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बांदा में फिर लगा आशिकों का मेला, हजारों की संख्या में पहुंचे लोग

बांदा में मकर संक्रांति के अवसर पर हर साल आशिकों का मेला लगता है. इस साल भी भव्य मेले का आयोजन हुआ. इस मौके पर हजारों की संख्या में पहुंचे लोगों ने मंदिर में दर्शन करने के साथ ही मेले का लुत्फ उठाया.

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आशिकों के मेले का आयोजन.
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Published : Jan 17, 2020, 10:01 AM IST

बांदा: मकर संक्रांति का पर्व देश के हर हिस्से में मनाया जाता है, लेकिन बुन्देलखण्ड के बांदा में मकर संक्राति में केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है. प्रेम को पाने की चाहत में अपने प्राणों की बलि देने वाले नट महाबली के प्रेम मन्दिर में ख़ास मकर संक्राति के दिन हजारों जोड़े विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मानते हैं. हर साल की तरह इस बार भी किले के नीचे बने नटबाबा के मन्दिर में मेले का आयोजन किया गया, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु शामिल होने पहुंचे.

आशिकों के मेले का आयोजन.

मकर संक्रांति के दिन बांदा शहर के किनारे केन नदी के उस पार बने भूरागढ़ दुर्ग के ठीक नीचे हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. ये वो मन्दिर है, जहां आने वालों की हर मन्नत पूरी होने की मान्यता है. इस मन्दिर में विराजमान नटबाबा भले ही इतिहास में दर्ज न हो, लेकिन बुन्देलियों के दिलो में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है. ये जगह आशिकों के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं है. मकर संक्रांति के मौके पर जहां शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं, तो वहीं सैकड़ों प्रेमी अपने मनपसंद साथी के लिए यहां मन्नत मांगते हैं.

मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे. यहां से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गांव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था. किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से विवाह की जिद की, लेकिन किलेदार ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन सूत (कच्चे धागे) का इस्तेमाल कर नदी पार कर किले तक पहुंचेगा तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी. प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और खास मकर संक्रांति के दिन प्रेमी नट सूत के सहारे किले तक जाने लगा. प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली, लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुँचा किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया.

पढ़ें: महोबाः महिला का मोबाइल हुआ ब्लास्ट, दिखाई समझदारी और टाला हादसा

इसकी वजह से नट बीरन ऊंचाई से चट्टानों में गिर गया और उसकी वहीं मौत हो गई. किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गई और उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गई. किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गई, जो बाद में मंदिर में बदल गई. आज यह नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है.

बांदा: मकर संक्रांति का पर्व देश के हर हिस्से में मनाया जाता है, लेकिन बुन्देलखण्ड के बांदा में मकर संक्राति में केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है. प्रेम को पाने की चाहत में अपने प्राणों की बलि देने वाले नट महाबली के प्रेम मन्दिर में ख़ास मकर संक्राति के दिन हजारों जोड़े विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मानते हैं. हर साल की तरह इस बार भी किले के नीचे बने नटबाबा के मन्दिर में मेले का आयोजन किया गया, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु शामिल होने पहुंचे.

आशिकों के मेले का आयोजन.

मकर संक्रांति के दिन बांदा शहर के किनारे केन नदी के उस पार बने भूरागढ़ दुर्ग के ठीक नीचे हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. ये वो मन्दिर है, जहां आने वालों की हर मन्नत पूरी होने की मान्यता है. इस मन्दिर में विराजमान नटबाबा भले ही इतिहास में दर्ज न हो, लेकिन बुन्देलियों के दिलो में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है. ये जगह आशिकों के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं है. मकर संक्रांति के मौके पर जहां शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं, तो वहीं सैकड़ों प्रेमी अपने मनपसंद साथी के लिए यहां मन्नत मांगते हैं.

मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे. यहां से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गांव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था. किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से विवाह की जिद की, लेकिन किलेदार ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन सूत (कच्चे धागे) का इस्तेमाल कर नदी पार कर किले तक पहुंचेगा तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी. प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और खास मकर संक्रांति के दिन प्रेमी नट सूत के सहारे किले तक जाने लगा. प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली, लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुँचा किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया.

पढ़ें: महोबाः महिला का मोबाइल हुआ ब्लास्ट, दिखाई समझदारी और टाला हादसा

इसकी वजह से नट बीरन ऊंचाई से चट्टानों में गिर गया और उसकी वहीं मौत हो गई. किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गई और उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गई. किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गई, जो बाद में मंदिर में बदल गई. आज यह नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है.

Intro:SLUG- यहाँ साल में एक बार लगता है आशिकों का मेला, हजारों की संख्या में पहुँचते हैं लोग 
PLACE- BANDA
REPORT- ANAND TIWARI
DATE- 16-01-2020
एंकर- मकर संक्रांति का पर्व यूँ तो देश के हर हिस्से में मनाया जाता है लेकिन बुन्देलखण्ड के बाँदा में मकर संक्राति में केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है। प्रेम को पाने की चाहत में अपने प्राणों की बलि देने वाले नट महाबली के प्रेम मन्दिर में ख़ास मकर संक्राति के दिन हज़ारो जोड़े विधिवत पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मानते है! और हर साल इस किले के नीचे बने नटबाबा के मन्दिर में मेला भी लगता है, जिसमे दूर दूर से श्रद्धालु आते है।Body:वीओ- ख़ास मकर संक्रांति दिन बाँदा शहर के किनारे केन नदी के उस पार बने भूरागढ़ दुर्ग के ठीक नीचे हज़ारो लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता है और किले की प्राचीर की नींव पर ही एक मंदिर अचानक आस्था के केंद्र में बदल जाता है। जी हाँ,ये नट महाबली का मन्दिर है। ये वो मन्दिर है जहाँ आने वालो की हर मन्नत पूरी होने की मान्यता है। इस मन्दिर में विराजमान नटबाबा भले इतिहास में दर्ज न हो लेकिन बुन्देलियों के दिलो में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है। ये जगह आशिको के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं,मकर संक्रांति के मौके पर शादीशुदा जोड़े यहाँ आशीर्वाद लेने आते हैं तो सैकड़ो प्रेमी प्रेमिकाएं अपने मनपसंद साथी के लिए यहाँ मन्नत मांगते हैं।
Conclusion:वीओ 2- मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग  के किलेदार थे।यहाँ से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गाँव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था। किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से इसी नट से विवाह की ज़िद की लेकिन किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पर बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी सूत (कच्चा धागे की रस्सी) पर चढ़कर पार कर किले आ जाए तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी। प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और ख़ास मकर संक्रांति के दिन प्रेमी नट सूत में चढ़कर किले तक जाने लगा। प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुँचा, किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया और नट बीरन ऊँचाई से चट्टानों में गिर गया और उसकी वहीँ मौत हो गयी। किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखि तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गयी। किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गयी जो बाद में मंदिर में बदल गयी। आज ये नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है।

बाइट : दिलीप जैन, स्थानीय
बाइट : पूजा राजपूत, स्थानीय
बाइट: रतन यादव, मंदिर पुजारी

ANAND TIWARI
BANDA
9795000076

सर इस स्टोरी को अगर डेस्क पर एडिट कर लेंगे तो अच्छी बन जायेगी इसीलिए ज्यादा से ज्यादा विजुवल भेज दिए हैं 
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