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बाराबंकी: मौत का केंद्र साबित हो रहे गो आश्रय स्थल, मौत का सरकारी आंकड़ा महज दिखावा

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में गोवंशों के लिए बने गो आश्रय स्थल उनके लिए मौत का केंद्र बन चुके हैं. गो आश्रय स्थल में हर एक दिन एक या दो गोवंशों की मौत हो जाती है. वहीं सरकारी आकड़ों के अनुसार फरवरी से अब तक 73 गोवंश की मौत हुई है, जबकि सच्चाई इससे अलग है.

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मौत का केंद्र साबित हो रहे हैं गो आश्रय स्थल.
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Published : Dec 1, 2019, 11:24 PM IST

बाराबंकी: जिले में गोवंशों के लिए बने गो आश्रय स्थल उनके मौत का केंद्र बन चुके हैं. गोवंश कटीले तारों की चारदीवारी में सूखा भूसा खाने को मजबूर हैं. जिस गोवंश की मौत हो गई है, उन्हें गो आश्रय स्थल में टीन शेड से ढक दिया गया है. जिनकी मौत काफी पहले हो चुकी है उन्हें नजदीक में ही झाड़ के पास फेंक दिया गया है, जहां उन्हें कौवे, बाज और कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे हैं. कुछ जो बीमार हैं और असहाय होकर जमीन पर गिर गए हैं जिनमें अब थोड़ी जान बची है उनके ऊपर भी टीन शेड डाल दिया गया है.

मौत का केंद्र साबित हो रहे हैं गो आश्रय स्थल.

गो आश्रय स्थल पर औषधि केंद्र तो है, लेकिन समय पर कितनी जांच हो पाती है यह कह पाना मुश्किल है. किसी भी गोवंश की स्थिति फिलहाल ठीक दिखाई नहीं दे रही है. सभी की हड्डियां मानो दूर से ही रेखाएं बनाती हुई दिख रही हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी से अब तक 73 गोवंश की हुई मौत
इस बारे में सरकारी आंकड़ा बताता है कि जिले में अभी तक कुल 342 आश्रय स्थलों पर वर्तमान में 6892 गाय और गोवंश हैं. 409 गोवंश और गायों को अब तक सम्मानित नागरिकों द्वारा अडॉप्ट किया गया है. कुल 7226 गोवंश की फरवरी से अब तक ईयर टैगिंग की गई है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक मात्र 73 गोवंश की मौत हुई है, जबकि सच्चाई इससे अलग है.

हर दिन एक या दो गोवंश की होती है मौत
यदि आंकड़ों पर जाएं तो मई तक ही करीब 50 गाय और गोवंश की मृत्यु हो चुकी थी, जबकि उस समय गो आश्रय स्थलों पर गोवंशों और गायों की संख्या भी कम थी. वर्तमान समय में लगातार कोई ऐसा दिन नहीं बीतता, जब 34 गोशालाओं में से कहीं न कहीं एक या दो मौतें न होती हो. फिर भी फरवरी से अब तक 73 मौत का आंकड़ा बताया जा रहा है. जमीनी स्तर पर मौत का आकंड़ा इससे कहीं ज्यादा है.

इसे भी पढ़ें- बाराबंकी: यातायात जनजागरुकता अभियान का समापन

जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी एस सी जायसवाल का कहना है कि ज्यादातर गाय या गोवंश बूढ़े हो चुके हैं, जिसके कारण उनकी मौत होती है और यह सामान्य मौते हैं. कभी-कभी चोट लगने के कारण भी इनकी मौत होती है. इनके लिए पर्याप्त व्यवस्था मसलन मरने के बाद डिस्पोज करना और वह बाहर इधर-उधर न पड़े रहे इत्यादि शामिल है.

जिलाधिकारी ने बताया कि हमारे जिले भर में कुल 34 गो आश्रय स्थल हैं और करीब 7 हजार गाय एवं गोवंश को वहां संरक्षित किया गया है. जब हमने आंकड़ा इकट्ठा किया था, उसके अनुसार करीब 10 हजार गाय एवं गोवंश का आंकड़ा लेकर हम चल रहे थे. अभी भी 3 हजार को हमें संरक्षित करना है. बड़े स्तर पर निबलेट गो आश्रय स्थल हैं. तीन और वृहद गो आश्रय स्थल का निर्माण किया जा रहा है.

हमें 30 रुपए प्रति गोवंश प्रतिदिन के हिसाब से प्राप्त होता है, जिसमें उन्हें रख-रखाव के साथ चारा एवं हरे चारे और पशु आहार देने की बात है, जिसके लिए हमने सीएसआर कोश में लोगों से आग्रह किया था और लोगों ने 25 से 30 लाख रुपए दिए भी हैं. जिन्हें तमाम ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को भेजा गया है, जिससे वह हरा चारा इत्यादि उपलब्ध करा सकें. नागरिकों से भी सरकार और हमारी अपेक्षा है कि वह भी अपना सहयोग करें. जिससे इस समस्या से लड़ा जा सके.
-डॉ. आदर्श सिंह, जिलाधिकारी, बाराबंकी

बाराबंकी: जिले में गोवंशों के लिए बने गो आश्रय स्थल उनके मौत का केंद्र बन चुके हैं. गोवंश कटीले तारों की चारदीवारी में सूखा भूसा खाने को मजबूर हैं. जिस गोवंश की मौत हो गई है, उन्हें गो आश्रय स्थल में टीन शेड से ढक दिया गया है. जिनकी मौत काफी पहले हो चुकी है उन्हें नजदीक में ही झाड़ के पास फेंक दिया गया है, जहां उन्हें कौवे, बाज और कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे हैं. कुछ जो बीमार हैं और असहाय होकर जमीन पर गिर गए हैं जिनमें अब थोड़ी जान बची है उनके ऊपर भी टीन शेड डाल दिया गया है.

मौत का केंद्र साबित हो रहे हैं गो आश्रय स्थल.

गो आश्रय स्थल पर औषधि केंद्र तो है, लेकिन समय पर कितनी जांच हो पाती है यह कह पाना मुश्किल है. किसी भी गोवंश की स्थिति फिलहाल ठीक दिखाई नहीं दे रही है. सभी की हड्डियां मानो दूर से ही रेखाएं बनाती हुई दिख रही हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी से अब तक 73 गोवंश की हुई मौत
इस बारे में सरकारी आंकड़ा बताता है कि जिले में अभी तक कुल 342 आश्रय स्थलों पर वर्तमान में 6892 गाय और गोवंश हैं. 409 गोवंश और गायों को अब तक सम्मानित नागरिकों द्वारा अडॉप्ट किया गया है. कुल 7226 गोवंश की फरवरी से अब तक ईयर टैगिंग की गई है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक मात्र 73 गोवंश की मौत हुई है, जबकि सच्चाई इससे अलग है.

हर दिन एक या दो गोवंश की होती है मौत
यदि आंकड़ों पर जाएं तो मई तक ही करीब 50 गाय और गोवंश की मृत्यु हो चुकी थी, जबकि उस समय गो आश्रय स्थलों पर गोवंशों और गायों की संख्या भी कम थी. वर्तमान समय में लगातार कोई ऐसा दिन नहीं बीतता, जब 34 गोशालाओं में से कहीं न कहीं एक या दो मौतें न होती हो. फिर भी फरवरी से अब तक 73 मौत का आंकड़ा बताया जा रहा है. जमीनी स्तर पर मौत का आकंड़ा इससे कहीं ज्यादा है.

इसे भी पढ़ें- बाराबंकी: यातायात जनजागरुकता अभियान का समापन

जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी एस सी जायसवाल का कहना है कि ज्यादातर गाय या गोवंश बूढ़े हो चुके हैं, जिसके कारण उनकी मौत होती है और यह सामान्य मौते हैं. कभी-कभी चोट लगने के कारण भी इनकी मौत होती है. इनके लिए पर्याप्त व्यवस्था मसलन मरने के बाद डिस्पोज करना और वह बाहर इधर-उधर न पड़े रहे इत्यादि शामिल है.

जिलाधिकारी ने बताया कि हमारे जिले भर में कुल 34 गो आश्रय स्थल हैं और करीब 7 हजार गाय एवं गोवंश को वहां संरक्षित किया गया है. जब हमने आंकड़ा इकट्ठा किया था, उसके अनुसार करीब 10 हजार गाय एवं गोवंश का आंकड़ा लेकर हम चल रहे थे. अभी भी 3 हजार को हमें संरक्षित करना है. बड़े स्तर पर निबलेट गो आश्रय स्थल हैं. तीन और वृहद गो आश्रय स्थल का निर्माण किया जा रहा है.

हमें 30 रुपए प्रति गोवंश प्रतिदिन के हिसाब से प्राप्त होता है, जिसमें उन्हें रख-रखाव के साथ चारा एवं हरे चारे और पशु आहार देने की बात है, जिसके लिए हमने सीएसआर कोश में लोगों से आग्रह किया था और लोगों ने 25 से 30 लाख रुपए दिए भी हैं. जिन्हें तमाम ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को भेजा गया है, जिससे वह हरा चारा इत्यादि उपलब्ध करा सकें. नागरिकों से भी सरकार और हमारी अपेक्षा है कि वह भी अपना सहयोग करें. जिससे इस समस्या से लड़ा जा सके.
-डॉ. आदर्श सिंह, जिलाधिकारी, बाराबंकी

Intro:बाराबंकी 29 नवंबर। जिलेभर में गाय और गोवंश के लिए बने गौ आश्रय स्थल उनके मौत का केंद्र बन चुके हैं. गाय और गोवंश कटीले तारों की चहरदीवारी में सूखा भूसा खाने को है मजबूर. कांव-कांव करते हुए कौवे इस इंतजार में है कि, कब किसी गाय या गोवंश की मौत हो, जिससे उनका आहार हो. गौआश्रय स्थल की बैरिकेडिंग पर किनारे लगे लकड़ी के खंभे पर बैठा बाज पक्षी उन्हें नोच खाने के लिए टकटकी लगाए बैठा है.
जिस गाय या गोवंश की मौत हो गई है उन्हें गौआश्रय स्थल में टीन शेड से ढक दिया गया है. जिनकी मौत काफी पहले हो चुकी है उन्हें नजदीक में ही झाड़ के पास फेंक दिया गया है, जहां उन्हें कौवे , बाज और कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे हैं.
कुछ जो बीमार है और असहाय होकर जमीन पर गिर गए हैं जिनमें अब थोड़ी जान बची है उनके ऊपर भी टीन शेड डाल दिया गया है.
गो आश्रय स्थल पर औषधि केंद्र तो है लेकिन समय पर कितनी जांच हो पाती है यह कह पाना मुश्किल है. किसी भी गाय या गोवंश की स्थिति फिलहाल ठीक दिखाई नहीं दे रही है ,सभी की हड्डियां मानो दूर से ही रेखाएं बनाती हुई दिख रही है.


Body: इस बारे में सरकारी आंकड़ा बताता है कि जिले में अभी तक कुल 342 आश्रय स्थलों पर वर्तमान में 6892 गाय और गोवंश है. 409 गौवंश और गायों को अब तक सम्मानित नागरिकों द्वारा अडॉप्ट किया गया है. कुल 7226 गोवंश की फरवरी से अब तक ईयर टैगिंग की गई है . सरकारी आंकड़े के मुताबिक मात्र 73 गोवंश की मौत हुई है, जबकि सच्चाई इससे अलग है.

जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी एस सी जायसवाल का कहना है कि ज्यादातर गाय या गोवंश बूढ़े हो चुके हैं जिसके कारण उनकी मौत होती है. यह सामान्य होते हैं कभी-कभी चोट वगैरह लगने के कारण भी इनकी मौत होती है. इनके लिए पर्याप्त व्यवस्था मसलन मरने के बाद डिस्पोज करना , और वह बाहर इधर उधर ना पड़े रहे इत्यादि शामिल है.


बाराबंकी के जिलाधिकारी महोदय से जब हमने इस संदर्भ में बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे जिले भर में कुल 34 गौआश्रय स्थल है. करीब सात हजार गाय एवं गोवंश को वहां संरक्षित किया गया है. जब हमने आंकड़ा इकट्ठा किया था उसके अनुसार करीब 10000 गाय एवं गोवंश का आंकड़ा लेकर हम चल रहे थे, अभी भी 3000 को हमें संरक्षित करना है. बड़े स्तर पर निबलेट गौ आश्रय स्थल है. तीन और वृहद गौआश्रय स्थल का निर्माण किया जा रहा है. हमें 30 रुपए प्रति गोवंश प्रतिदिन के हिसाब से प्राप्त होता है, जिसमें उन्हें रखरखाव के साथ चारा एवं हरे चारे और पशु आहार देने की बात है, जिसके लिए हमने सीएसआर कोश में लोगों से आग्रह किया था, और लोगों ने 25 से 30 लाख रुपए दिए भी हैं, जिन्हें तमाम ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को भेजा गया है, जिससे वह हरा चारा इत्यादि उपलब्ध करा सकें. नागरिकों से भी सरकार और हमारी अपेक्षा है कि वह भी अपना सहयोग करें जिससे इस समस्या से लड़ा जा सके.

मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी जिस प्रकार से कह रहे हैं , यदि आंकड़ों पर जाएं तो मई तक ही करीब 50 गाय और गोवंश की मृत्यु हो चुकी थी, जबकि उस समय गौआश्रय स्थलों पर गोवंशों और गायों की संख्या भी कम थी. वर्तमान समान समय में लगातार कोई ऐसा दिन नहीं बितता, जब 34 गौशालाओं में से कहीं ना कहीं एक या दो मौतें ना होती हो. फिर भी फरवरी से अब तक 73 मौत का आंकड़ा बताया जा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि, फरवरी माह से अब तक जिलेभर में गौआश्रय स्थलों पर अनुमानित लगभग 400 के करीब मौत हो चुकी है.

जिस प्रकार से गौ आश्रय स्थलों पर मौतें हो रही हैं ,यह वास्तव में दुखद और पीड़ा पहुंचाने वाला है. सरकार को इसपर विचार करने की जरूरत है , क्योंकि जिन्हें हम माता मानते हैं, उनकी इस तरह से हो रही मौत सचमुच किसी त्रासदी से कम नहीं है . अगर किसी बेजुबान को कहीं रखा जाता है तो , उनके लिए समुचित व्यवस्था होना नितांत आवश्यक है.



Conclusion:bite -

1- डॉ. एस सी जायसवाल, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, बाराबंकी

2- डॉ. आदर्श सिंह, जिलाधिकारी ,, बाराबंकी.






रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907

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