बांदा: चकबंदी की समस्या को लेकर मंगलवार को सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण कमिश्नर ऑफिस पहुंचे. जहां पर उन्होंने अपर आयुक्त को अपनी समस्या को लेकर ज्ञापन दिया. ज्ञापन के माध्यम से उन्होंने बताया कि इनके गांव में 1972 में चकबंदी की प्रक्रिया हुई थी और लोगों को जमीन मिली थी, लेकिन मगर वर्तमान में चकबंदी निरस्त हो जाने के कारण पहले की तरह आधार वर्षों में मूल खातेदारों के नाम नई खतौनी बन गई है और 50 वर्ष बीतने के बाद अब इस कार्रवाई में पूरा गांव प्रभावित है. ज्ञापन में लिखा कि अगर इस प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया गया तो ज्यादातर किसान भूमिहीन हो जाएंगे और भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएंगे.
ग्रामीणों ने रखी समस्याएं
बिसंडा थाना क्षेत्र के ओरन गांव के रहने वाले सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण चित्रकूट धाम परिक्षेत्र के कमिश्नर गौरव दयाल के कार्यालय पर पहुंचे. जहां पर इन्होंने अपर आयुक्त को चकबंदी की समस्या को लेकर ज्ञापन दिया. ग्रामीणों ने बताया कि अगर इनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाता तो गांव के ज्यादातर लोग एक-एक दाने के लिए मोहताज हो जाएंगे या तो लोग भूखे मरने लगेंगे या फिर आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इसलिए इनकी मांग पर विचार किया जाए.
समस्या लेकर पहुंचे ग्रामीणों ने बताया कि हम लोग बिसंडा थाना क्षेत्र के ओरन गांव से आए हैं. हमारे यहां सन 1972 में चकबंदी की प्रक्रिया हुई थी और तब से लेकर आज तक चकबंदी चली, लेकिन कब्जा परिवर्तन नहीं हुआ. और सन 1972 में चकबंदी के दौरान आपस में लोगों की जमीनों में अदला-बदली हुई, तब से लोग अपनी अपनी जमीनों में काबिज हैं, लेकिन 2016 में चकबंदी रिमांड हो गई और इस प्रक्रिया को अब निरस्त किया जा रहा है और 1972 की प्रक्रिया को फिर लागू किया जा रहा है. जिससे यह होगा कि जिन लोगों के पास अपनी जमीने हैं, वह उनके पास से चली जाएंगी. और लोग भूखे मरने लगेंगे और गांव में वाद-विवाद और झगड़े होंगे. इसलिए हमारी मांग है कि आकार पत्र 23 का अनुपालन किया जाए. जिससे लोग भूमिहीन न हो सके.