बांदा: डॉक्टर को धरती के भगवान का दर्जा इसलिए दिया गया है क्योंकि वो लोगों की जान बचाने का काम करते हैं. डॉक्टर कभी नहीं चाहता कि उसके सामने पड़े मरीज की मौत हो जाए. हालांकि, आज के दौर में यह पेशा भी व्यवसायिक होता चला जा रहा है. और आए दिन धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों पर कहीं न कहीं से लापरवाही, संवेदनहीनता व अन्य आरोपों वाली खबरें भी सामने आती रहती हैं, लेकिन आज भी ऐसे डॉक्टर मौजूद हैं जो अपने सामने पड़े मरीज को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और उसे बचाने के लिए अपना जी जान लगा देते हैं. जिले में भी एक मामला सामने आया है जहां पर एक महिला चिकित्सक ने ऑपरेशन थियेटर में अपने सामने जिंदगी और मौत से जूझ रही एक महिला मरीज को बचाने के लिए उसे अपना ही खून दे दिया. और महिला चिकित्सक के इस कार्य की हर कोई तारीफ कर रहा है.
बता दें कि मरका थाना क्षेत्र के भभुआ गांव की रहने वाली मीना नाम की महिला को उसका पति प्रदीप लेबर पेन होने पर मेडिकल कॉलेज लाया था. जहां पर महिला की जब जांच की गई तो पता चला कि समय से पहले उसे लेबर पेन हो रहा है, जिसके बाद यहां पर तैनात स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलम सिंह ने उसका ऑपरेशन किया, जिसके बाद बच्चे की हालत थोड़ा खराब होने के चलते उसे प्रयागराज रेफर कर दिया गया और मीना के परिजन बच्चे को लेकर प्रयागराज चले गए. वहीं, मीना के ब्लड में भी इंफेक्शन होने के चलते उसे तत्काल एक यूनिट ब्लड की आवश्यकता थी, लेकिन मरीज के साथ कोई तीमारदार न होने के चलते डॉक्टर नीलम ने उसे अपना ही खून देकर उसकी जान बचा ली.
मेडिकल कॉलेज की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलम सिंह ने बताया कि हमारे यहां एक मीना देवी नाम की महिला को 6/7 अक्टूबर को भर्ती कराया गया था. उसको समय से पहले लेबर पेन होने लगा था, जिसके बाद हमने उसके ऑपरेशन का निर्णय लिया और उसका ऑपरेशन किया. और क्योंकि बच्चा समय से पहले था. इसलिए उसे 3 दिन एनआईसीयू में रखा गया था. और एक इंजेक्शन की आवश्यकता को लेकर उसे प्रयागराज के चिल्ड्रन हॉस्पिटल रेफर किया गया था, जहां पर बच्चा भर्ती है. यहां पर महिला मरीज के साथ सिर्फ एक तीमारदार के रूप में उसका बूढ़ा पिता था. बाकी सब लोग बच्चे को लेकर प्रयागराज चले गए थे. वहीं, महिला के ब्लड में इंफेक्शन की समस्या थी और वह जीवन रक्षक दवाओं पर ही चल रही थी. जिस पर उसे एक फ्रेश ब्लड की तत्काल जरूरत थी, लेकिन उसको ब्लड देने वाला वहां पर कोई नहीं था. ऐसे में मेरा ब्लड ग्रुप उसके ब्लड ग्रुप से मैच कर रहा था. उसे O पॉजिटिव ब्लड की जरूरत थी और मेरा भी ब्लड ग्रुप सेम था. इसलिए उसकी जान बचाने का एक ही रास्ता था कि मैं उसे फौरन अपना खून दे दूं. मानवता के रूप में उसे अपना एक यूनिट ब्लड दिया और उसे फिर फ्रेश ब्लड चढ़ा दिया गया, जिससे उसकी जान बच गई.
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पैसे से बढ़कर है लोगों की दुआएं
आज के दौर में जहां कई लोग ऐसे हैं जो अपनी जिम्मेदारी को व्यवसाय के रूप में चला रहे हैं. उनके लिए डॉक्टर नीलम सिंह ने कहा कि लोगों की दुआएं पैसे से बढ़कर हैं. इसलिए मेरा यही कहना है की डॉक्टर पैसे भी कमाए, लेकिन लोगों की दुआएं भी ले. क्योंकि इससे बड़ा धन और कुछ नहीं है.