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बाराबंकी का बना स्टोल कोरोना में मददगार, मास्क की कमी को करेगा पूरा

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में बनने वाला स्टोल कोरोना वायरस से लड़ने में मास्क की कमी पूरा कर रहा है. इससे बुनकरों में खासा उत्साह है. मास्क के विकल्प के तौर पर स्टोल का इस्तेमाल हो रहा है.

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बाराबंकी का बना स्टोल कोरोना में मददगार
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Published : Apr 17, 2020, 12:58 PM IST

बाराबंकी: जिले में तैयार होने वाला स्टोल अब कोरोना से जंग लड़ने में मददगार साबित हो रहा है. पीएम मोदी द्वारा गमछे का प्रयोग करने की अपील के बाद से यहां का बना स्टोल यानी दुपट्टा अब मास्क की जगह लेने लगा है. उपयोगिता बढ़ने से स्टोल बनाने वाले कारीगरों में खासा उत्साह है.

बाराबंकी का बना स्टोल कोरोना में मददगार

जिले में 50 हजार से ज्यादा बुनकर कारीगर हैं जो स्टोल, गमछा और अरेबियन रुमाल बुनने का काम करते हैं. यहां के बने स्टोल की देश ही नही विदेशों में खासी धूम है. यही वजह रही कि 'एक जिला एक उत्पाद' के तहत स्टोल को चुना गया.

ओडीओपी के तहत चयनित होने पर स्टोल कारीगरों को शासन ने तमाम सुविधाएं देनी शुरू कर दी . लिहाजा इसकी डिमांड बढ़ने लगी. महिलाओं में इस स्टोल का खासा क्रेज है. चेहरे पर ढकने के चलन ने इसकी अहमियत और बढ़ा दी. अभी तक ज्यादातर महिलाएं ही इसका प्रयोग कर रही थीं लेकिन अब तो पुरुषों ने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया है. मास्क के विकल्प के तौर पर स्टोल का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है.

मास्क की तरह स्टोल का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हो इसके लिए स्टोल कारोबारी अधिकारियों के साथ जगह जगह इसका निशुल्क वितरण भी कर रहे हैं. यही नहीं जिलाधिकारी ने खुद भी इसका प्रयोग शुरू कर दिया है.

कैसे तैयार होता है स्टोल

स्टोल या स्कार्फ विस्कोस धागे से तैयार किया जाता है. कुछ धागे रंग बिरंगे होते हैं तो कुछ धागों को पहले रंगना पड़ता है. हथकरघा कारीगर एक दिन में औसतन 15 पीस तैयार कर लेते हैं फिर इन स्टोल को ग्राइंड किया जाता है, जिससे ये स्मूथ हो जाते हैं. तमाम स्टोल को बाद में भी रंगा जाता है. रंगने के बाद इन्हें सुखाया जाता है फिर इनके किनारों में नॉटिंग कराई जाती है.

नॉटिंग के बाद इनको ग्राइंड करके इनकी ब्रांडिंग की जाती है. हर काम के लिए अलग अलग कारीगर होते हैं. बुनाई कोई करता है , रंगाई कोई करता है तो नॉटिंग और ग्राइंडिंग का काम दूसरे लोग करते हैं. इस तरह स्टोल या स्कार्फ तैयार हो जाता है. ये सब करने में एक स्टोल पर करीब 80 से 100 रुपये का खर्च आता है. बड़े पैकार इसे महंगे दामों पर एक्सपोर्ट करते हैं. खाड़ी देशों , अफ्रीकन और अमेरिकन कंट्रीज में इसकी खासी डिमांड है, जहां से इन एक्सपोर्टर्स को ऑर्डर देकर माल तैयार कराया जाता है.

क्या है खासियत
स्टोल बहुत ही सॉफ्ट होता है. गर्मी में इससे ठंडक का एहसास होता है. इससे चेहरा ढकने और पोंछने में एक अजीब एहसास होता है. धुलाई करने पर आसानी से पहले जैसा हो जाता है.

मास्क का है विकल्प
स्टोल या दुपट्टे को चेहरे पर मास्क के विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है. इसमें मास्क की तरह जितनी लेयर बनाना चाहें उतनी लेयर भी बनाई जा सकती हैं.

इसे भी पढ़ें:-नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक को 50,000 करोड़ की मदद: आरबीआई गवर्नर

बाराबंकी: जिले में तैयार होने वाला स्टोल अब कोरोना से जंग लड़ने में मददगार साबित हो रहा है. पीएम मोदी द्वारा गमछे का प्रयोग करने की अपील के बाद से यहां का बना स्टोल यानी दुपट्टा अब मास्क की जगह लेने लगा है. उपयोगिता बढ़ने से स्टोल बनाने वाले कारीगरों में खासा उत्साह है.

बाराबंकी का बना स्टोल कोरोना में मददगार

जिले में 50 हजार से ज्यादा बुनकर कारीगर हैं जो स्टोल, गमछा और अरेबियन रुमाल बुनने का काम करते हैं. यहां के बने स्टोल की देश ही नही विदेशों में खासी धूम है. यही वजह रही कि 'एक जिला एक उत्पाद' के तहत स्टोल को चुना गया.

ओडीओपी के तहत चयनित होने पर स्टोल कारीगरों को शासन ने तमाम सुविधाएं देनी शुरू कर दी . लिहाजा इसकी डिमांड बढ़ने लगी. महिलाओं में इस स्टोल का खासा क्रेज है. चेहरे पर ढकने के चलन ने इसकी अहमियत और बढ़ा दी. अभी तक ज्यादातर महिलाएं ही इसका प्रयोग कर रही थीं लेकिन अब तो पुरुषों ने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया है. मास्क के विकल्प के तौर पर स्टोल का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है.

मास्क की तरह स्टोल का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हो इसके लिए स्टोल कारोबारी अधिकारियों के साथ जगह जगह इसका निशुल्क वितरण भी कर रहे हैं. यही नहीं जिलाधिकारी ने खुद भी इसका प्रयोग शुरू कर दिया है.

कैसे तैयार होता है स्टोल

स्टोल या स्कार्फ विस्कोस धागे से तैयार किया जाता है. कुछ धागे रंग बिरंगे होते हैं तो कुछ धागों को पहले रंगना पड़ता है. हथकरघा कारीगर एक दिन में औसतन 15 पीस तैयार कर लेते हैं फिर इन स्टोल को ग्राइंड किया जाता है, जिससे ये स्मूथ हो जाते हैं. तमाम स्टोल को बाद में भी रंगा जाता है. रंगने के बाद इन्हें सुखाया जाता है फिर इनके किनारों में नॉटिंग कराई जाती है.

नॉटिंग के बाद इनको ग्राइंड करके इनकी ब्रांडिंग की जाती है. हर काम के लिए अलग अलग कारीगर होते हैं. बुनाई कोई करता है , रंगाई कोई करता है तो नॉटिंग और ग्राइंडिंग का काम दूसरे लोग करते हैं. इस तरह स्टोल या स्कार्फ तैयार हो जाता है. ये सब करने में एक स्टोल पर करीब 80 से 100 रुपये का खर्च आता है. बड़े पैकार इसे महंगे दामों पर एक्सपोर्ट करते हैं. खाड़ी देशों , अफ्रीकन और अमेरिकन कंट्रीज में इसकी खासी डिमांड है, जहां से इन एक्सपोर्टर्स को ऑर्डर देकर माल तैयार कराया जाता है.

क्या है खासियत
स्टोल बहुत ही सॉफ्ट होता है. गर्मी में इससे ठंडक का एहसास होता है. इससे चेहरा ढकने और पोंछने में एक अजीब एहसास होता है. धुलाई करने पर आसानी से पहले जैसा हो जाता है.

मास्क का है विकल्प
स्टोल या दुपट्टे को चेहरे पर मास्क के विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है. इसमें मास्क की तरह जितनी लेयर बनाना चाहें उतनी लेयर भी बनाई जा सकती हैं.

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