपटाने के लिए हर जिले में भट्टी होती है ,जो बाराबंकी जिले में भी हैं .लेकिन थोड़े बहुत फायदे के लिए इस कचरे को लोग कबाड़ में बेच देते हैं.

थोड़े बहुत फायदे के लिए बायोमेडिकल कचरे को लोग कबाड़ में बेच देते हैं.
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Published : Mar 23, 2019, 3:38 AM IST

बाराबंकी : पूरे भारत में जहां स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की मुहिम के तहत देश आगे बढ़ रहा है. वहीं बाराबंकी जिले के कुछ अस्पतालों में तय मानकों के अनुसार बायोमेडिकल कचरे का सही निस्तारण नहीं किया जा रहा है. अस्पतालों से निकलने वाला बायो मेडिकल कचरे से घातक बीमारियां जैसे एचआईवी, हेपिटाइटिस बी, कई प्रकार के इंफेक्शन और महामारी फैलने का खतरा बना रहता है.

थोड़े बहुत फायदे के लिए बायोमेडिकल कचरे को लोग कबाड़ में बेच देते हैं.

एनजीटी के नियमों के अनुसार ऐसा कचरा जो मनुष्य शरीर से निकलता है ,उसमें खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है. ऐसे बायोमेडिकल कचरे को निस्तारित करने के लिए भट्टियों का निर्माण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मानकों के अनुसार होना चाहिए जो जिले में उपलब्ध भी है, लेकिन जिले के तमाम अस्पतालों में ही इसे ठीक प्रकार से संयोजित करने के लिए डस्टबिन ही उपलब्ध नहीं है.

भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत बायो मेडिकल वेस्ट के लिए 1998 में एक नियम बनाया. इसके अनुसार कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल बायोमेडिकल कचरे को न तो खुले स्थान पर फेकेंगे और न ही इसे किसी कबाड़ी या अन्य व्यक्ति को बेचेंगे. इस नियम की अवहेलना करने पर अस्पताल के खिलाफ सजा और जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है.

बाराबंकी : पूरे भारत में जहां स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की मुहिम के तहत देश आगे बढ़ रहा है. वहीं बाराबंकी जिले के कुछ अस्पतालों में तय मानकों के अनुसार बायोमेडिकल कचरे का सही निस्तारण नहीं किया जा रहा है. अस्पतालों से निकलने वाला बायो मेडिकल कचरे से घातक बीमारियां जैसे एचआईवी, हेपिटाइटिस बी, कई प्रकार के इंफेक्शन और महामारी फैलने का खतरा बना रहता है.

थोड़े बहुत फायदे के लिए बायोमेडिकल कचरे को लोग कबाड़ में बेच देते हैं.

एनजीटी के नियमों के अनुसार ऐसा कचरा जो मनुष्य शरीर से निकलता है ,उसमें खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है. ऐसे बायोमेडिकल कचरे को निस्तारित करने के लिए भट्टियों का निर्माण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मानकों के अनुसार होना चाहिए जो जिले में उपलब्ध भी है, लेकिन जिले के तमाम अस्पतालों में ही इसे ठीक प्रकार से संयोजित करने के लिए डस्टबिन ही उपलब्ध नहीं है.

भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत बायो मेडिकल वेस्ट के लिए 1998 में एक नियम बनाया. इसके अनुसार कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल बायोमेडिकल कचरे को न तो खुले स्थान पर फेकेंगे और न ही इसे किसी कबाड़ी या अन्य व्यक्ति को बेचेंगे. इस नियम की अवहेलना करने पर अस्पताल के खिलाफ सजा और जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है.

Intro:बाराबंकी ,19 मार्च । पूरे भारत में जहां स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की मुहिम के तहत देश आगे बढ़ रहा है . वहीं बाराबंकी जिले के कुछ अस्पतालों में तय मानकों के अनुसार बायोमेडिकल कचरे का सही निस्तारण नहीं किया जा रहा है. नियम के अनुसार किसी भी प्रकार का ह्यूमन ऑर्गन जो शरीर से काट कर निकाला जाता है उसे पीले डिब्बे में रखा जाता है .इसी प्रकार लाल और काले डिब्बे में अलग अलग कचरा रखा जाता है ,लेकिन ऐसा कुछ अस्पतालों में नहीं है. स्वच्छता के नियमों की अनदेखी कर राम भरोसे चल रहे हैं अस्पताल. एनजीटी के नियमों के अनुसार ऐसा कचरा जो मनुष्य शरीर से निकलता है ,उसमें खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है. ऐसे बायोमेडिकल कचरे को निस्तारित करने के लिए भट्टियों का निर्माण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मानकों के अनुसार होना चाहिए जो जिले में उपलब्ध भी है, लेकिन जिले के तमाम अस्पतालों में ही इसे ठीक प्रकार से संयोजित करने के लिए डस्टबिन ही उपलब्ध नहीं है.


Body:बायोमेडिकल कचरा पर्यावरण के लिहाज से एक गंभीर खतरा पूरी दुनिया के लिए बन चुका है. दुनिया भर में प्रतिदिन सैकड़ों टन कचरा चिकित्सकीय उपयोग के बाद निकलता है. और भारत भी इस प्रकार के कचरे के निकलने की संख्या में पीछे नहीं है. दिन-प्रतिदिन अस्पताल की संख्या बढ़ती जा रही है और बीमार लोगों की भी संख्या बढ़ती जा रही है. एक आंकड़ा जो भारत सरकार और मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने बताया है कि बायो मेडिकल कचरा जिसमें सुई , मनुष्य के शरीर से निकलने वाले मवाद एवं तमाम प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त होने के बाद निकले मनुष्य के कुछ अंग और अन्य प्रकार का कचरा जो इससे निकलता है .इससे तमाम प्रकार की घातक बीमारियां जैसे एचआईवी, हेपिटाइटिस बी ,तमाम प्रकार के इंफेक्शन और महामारी फैलने का खतरा बना रहता है. अस्पतालों से निकलने वाला बायो मेडिकल कचरा जल ,थल और वायु तीनों को प्रदूषित करता है , यह इतनी बड़ी संख्या में प्रदूषण फैलाता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. यहां हम आपको बताते चलें कि बायोमेडिकल कचरे में क्या-क्या हो सकता है, ग्लूकोज की बोतल, एक्सपायरी डेट की दवाइयां, दवाइयों के रैपर ,सुइयां मनुष्य के शरीर से निकलने वाले ह्यूमन ऑर्गन, मवाद उपयोग में लाई जाने वाली रूई इत्यादि इसके कचरे के रूप में होता है. यदि हम इनकी कैटेगरी बताए तो , रोग युक्त पदार्थ , रेडियोधर्मी पदार्थ ,रासायनिक और औषधीय पदार्थ होते हैं जो एक बड़ी संख्या में प्रदूषण फैलाते हैं. नियमों के अनुसार यह जो हाइपोडर्मिक प्लास्टिक सुईया इत्यादि होते हैं .इनको निपटाने के लिए हर जिले में भट्टी होती है ,जो बाराबंकी जिले में भी हैं .लेकिन कुछ थोड़े बहुत फायदे के लिए इस कचरे को लोग कबाड़ में बेच देते हैं ,जो आने वाले समय में बीमारियों और प्रदूषण को निमंत्रण देता है. ऐसे कचरे के निस्तारण के लिए भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत बायो मेडिकल वेस्ट के लिए 1998 में एक नियम बनाया है , जिसे बायो मेडिकल वेस्ट अधिनियम 1998 कहा जाता है .इसके अनुसार कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल बायोमेडिकल कचरे को ना तो खुले स्थान पर फेकेंगे और ना ही इसे किसी कबाड़ी या अन्य व्यक्ति को बेचेंगे. किसी अस्पताल द्वारा यदि इन नियमों की अवहेलना की जाती है , तो उसके खिलाफ सजा देने और जुर्माना ठोकने का भी प्रावधान है . यदि अस्पताल प्रशासन के द्वारा फिर भी इसको संज्ञान में नहीं लाया गया तो 5 वर्ष की सजा और प्रतिदिन ₹5000 के अनुसार जुर्माना वसूलने का भी नियम है. नियम के अनुसार अस्पतालों में एक रजिस्टर होना चाहिए जिसमें बायो मेडिकल वेस्ट जो कर्मचारी ले जाते हैं उनका हस्ताक्षर भी होना चाहिए. इस प्रकार के वेस्टेज को निस्तारित करने के लिए तीन बैग बनाए गए हैं पीला, लाल और काला इसमें मौजूद कूड़े को हाइड्रोक्लोराइड एसिड के द्वारा ट्रीटमेंट किया जाता है ताकि इस के कीटाणु मर जाएं.इस बायोमेडिकल कचरे को आटोब्लेड सिलेक्टर के द्वारा इस से निकली हुई सुई को काट दिया जाता है और कांच प्लास्टिक इत्यादि को इनमें से अलग करके अन्य बचे हुए बायोमेडिकल कचरे को भट्टी में डालकर इसे नष्ट कर दिया जाता है .ताकि दोबारा इसे प्रयोग में न लाया जा सके .और पर्यावरण को नुकसान होने से बचाया जा सके साथ ही साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी से भी बचा जा सके. बाराबंकी से लखनऊ जाने वाले मार्ग के किनारे स्थित देवा अस्पताल में हमारी पड़ताल मैं यह देखने को मिला कि यहां पर बायोमेडिकल कचरे को उठाने के लिए ठीक प्रबंध नहीं है. पूछने पर इधर-उधर की बात करने लगे और यह बताया कि अस्पताल ही नहीं चल रहा है. जबकि वहीं बैठे मरीज के परिजन ने बताया कि अस्पताल चल रहा है और वह आज टाका कटाने आए हैं. उनसे जब हम डिटेल मांगने लगे कि आपके यहां कितने पेशेंट भर्ती हैं तो पर्चा रखा रहने के बावजूद भी उन्होंने नहीं दिखाया, और हम आपको पहले से जानते हैं इस बात का जिक्र करने लगे . अब समस्या इस बात की है कि बायोमेडिकल कचरे को निस्तारित करने के लिए किसी को जानने की क्या आवश्यकता है . कुल मिलाकर तय मानकों की अनदेखी की जा रही है जो ठीक नहीं कहा जा सकता.


Conclusion:वास्तव में बायोमेडिकल हमारे पर्यावरण और हमारे जीवन दोनों के लिए खतरनाक है .इसलिए इसका सही स्वरूप में निस्तारण होना अत्यंत आवश्यक है. 2009 की एक घटना की मानें तो गुजरात राज्य के मेडासा कस्बे में हिपेटाइटिस बी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी, जिसका कारण बायो मेडिकल कचरा ही बताया जाता है. सरकारी स्वास्थ्य विभाग ने जब जांच की तो पाया कि घातक वायरस फैलने की सबसे बड़ी वजह बायोमेडिकल कचरे का ठिकाना न लगाया जाना है. अब यहां यह ध्यान देने की जरूरत है कि जिले में सारी सुविधा होने के बाद भी अगर प्राइवेट अस्पताल इस प्रकार से कार्य करेंगे तो यह घातक बीमारियों को निमंत्रण देना ही कहा जाएगा. इसलिए स्वास्थ्य विभाग को जल्दी से जल्दी इस पर कार्यवाही करने की आवश्यकता है. यदि समय रहते इस प्रकार के चीजों से नहीं निपटा गया तो यह महामारी का स्वरूप भी भविष्य में ले सकता है. क्योंकि जिस प्रकार की अनदेखी अस्पतालों में की जा रही है वह ठीक नहीं है. बड़ी मुश्किल से देवां अस्पताल में इस प्रकार से खबर हो पाई है . जिले में ऐसे तमाम अस्पताल है जहां इस प्रकार से बायो मेडिकल वेस्ट को इधर-उधर फेंका जाता है. जिस पर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को कार्यवाही करने की जरूरत है.





बाइट -

1-विजुअल देवां अस्पताल (लखनऊ रोड बाराबंकी)

2- कर्मचारी जो रजिस्ट्रेशन करता है देवा अस्पताल

3- रोहित, मरीज के परिजन .

4- डॉ. रमेश चंद्र , मुख्य चिकित्सा अधिकारी बाराबंकी.


रिपोर्ट - आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी , 96284 76907
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