बाराबंकी: पॉलिथीन के बढ़ रहे प्रयोग से दुखी एक कर्मचारी ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और पॉलिथीन के खिलाफ एक मुहिम ही छेड़ दी. चरन सिंह ने अपनी मुहिम को धार देने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने की यूनिट लगा डाली. मिट्टी के बर्तनों के प्रति इनकी दीवानगी देखकर अब लोग इन्हें 'कुल्हड़ वाला' के नाम से बुलाते हैं.
पॉलिथीन के नुकसान ने बदला मन
शहर के विकास भवन रोड निवासी चरन सिंह ने साल 2002 में सेल्स टैक्स विभाग में तृतीय श्रेणी कर्मचारी के तौर पर नौकरी शुरू की थी. बचपन से ही पर्यावरण प्रेमी चरन सिंह अधिकारियों के साथ सर्वे पर फील्ड में निकलते तो जगह-जगह पॉलिथीन का प्रयोग देख बहुत दुखी हो जाते थे. प्लास्टिक का कचरा जमीन पर रहने वाली प्राणियों के साथ-साथ जलीय जीवों की मौत का भी कारण बनता है. लिहाजा चरन सिंह ने मन ही मन प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम छेड़ने का फैसला कर लिया.
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नौकरी से दे दिया इस्तीफा
पर्यावरण के प्रति प्रेम होने के चलते साल 2014 में चरन सिंह ने प्लास्टिक और थर्माकोल के विकल्प के तौर पर मिट्टी के बर्तन बनाने का मन बनाया और नौकरी से इस्तीफा दे दिया. अपनी मुहिम को धार देने के लिए उन्होंने बंकी ब्लॉक के कस्बे के बाहर मोहम्मदपुर नहरिया के पास मिट्टी के बर्तन बनाने की एक छोटी सी यूनिट स्थापित कर दी.
साढ़े 3 लाख रुपये महीने का टर्नओवर
पॉलिथीन के खिलाफ शुरू की गई अपनी मुहिम को आगे बढाने के लिए चरन सिंह को खासी मशक्कत करनी पड़ी. साल 2017 आते-आते इनकी यूनिट की क्षमता बढ़ने लगी. आज इस यूनिट में रोजाना 15 से 18 हजार बर्तन तैयार होते हैं. इसमें ग्लास, कटोरी, चाय के कुल्हड़, लस्सी के ग्लास और प्लेट शामिल हैं. ढाई लाख रुपये लगाकर खोली गई इस यूनिट में शुरुआत में 50 हजार रुपये प्रति माह की बिक्री होती थी. अब प्रति माह करीब साढ़े तीन लाख रुपये की बिक्री हो रही है.
नौकरी छोड़ने का नहीं है अफसोस
चरन सिंह ने कहा कि नौकरी छोड़ने का उन्हें जरा भी गम नहीं है. वे खुश हैं, क्योंकि नौकरी के दौरान महज खुद का ही परिवार चलाते थे, लेकिन आज वे 20-25 परिवारों को रोजी रोटी दे रहे हैं. साथ ही पर्यावरण को दूषित होने से भी बचा रहे हैं.
20 से 25 परिवारों को मिल रहा रोजगार
चरन सिंह की यूनिट पर काम करने वाले लोग भी खुश हैं. आसपास के रहने वाले लोगों को एक अच्छा रोजगार मिल गया है. काम करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें जरूरत के अनुसार पैसे मिल जाते हैं, जिससे उनका परिवार का भरण पोषण हो रहा है. मिट्टी के बर्तनों के प्रति चरन सिंह की इस दीवानगी को देख लोग इन्हें 'कुल्हड़ वाला' के नाम से बुलाते हैं. इस नाम से पुकारे जाने पर इन्हें गर्व होता है.
मुहिम ला रही रंग
आत्मविश्वास से लबरेज चरनसिंह कहते हैं कि जब उनके बर्तन मार्केट में जाते तो उन्हें बहुत खुशी होती है. साथ ही इस बात की भी खुशी होती है कि आज कम से कम 15 से 20 हजार लोगों ने प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया.
क्या है प्रक्रिया
सबसे पहले मिट्टी को महीन पीसा जाता है, फिर उसको छान लिया जाता है. पानी के साथ मिट्टी को मिक्स कर एक मिक्सर नुमा मशीन से उसे क्रीम जैसा बना लिया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक चाक के जरिये प्लास्टर ऑफ पेरिस के बने सांचों में मिट्टी डालकर बर्तन तैयार किए जाते हैं. सूख जाने पर भट्ठियों में इन बर्तनों को पका लिया जाता है.
बर्तनों की खासी मांग
चरन सिंह ने बताया कि बाजार में उनके बर्तनों की खासा मांग हैं. लखनऊ, बनारस, कानपुर, फैजाबाद और सीतापुर के तमाम बड़े होटलों में उनका माल नियमित जाता है. शादी-विवाह के लिए भी लोग लगातार ऑर्डर करते हैं. निश्चय ही दिनों-दिन बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण से भारी नुकसान हो रहा है. ऐसे में पर्यावरण को शुद्ध रखने की चरन सिंह की मुहिम काफी सराहनीय है.