बाराबंकी: केला उत्पादन में बाराबंकी के किसान भले ही सूबे में अव्वल हों, लेकिन पकाने में सबसे पीछे हैं. यहीं वजह है कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है. राइपनिंग चैंबर न होने से किसानों की आय दोगुनी करने की पीएम मोदी की मंशा परवान नहीं चढ़ पा रही है.
500 किसान करते हैं केले की खेती
कुशीनगर के बाद प्रदेश में केला उत्पादन में बाराबंकी जिला दूसरे नंबर पर है. यहां की मिट्टी और जलवायु दोनों केले की खेती के लिए काफी मुफीद हैं. जिले में करीब 2400 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती की जाती है. 500 के करीब किसान केले की खेती कर हर साल खासा मुनाफा कमाते हैं.
केले पकाने की नहीं है कोई सुविधा
जिले में हरख, मसौली, सिरौलीगौसपुर, त्रिवेदीगंज, बंकी और सूरतगंज ब्लाक में केले की अच्छी खेती होती है. किसान यहां केले का उत्पादन तो करते हैं, लेकिन पकाने की कोई सुविधा न होने से मजबूरन सस्ते दामों पर ही कच्चे केले को बेचना पड़ता है. अगर केला पकाकर बेचा जाए तो यह दोगुने दामों पर बिकेगा. इससे किसानों की आय दोगुनी होगी. वहीं केले की खेती करने के लिए और भी किसान प्रेरित होंगे.
किसानों को नहीं होता अच्छा मुनाफा
किसानों का मानना है कि केला पकाने के संसाधन और बाजार मिल जाएं तो उनकी आय में खासा इजाफा हो सकता है. व्यापारी कच्चे केले खरीद कर सिर्फ उन्हें पकाते हैं और दोगुने दाम पर बेचा करते हैं. किसानों की मांग है कि मंडी परिसर में भारी क्षमता का राइपनिंग चेंबर बनवाया जाए, जिससे किसान खुद अपना केला पकाकर मंडी में बेंच सकें. इससे कोल्ड स्टोरेज में केला भंडारण का खर्च बचेगा और साथ ही केला पकाने के लिए महंगे दाम नहीं चुकाने पड़ेंगे.
उद्यान अधिकारी भी मानते हैं कि किसानों को अपेक्षाकृत लाभ नहीं मिल पा रहा है. शासन से सब्सिडी मिलने के बाद भी राइपनिंग प्लांट महंगा होने के चलते किसान इसे लगवाने से पीछे होता जा रहा हैं. इनका कहना है कि सामूहिक रूप से बड़ा प्लांट लगवाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं और साथ ही किसानों की मांग को लेकर शासन में पत्र भी लिखे जाएंगे.
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