बाराबंकी: साहित्य और संगीत में दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई हो जिसने खु़मार बाराबंकवी का नाम न सुना हो. नगर के सट्टी बाजार इलाके में डॉ गुलाम मोहम्मद के घर 15 सितंबर 1919 को पैदा हुए खु़मार का असली नाम मोहम्मद हैदर खान था. बचपन में प्यार से लोग इन्हें दुल्लन कह कर बुलाया करते थे.
काॅलेज के एक मुशायरे ने बनाया हैदर को ख़ुमार बाराबंकवी
शहर के सिटी इंटर कॉलेज से आठवीं पास करने के बाद इन्होंने जीआइसी में अपना दाखिला लिया. यहां कॉलेज ने एक मुशायरे का आयोजन किया था. उस मुशायरे में पहली बार ख़ुमार ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
फिल्मी दुनिया से बहुत जल्द ऊब गए थे ख़ुमार
खु़मार मकबूल हुए तो चालीस के दशक में मुंबई चले गए. वहां उनकी मुलाकात मशहूर फिल्म मेकर एआर कारदार से हुई और उन्हें फिल्मों में गीत लिखने का काम भी मिल गया. कई फिल्मों में गीत लिखे लेकिन अपने खुले मिजाज के चलते जल्द ही वे फिल्मी दुनिया से ऊब गए और वापस लौट आए.
मुशायरों की जान माने जाते थे ख़ुमार बाराबंकवी
फिर जब तक जिंदा रहे मुशायरों में शामिल होते रहे. उनके वक्त में जिगर मुरादाबादी और जोश मलीहाबादी बड़े शायर थे. खु़मार तरन्नुम से अपनी गजलें पढ़ते थे लिहाजा जल्द ही वे उनके समकक्ष हो गए. एक वक्त ऐसा भी आया कि वे मुशायरों की जान माने जाने लगे. यहां तक कि बगैर उनकी मौजूदगी कोई भी मुशायरा अधूरा माना जाता था.
ख़ुमार के नाम से है बाराबंकी की पहचान
उनके परिवार को फक्र है कि ख़ुमार के नाम से बाराबंकी की पहचान है. इनके सीने उस वक्त तन जाते हैं जब इनका किसी महफिल में खुमार के घर वाले कह कर इनका तआरुफ कराया जाता है.
ख़ुमार के फिल्मी नगमें और ग़ज़लों का कलेक्शन
ख़ुमार ने शाहजहां , बारादरी, हलचल,लव ऐंड गॉड , साज और आवाज जैसी करीब दो दर्जन फिल्मों में नगमे लिखे. यहीं नही उनकी ग़ज़लों के हदीस ए दीगरा, रक्स ए मय, आतिश ए तर और शब ए ताब जैसे चार कलेक्शन भी प्रकाशित हुए, जिनको सुनकर या पढ़कर बिना गुनगुनाये नहीं रहा जा सकता.
ख़ुमार साहब इतने सादगी पसंद थे कि उनके अंदर कभी कोई ख्वाहिश नहीं रही और यही वजह रही कि उन्होंने अपना मकान तक नहीं बनवाया. यही सादगी हमारे परिवार में आज भी कायम है.
-शादाब खान, ख़ुमार के पौत्रइतना बड़ा कद होने के बावजूद वो जब भी शहर से निकलते थे हर किसी को आदाब करना नही भूलते थे. यहां तक कि बगैर उनकी मौजूदगी कोई भी मुशायरा अधूरा माना जाता था.
-हशमत उल्ला, ख़ुमार के करीबी