बाराबंकी: जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी. दूर बाराबंकी-हैदरगढ़ मार्ग (Barabanki-Haidergarh Road) पर श्री नाग देवता मंजिठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) स्थित है. वैसे तो यहां स्थित नाग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं का पूरे साल आना जाना लगा रहता है, लेकिन हर साल सावन (savan) के महीने में यहां भव्य मेला लगता है. नाग पंचमी (nag panchami) के दिन तो यहां आस-पास के जिलों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दूध और चावल से भरी मठिया चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं. मान्यता है कि जिनके घर में सांप आते हैं या जिन्हें सांपों से डर बना रहता है, वे यहां मठिया चढ़ाकर उससे छुटकारा पा जाते हैं. यहां की मठिया ले जाकर लोग अपने घरों में रख देते हैं, जिससे घरों में कोई भी विषैला जीव-जन्तु नहीं आता.
वहीं तमाम लोगों का मानना है कि घने जंगल के इसी स्थान पर नाग देवता का वास था. लिहाजा लोग इधर से गुजरने से डरते थे, लेकिन एक दिन जौनपुर के बाबा नागदास (nagdas) इधर से गुजरे. उन्होंने यहीं रुककर तपस्या की और नाग देवता को मनाया. बाबा नागदास (baba nagdas) ने आषाढ़ पूर्णिमा को नाग देवता को दूध पिलाया और तब से यह परम्परा चली आ रही है.
बताया जाता है कि इस स्थान पर सांपों की बाम्बी (सांपों की बिल) थी. एक दिन लोगों ने इसकी साफ-सफाई का मन बनाया, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. लिहाजा धीरे-धीरे इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. शरीर पर मस्से हों या फोड़े-फुंसियां, शरीर पर चकत्ते हों या कोई और रोग, दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आकर न केवल रोग मुक्त हो जाते हैं, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आ जाती है. दूर-दराज से संपेरे भी आकर नाग देवता के इस मंदिर में हाजिरी लगाते हैं.
आस्था और विश्वास के इस केंद्र पर सैकड़ों वर्षों से जन सैलाब उमड़ता रहा है, लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो वर्षों से मंदिर के कपाट बंद चल रहे थे. लिहाजा इस बार भी श्रद्धालुओं को भीड़ लगाने से रोका गया है. मंदिर के कपाट बंद होने के बावजूद भी तमाम श्रद्धालुओं की आस्था उन्हें मंदिर तक ले आई और उन्होंने मंदिर के गर्भगृह के बाहर ही मठिया चढ़ाकर दर्शन पूरे किए. भले ही इस बार कोरोना के चलते आस्था और श्रद्धा के इस केंद्र पर जन सैलाब न उमड़ा हो, लेकिन नाग देवता के इस मंदिर का विश्वास लोगों में साल दर साल बढ़ता जा रहा है. लोगों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती हैं.
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