बाराबंकी: जिले के मशहूर वकील व दो बार एमएलसी रहे गयासुद्दीन किदवाई का रविवार को निधन हो गया. किदवाई पिछले एक वर्ष से बीमार चल रहे थे. उनके निधन की खबर पर जिले के बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों समेत तमाम जनमानस में शोक की लहर दौड़ गई.
एक वक्त ऐसा आया कि तमाम वकील खासकर उनकी बहस सुनने के लिए अदालतों में खड़े रहते थे. अपनी भावनात्मक बहस के चलते वह अपने केस को इतनी मजबूती से रखते थे कि हर कोई उनका कायल हो जाता था. उनके तर्कों से विपक्षियों का पसीना छूट जाता था. उनकी मकबूलियत का ही नतीजा था कि जिला बार के वे निर्विरोध अध्यक्ष भी रहे.
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गयासुद्दीन किदवाई बेहतरीन वक्ता भी थे. उन्होंने तमाम कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत कर उनको गौरवान्वित किया. कई वर्षों तक वे ऑल इंडिया देवा मुशायरा के कन्वीनर भी रहे. मकबूलियत बढ़ी तो उन्होंने राजनीतिक हैसियत भी बढ़ाई. अनंतराम जायसवाल और रामसेवक यादव उन्हें राजनीति में लाना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने ही किदवाई को डॉ. लोहिया से मिलवाया और वे राजनीति में आ गए. वो कई वर्षों तक कांग्रेस, सपा और बहुजन पार्टी में रहे. सपा के जिलाध्यक्ष भी रहे.
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सपा कार्यकाल में उन्हें एमएलसी बनाया गया. वर्ष 2007 में बसपा सरकार में उन्हें राज्य अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन बनाया गया. तकरीबन 15 वर्षों तक बसपा में रहने के बाद वर्ष 2012 में उन्होंने अपनी ही पार्टी के नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर कई गम्भीर आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया. अपने कार्यकाल में उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग को नई ऊंचाइयां दीं. यही नहीं अपने कामों से उन्होंने इस पद की अहमियत भी लोगों को दिखाई. अपने अंतिम समय तक उनका ये दर्द बना रहा कि लोग अधिकारों की बातें तो करते हैं, लेकिन कर्तव्यों की बात आती है तो लोग पीछे हो जाते हैं.