बाराबंकी: यूरिया खाद को लेकर इस समय जिले में हाहाकार मचा है. लक्ष्य से ज्यादा खाद आने के बावजूद खाद की किल्लत से किसान जूझ रहे हैं. खाद पाने के लिए किसान कोरोना जैसे खतरे को भी भूल गए हैं. लाख कोशिशों के बाद सोशल डिस्टेंसिंग नहीं हो पा रही है. अधिकारी हलकान हैं कि खाद की लगातार आ रही रैको के बावजूद ये किल्लत क्यों बनी हुई है.
यूरिया खाद नहीं मिलने से किसान परेशान. सुबह से ही खाद लेने के लिए सहकारी समितियों और एग्री जंक्शन केंद्रों पर किसानों की भीड़ जुटती है. दिनभर किसानों को केंद्र के बाहर खड़े रहना पड़ता है. किसी को खाद मिल पाती है तो तमाम किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. जिले में कुल 124 सहकारी समितियां हैं, लेकिन महज 121 क्रियाशील हैं. इनमें केवल 90 सोसायटियों पर खाद की बिक्री की जा रही है. इसके अलावा 90 इफको के एग्री जंक्शन केंद्र हैं, जिन पर भी खाद बेची जा रही है, लेकिन कोई केंद्र या समिति ऐसी नहीं, जहां भीड़ न लग रही हो.
लक्ष्य से ज्यादा आई यूरिया खादजिले में खरीफ की फसल के लिए यूरिया खाद का कुल लक्ष्य करीब 87 हजार मीट्रिक टन है, जबकि 66 हजार मीट्रिक टन यूरिया आ चुकी है. अगस्त माह में लक्ष्य से ज्यादा खाद आ गई है. पूर्व भंडारित यूरिया करीब चार हजार मीट्रिक टन भी समितियों को बेचने के लिए उपलब्ध कराई गई है. पिछले वर्ष जहां करीब 65 हजार मीट्रिक टन खाद का वितरण हुआ था, वहीं इस बार ये वितरण आंकड़ा अभी पार हो गया है. यही नहीं, आए दिन यूरिया की रैक जिले में पहुंच रही है. बावजूद इसके अधिकारी इस बात को लेकर हलकान हैं कि यूरिया की किल्लत क्यों बनी है
क्या कहना है अधिकारियों काजिला कृषि अधिकारी संजीव कुमार ने बताया कि खरीफ की फसल के लिए किसानों को खाद उपलब्ध कराने के लिए पहली अप्रैल से 30 सितंबर तक का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है. इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर खाद आती है. बाराबंकी में एक फसल जायद की भी होती है, जिसमें किसान मेंथा की खेती करते हैं. लिहाजा किसान यूरिया खरीद कर मेंथा में प्रयोग कर लेते हैं और धान की फसल के लिए यूरिया की कमी हो जाती है.दूसरा कारण ये भी है कि इस बार खाद सस्ती है. खाद की कीमत 266.50 रुपये है. लिहाजा किसान जरूरत से ज्यादा खाद खरीदकर खेतों में डाल रहे हैं. एक एकड़ में जहां दो बैग डालने चाहिए, वहीं किसान चार-चार बैग डाल दे रहे हैं. तीसरा कारण ये है कि इस बार बारिश अच्छी हुई है और कोरोना के चलते गैर प्रान्तों से लौटे लोगों ने भी खेती शुरू की है, जिसके चलते इस बार धान का रकबा बढ़ गया है. लिहाजा खाद की मांग बढ़ गई है. चौथा कारण ये है कि निजी दुकानदारों के पास या तो खाद नहीं है या उनके महंगे बेचने के चलते किसान निजी दुकानों पर नहीं जा रहे और वो सीधा साधन सहकारी समितियों पर या एग्रो जंक्शन केंद्रों पर पहुंच रहे हैं.