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बाराबंकी में अफीम की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग

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Published : Nov 12, 2020, 10:01 AM IST

बाराबंकी जिले में अफीम की खेती के लिए किसानों में रुझान कम हुआ है. इस बार 669 गांव के 3101 किसानों को लाइसेंस लेने के लिए बुलाया गया था. लेकिन महज 1811 किसानों ने ही अफीम की खेती करने की हिम्मत जुटाई और उन्होंने नारकोटिक्स विभाग से लाइसेंस लिया.

अफीम पोस्त की खेती
अफीम की खेती.

बाराबंकी : पूर्वी उत्तर प्रदेश की अफीम यानी काला सोना की खेती के लिए खासी पहचान थी जिसमें अकेले जनपद में ही 90 फीसदी पोस्त की खेती होती थी. लेकिन अब किसानों का पोस्त की खेती से मोह भंग हो गया है. हाई रिस्क और कम रकबे के चलते किसान अब पोस्त की खेती करने की बजाय नकदी फसलों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. यही वजह है कि इस बार 669 गांव के 3101 किसानों को लाइसेंस लेने के लिए बुलाया गया था, लेकिन महज 1811 किसानों ने ही पोस्ता की खेती करने की हिम्मत जुटाई और उन्होंने नारकोटिक्स विभाग से लाइसेंस लिया.

अफीम की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग.

किसानों ने दिखाई कम रुचि

विभाग को उम्मीद थी कि इस बार ज्यादा काश्तकार लाइसेंस लेंगे, लेकिन इस बार पिछले वर्ष से भी काश्तकार कम हो गए. मऊ और रायबरेली जैसे जिलों में तो किसानों की संख्या दहाई भी नही पहुंची. नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों का मानना है कि किसान अब मेंथा, आलू और केले जैसी नकदी फसलों को प्राथमिकता दे रहे हैं. दरअसल एक तो पोस्त के लिए किसानों को कम रकबे में बोने का लाइसेंस और दूसरे हाई रिस्क से किसान इससे दूर होते जा रहे हैं.

किसानों का पोस्त की खेती से मोह भंग होने से हालांकि विभाग को कोई खास नुकसान नहीं होगा, क्योंकि इसकी भरपाई विभाग राजस्थान और मध्यप्रदेश से कर लेगा. अधिकारियों का कहना है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसान लाइसेंस लेने के लिए काफी रुचि दिखाते हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के 6 जिले पोस्त की करते हैं खेती

पोस्त की खेती के लिए सूबे में 9 जिले प्रमुख हैं. जिनमे पश्चिम के तीन जिलों के लाइसेंस बरेली यूनिट से जारी किए जाते हैं. जबकि पूर्वी उत्तरप्रदेश के 6 जिलों के लिए लाइसेंस बाराबंकी यूनिट से जारी होते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिले बरेली, बंदायू, शाहजहांपुर, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर में ही पोस्त की खेती की जाती है. इसमें बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर जिलों के किसानों को बरेली यूनिट लाइसेंस जारी करती है जबकि लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर जिलों के किसानों को बाराबंकी कार्यालय लाइसेंस जारी करता है.

लाइसेंस की संख्या बढ़ाने के बाद भी नहीं आए काश्तकार

पिछले वर्ष जहां 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मार्फीन स्ट्रेंथ को मानक बनाया गया था वहीं इस बार इसे कम कर 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कर दिया गया था. इसके साथ ही इस बार लाइसेंस की संख्या भी बढ़ाई गई थी. पिछले वर्ष की तुलना में इस बार एक हजार किसानों को बढ़ाया गया था. इन 6 जिलों के 669 गांवों के 3,101 काश्तकारों को बुलाया गया था लेकिन महज 412 गांवों के 1811 गांवों के ही काश्तकार पहुंचे.

पिछले वर्ष महज 27 किसानों ने जमा की अफीम

पिछले वर्ष बाराबंकी कार्यालय ने 1953 किसानों को लाइसेंस जारी किए थे, लेकिन भारी बारिश और ओलावृष्टि से किसानों की फसलें खराब हो गई थीं. लिहाजा 27 किसानों को छोड़कर बाकी सभी किसानों ने अपनी फसल विभागीय अधिकारियों की देखरेख में जोतवा दी थी. केवल 27 किसानों ने ही अफीम जमा की थी. बीती 29 अक्टूबर से लाइसेंस वितरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी जो 10 नवम्बर तक चली.

बाराबंकी : पूर्वी उत्तर प्रदेश की अफीम यानी काला सोना की खेती के लिए खासी पहचान थी जिसमें अकेले जनपद में ही 90 फीसदी पोस्त की खेती होती थी. लेकिन अब किसानों का पोस्त की खेती से मोह भंग हो गया है. हाई रिस्क और कम रकबे के चलते किसान अब पोस्त की खेती करने की बजाय नकदी फसलों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. यही वजह है कि इस बार 669 गांव के 3101 किसानों को लाइसेंस लेने के लिए बुलाया गया था, लेकिन महज 1811 किसानों ने ही पोस्ता की खेती करने की हिम्मत जुटाई और उन्होंने नारकोटिक्स विभाग से लाइसेंस लिया.

अफीम की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग.

किसानों ने दिखाई कम रुचि

विभाग को उम्मीद थी कि इस बार ज्यादा काश्तकार लाइसेंस लेंगे, लेकिन इस बार पिछले वर्ष से भी काश्तकार कम हो गए. मऊ और रायबरेली जैसे जिलों में तो किसानों की संख्या दहाई भी नही पहुंची. नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों का मानना है कि किसान अब मेंथा, आलू और केले जैसी नकदी फसलों को प्राथमिकता दे रहे हैं. दरअसल एक तो पोस्त के लिए किसानों को कम रकबे में बोने का लाइसेंस और दूसरे हाई रिस्क से किसान इससे दूर होते जा रहे हैं.

किसानों का पोस्त की खेती से मोह भंग होने से हालांकि विभाग को कोई खास नुकसान नहीं होगा, क्योंकि इसकी भरपाई विभाग राजस्थान और मध्यप्रदेश से कर लेगा. अधिकारियों का कहना है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसान लाइसेंस लेने के लिए काफी रुचि दिखाते हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के 6 जिले पोस्त की करते हैं खेती

पोस्त की खेती के लिए सूबे में 9 जिले प्रमुख हैं. जिनमे पश्चिम के तीन जिलों के लाइसेंस बरेली यूनिट से जारी किए जाते हैं. जबकि पूर्वी उत्तरप्रदेश के 6 जिलों के लिए लाइसेंस बाराबंकी यूनिट से जारी होते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिले बरेली, बंदायू, शाहजहांपुर, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर में ही पोस्त की खेती की जाती है. इसमें बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर जिलों के किसानों को बरेली यूनिट लाइसेंस जारी करती है जबकि लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर जिलों के किसानों को बाराबंकी कार्यालय लाइसेंस जारी करता है.

लाइसेंस की संख्या बढ़ाने के बाद भी नहीं आए काश्तकार

पिछले वर्ष जहां 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मार्फीन स्ट्रेंथ को मानक बनाया गया था वहीं इस बार इसे कम कर 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कर दिया गया था. इसके साथ ही इस बार लाइसेंस की संख्या भी बढ़ाई गई थी. पिछले वर्ष की तुलना में इस बार एक हजार किसानों को बढ़ाया गया था. इन 6 जिलों के 669 गांवों के 3,101 काश्तकारों को बुलाया गया था लेकिन महज 412 गांवों के 1811 गांवों के ही काश्तकार पहुंचे.

पिछले वर्ष महज 27 किसानों ने जमा की अफीम

पिछले वर्ष बाराबंकी कार्यालय ने 1953 किसानों को लाइसेंस जारी किए थे, लेकिन भारी बारिश और ओलावृष्टि से किसानों की फसलें खराब हो गई थीं. लिहाजा 27 किसानों को छोड़कर बाकी सभी किसानों ने अपनी फसल विभागीय अधिकारियों की देखरेख में जोतवा दी थी. केवल 27 किसानों ने ही अफीम जमा की थी. बीती 29 अक्टूबर से लाइसेंस वितरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी जो 10 नवम्बर तक चली.

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