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खो-खो को विश्वस्तर पर लाने के लिए मैट पर खेले जाने की उठी मांग - विश्वस्तर तक ले जाने के लिए मैट पर हो खो-खो खेल

यूपी के बाराबंकी में नार्थ इंडिया के सात राज्यों की पांच दिवसीय अन्तरविश्वविद्यालय प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है. खो-खो खेलने के लिए हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हिमांचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य से टीमें आई हुई हैं.

खो-खो खेल प्रतियोगिता
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Published : Nov 24, 2019, 7:34 PM IST

बाराबंकी: जिले में नार्थ इंडिया के सात राज्यों की पांच दिवसीय अन्तरविश्वविद्यालय प्रतियोगिता चल रही है. खो-खो खेलने के लिए हरियाणा, जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हिमांचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य से आई टीमें शामिल हैं. इस दौरान खो-खो के प्रशिक्षकों ने कहा कि खो-खो की तरह कबड्डी भी मिट्टी में खेला जाने वाला खेल है, लेकिन उसमें बदलाव किए जाने से आज कबड्डी का काफी क्रेज है. वहीं प्रशिक्षकों ने कहा कि विदेशी खिलाड़ी मिट्टी में खेलने से कतराते हैं.

जानकारी देते खो-खो कोच.

खो-खो का खेल उपेक्षा का शिकार

एशियन गेम्स में खो-खो को शामिल कर लिए जाने से खो-खो प्रेमी उत्साहित हैं, लेकिन उन्हें इस बात का दुख है कि अभी इस खेल को दूसरे खेलों की तरह अपेक्षित मुकाम नहीं मिल पा रहा है. खेल प्रेमियों का कहना है कि खो-खो की तरह कबड्डी भी जमीन पर खेला जाने वाला खेल है. लेकिन कबड्डी का खेल अब काफी ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है, जबकि खो-खो को वैसी पहचान नहीं मिल पा रही है. प्रशिक्षकों का कहना है कि खो-खो खेल की महत्ता इतनी है कि तमाम क्रिकेट के कोच अपने खिलाड़ियों को अभ्यास के दौरान खो-खो खिलाते हैं.

मैट पर खेला जाना चाहिए खो-खो खेल
प्रशिक्षकों का मानना है कि खो-खो को विश्वस्तर तक पहुंचाने के लिए खेल को मैट पर खेला जाना चाहिए. इसके पीछे इनका तर्क है कि विदेशी खिलाड़ी धूल और मिट्टी में खेलने से कतराते हैं. इसको ग्लैमरस बनाने के लिए इस खेल का मैट पर आयोजन किया जाना चाहिए. प्रशिक्षकों की मानें तो साउथ एशियन खेलों में तमाम एशियाई देश खो-खो खेल रहे हैं, लेकिन जब यह खेल मैट पर होने लगेगा, तो वर्ल्ड के दूसरे देश भी इसमें रुचि लेने लगेंगे.

इसे भी पढ़ें-सोनभद्रः बच्चों की प्रतिभाओं को तलाशने की अलख जगा रही यूपी सरकार

बाराबंकी: जिले में नार्थ इंडिया के सात राज्यों की पांच दिवसीय अन्तरविश्वविद्यालय प्रतियोगिता चल रही है. खो-खो खेलने के लिए हरियाणा, जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हिमांचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य से आई टीमें शामिल हैं. इस दौरान खो-खो के प्रशिक्षकों ने कहा कि खो-खो की तरह कबड्डी भी मिट्टी में खेला जाने वाला खेल है, लेकिन उसमें बदलाव किए जाने से आज कबड्डी का काफी क्रेज है. वहीं प्रशिक्षकों ने कहा कि विदेशी खिलाड़ी मिट्टी में खेलने से कतराते हैं.

जानकारी देते खो-खो कोच.

खो-खो का खेल उपेक्षा का शिकार

एशियन गेम्स में खो-खो को शामिल कर लिए जाने से खो-खो प्रेमी उत्साहित हैं, लेकिन उन्हें इस बात का दुख है कि अभी इस खेल को दूसरे खेलों की तरह अपेक्षित मुकाम नहीं मिल पा रहा है. खेल प्रेमियों का कहना है कि खो-खो की तरह कबड्डी भी जमीन पर खेला जाने वाला खेल है. लेकिन कबड्डी का खेल अब काफी ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है, जबकि खो-खो को वैसी पहचान नहीं मिल पा रही है. प्रशिक्षकों का कहना है कि खो-खो खेल की महत्ता इतनी है कि तमाम क्रिकेट के कोच अपने खिलाड़ियों को अभ्यास के दौरान खो-खो खिलाते हैं.

मैट पर खेला जाना चाहिए खो-खो खेल
प्रशिक्षकों का मानना है कि खो-खो को विश्वस्तर तक पहुंचाने के लिए खेल को मैट पर खेला जाना चाहिए. इसके पीछे इनका तर्क है कि विदेशी खिलाड़ी धूल और मिट्टी में खेलने से कतराते हैं. इसको ग्लैमरस बनाने के लिए इस खेल का मैट पर आयोजन किया जाना चाहिए. प्रशिक्षकों की मानें तो साउथ एशियन खेलों में तमाम एशियाई देश खो-खो खेल रहे हैं, लेकिन जब यह खेल मैट पर होने लगेगा, तो वर्ल्ड के दूसरे देश भी इसमें रुचि लेने लगेंगे.

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Intro:बाराबंकी ,24 नवम्बर । खो-खो खेल को विश्वस्तर तक ले जाने के लिए इसे मैट पर खेलना अनिवार्य किया जाय । ये मांग है खो-खो के प्रशिक्षकों की । नार्थ इंडिया के सात राज्यों की बाराबंकी में चल रही पांच दिवसीय अन्तर्विश्वविद्यालयी प्रतियोगिता के दौरान प्रशिक्षकों ने ये बात उठाई । उन्होंने कहा कि खो-खो की तरह कबड्डी भी मिट्टी में खेला जाने वाला खेल है लेकिन उसमें बदलाव किए जाने से आज कबड्डी का काफी क्रेज है । कोचेज ने कहा कि विदेशी खिलाड़ी मिट्टी में खेलने से कतराते हैं ।


Body:वीओ- एशियन गेम में खो-खो को शामिल कर लिए जाने से खो-खो प्रेमी उत्साहित हैं लेकिन इन्हें दुख है कि अभी इस खेल को दूसरे खेलों की तरह अपेक्षित मुकाम नही मिल पा रहा । खेल प्रेमियों का कहना है कि खो खो की तरह कबड्डी भी जमीन पर खेला जाने वाला खेल है । कबड्डी अब काफी ऊंचाइयों पर पहुंच रही है जबकि खो-खो को वह पहचान नही मिल पा रही । प्रशिक्षकों का कहना है कि खो-खो खेल की इतनी महत्ता है कि तमाम क्रिकेट के कोच अपने खिलाड़ियों को अभ्यास के दौरान खो खो खिलाते हैं । प्रशिक्षकों का मानना है कि इस खेल को विश्वस्तर तक पहुंचाने के लिए मैट पर खेल आयोजित किये जाय । इसके पीछे इनका तर्क है कि अंग्रेज और विदेशी खिलाड़ी धूल और मिट्टी में खेलने से पिछड़ते हैं । इसको ग्लैमरस बनाने के लिए मैट पर आयोजन हो । प्रशिक्षकों की माने तो साउथ एशियन खेलों में तमाम एशियाई देश खो-खो खेल रहे हैं लेकिन जब ये खेल मैट पर होने लगेगा तो वर्ल्ड के दूसरे देश भी इसे खेलने लगेंगे ।
बाईट-पीएस लाम्बा , खो-खो कोच, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़


Conclusion:रिपोर्ट - अलीम शेख बाराबंकी
9454662740
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