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ऐसा मंदिर जहां आते ही दूर हो जाता है 'सर्पभय', होती है मन्नत पूरी - barabanki shri nag devta manjitha dham

अगर आपके घरों में सांप आते हैं या सांपों से डर बना रहता है, तो आप बाराबंकी के श्री नाग देवता मंजिठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) आइए. मान्यता है कि यहां के नाग देवता (nag devta) मंदिर में दूध और चावल से भरी मिट्टी की मठिया चढ़ाने से सांपों के भय से मुक्ति मिल जाती है. जी हां! सैकड़ों वर्षों से तो यहां यही परंपरा है. देखिए यह स्पेशल रिपोर्ट...

barabanki shri nag devta manjitha dham
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Published : Aug 13, 2021, 9:26 PM IST

बाराबंकी: जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी. दूर बाराबंकी-हैदरगढ़ मार्ग (Barabanki-Haidergarh Road) पर श्री नाग देवता मंजिठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) स्थित है. वैसे तो यहां स्थित नाग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं का पूरे साल आना जाना लगा रहता है, लेकिन हर साल सावन (savan) के महीने में यहां भव्य मेला लगता है. नाग पंचमी (nag panchami) के दिन तो यहां आस-पास के जिलों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दूध और चावल से भरी मठिया चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं. मान्यता है कि जिनके घर में सांप आते हैं या जिन्हें सांपों से डर बना रहता है, वे यहां मठिया चढ़ाकर उससे छुटकारा पा जाते हैं. यहां की मठिया ले जाकर लोग अपने घरों में रख देते हैं, जिससे घरों में कोई भी विषैला जीव-जन्तु नहीं आता.

बाराबंकी का श्री नाग देवता मंजिठा धाम.
इस मंदिर के इतिहास की बाबत लोगों के अलग-अलग मत हैं. बताया जाता है कि इस पूरे इलाके में घना जंगल था और इधर से महात्मा बुद्ध गुजरे थे. वहीं कुछ लोगों का मत है कि महात्मा बुद्ध के शिष्य ने यहां तपस्या की थी. तपस्या के दौरान ही भगवान ने उन्हें सर्प रूप में दर्शन दिया था. तपस्वी ने नाग देवता को दूध और चावल दिया और तभी से यह परंपरा शुरू हुई.


वहीं तमाम लोगों का मानना है कि घने जंगल के इसी स्थान पर नाग देवता का वास था. लिहाजा लोग इधर से गुजरने से डरते थे, लेकिन एक दिन जौनपुर के बाबा नागदास (nagdas) इधर से गुजरे. उन्होंने यहीं रुककर तपस्या की और नाग देवता को मनाया. बाबा नागदास (baba nagdas) ने आषाढ़ पूर्णिमा को नाग देवता को दूध पिलाया और तब से यह परम्परा चली आ रही है.

बताया जाता है कि इस स्थान पर सांपों की बाम्बी (सांपों की बिल) थी. एक दिन लोगों ने इसकी साफ-सफाई का मन बनाया, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. लिहाजा धीरे-धीरे इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. शरीर पर मस्से हों या फोड़े-फुंसियां, शरीर पर चकत्ते हों या कोई और रोग, दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आकर न केवल रोग मुक्त हो जाते हैं, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आ जाती है. दूर-दराज से संपेरे भी आकर नाग देवता के इस मंदिर में हाजिरी लगाते हैं.

आस्था और विश्वास के इस केंद्र पर सैकड़ों वर्षों से जन सैलाब उमड़ता रहा है, लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो वर्षों से मंदिर के कपाट बंद चल रहे थे. लिहाजा इस बार भी श्रद्धालुओं को भीड़ लगाने से रोका गया है. मंदिर के कपाट बंद होने के बावजूद भी तमाम श्रद्धालुओं की आस्था उन्हें मंदिर तक ले आई और उन्होंने मंदिर के गर्भगृह के बाहर ही मठिया चढ़ाकर दर्शन पूरे किए. भले ही इस बार कोरोना के चलते आस्था और श्रद्धा के इस केंद्र पर जन सैलाब न उमड़ा हो, लेकिन नाग देवता के इस मंदिर का विश्वास लोगों में साल दर साल बढ़ता जा रहा है. लोगों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती हैं.


इसे भी पढ़ें- बुलंदशहर: सावन के आखिरी सोमवार पर शिवालयों में हुई विशेष पूजा

बाराबंकी: जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी. दूर बाराबंकी-हैदरगढ़ मार्ग (Barabanki-Haidergarh Road) पर श्री नाग देवता मंजिठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) स्थित है. वैसे तो यहां स्थित नाग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं का पूरे साल आना जाना लगा रहता है, लेकिन हर साल सावन (savan) के महीने में यहां भव्य मेला लगता है. नाग पंचमी (nag panchami) के दिन तो यहां आस-पास के जिलों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दूध और चावल से भरी मठिया चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं. मान्यता है कि जिनके घर में सांप आते हैं या जिन्हें सांपों से डर बना रहता है, वे यहां मठिया चढ़ाकर उससे छुटकारा पा जाते हैं. यहां की मठिया ले जाकर लोग अपने घरों में रख देते हैं, जिससे घरों में कोई भी विषैला जीव-जन्तु नहीं आता.

बाराबंकी का श्री नाग देवता मंजिठा धाम.
इस मंदिर के इतिहास की बाबत लोगों के अलग-अलग मत हैं. बताया जाता है कि इस पूरे इलाके में घना जंगल था और इधर से महात्मा बुद्ध गुजरे थे. वहीं कुछ लोगों का मत है कि महात्मा बुद्ध के शिष्य ने यहां तपस्या की थी. तपस्या के दौरान ही भगवान ने उन्हें सर्प रूप में दर्शन दिया था. तपस्वी ने नाग देवता को दूध और चावल दिया और तभी से यह परंपरा शुरू हुई.


वहीं तमाम लोगों का मानना है कि घने जंगल के इसी स्थान पर नाग देवता का वास था. लिहाजा लोग इधर से गुजरने से डरते थे, लेकिन एक दिन जौनपुर के बाबा नागदास (nagdas) इधर से गुजरे. उन्होंने यहीं रुककर तपस्या की और नाग देवता को मनाया. बाबा नागदास (baba nagdas) ने आषाढ़ पूर्णिमा को नाग देवता को दूध पिलाया और तब से यह परम्परा चली आ रही है.

बताया जाता है कि इस स्थान पर सांपों की बाम्बी (सांपों की बिल) थी. एक दिन लोगों ने इसकी साफ-सफाई का मन बनाया, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. लिहाजा धीरे-धीरे इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. शरीर पर मस्से हों या फोड़े-फुंसियां, शरीर पर चकत्ते हों या कोई और रोग, दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आकर न केवल रोग मुक्त हो जाते हैं, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आ जाती है. दूर-दराज से संपेरे भी आकर नाग देवता के इस मंदिर में हाजिरी लगाते हैं.

आस्था और विश्वास के इस केंद्र पर सैकड़ों वर्षों से जन सैलाब उमड़ता रहा है, लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो वर्षों से मंदिर के कपाट बंद चल रहे थे. लिहाजा इस बार भी श्रद्धालुओं को भीड़ लगाने से रोका गया है. मंदिर के कपाट बंद होने के बावजूद भी तमाम श्रद्धालुओं की आस्था उन्हें मंदिर तक ले आई और उन्होंने मंदिर के गर्भगृह के बाहर ही मठिया चढ़ाकर दर्शन पूरे किए. भले ही इस बार कोरोना के चलते आस्था और श्रद्धा के इस केंद्र पर जन सैलाब न उमड़ा हो, लेकिन नाग देवता के इस मंदिर का विश्वास लोगों में साल दर साल बढ़ता जा रहा है. लोगों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती हैं.


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