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बलरामपुर: हजारों साल पुराना है नव देवी का मंदिर, नवरात्रि पर उमड़ती है भीड़

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Published : Oct 6, 2019, 4:58 PM IST

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर स्थित तुलसीपुर में देवीपाटन शक्तिपीठ से तकरीबन 500 मीटर दूर हजारों साल पुराना नवदेवी का मंदिर है. शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में नेपाल नरेश ने कराया था.

हजारों साल पुराना है नव देवी का मंदिर.

बलरामपुर: जिले के तुलसीपुर स्थित देवीपाटन शक्तिपीठ से तकरीबन 500 मीटर दूर नव देवी का मंदिर है. इस मंदिर का अपना पौराणिक महत्व के साथ ही पुराना इतिहास है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित मां दुर्गा की पिंडी से सालों साल से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है.

हजारों साल पुराना है नव देवी का मंदिर.

क्या है इतिहास
दुनिया भर में स्थापित मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में शुमार देवीपाटन मंदिर तुलसीपुर के उत्तर दिशा में तकरीबन 500 मीटर दूरी पर हजारों साल पुराना एक दुर्गा मंदिर स्थित है, जिसे नव देवी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. शारदीय नवरात्रि के अलावा नवरात्रों और अन्य महीनों की विशेष तिथियों में इस पर श्रद्धालुओं की न केवल भीड़ लगी रहती है. बल्कि यहां पर तरह-तरह के आयोजन और पूजन भी किए जाते हैं.

1244 में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार
इस बारे में बात करते हुए महंत गोपाल नाथ बताते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना है. इसकी वास्तविक जानकारी शायद किसी को नहीं है. उनके अनुसार इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. इसका उल्लेख दरवाजे पर भी अंकित है. मंदिर के विषय में लोग एक प्रसिद्ध कहानी सुनाते हैं. वह बताते हैं कि राजा सुहेलदेव के भाई राजा बेन को कुष्ठ रोग हो गया था, इसलिए तमाम लोगों से मंत्रणा के बाद उनके भाई ने उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया. राज्य से बाहर निकाले जाने के बाद राजा बेन वीराने जंगल में चले आए और यहीं पर नव दुर्गा की प्रतिमा पर साधना करने लगे. कई वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद माता नव दुर्गा उन पर प्रसन्न हुईं और उनका कुष्ठ रोग माता के वरदान से ठीक हो गया. इस साथ ही माता ने उन्हें एक और वरदान देते हुए दूसरे राज्य के रूप में देवीपाटन किला भेंट किया था.

इसे भी पढ़ें- नवरात्र का आठवां दिनः इस मंत्र और विधि से करें महागौरी की पूजा

कहा जाता है कि उनके द्वारा ही इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था. लोग बताते हैं कि यहां पर पिंड के रूप में गर्भगृह में जो माता की मूर्ति स्थापित है, वह हजारों साल पहले खुदाई में निकली थी. खुदाई के समय उसमें फावड़ा लग जाने के कारण खून की धार बहने लगी थी. इस मंदिर में उस पिंड के अलावा मां दुर्गा की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है.

क्या है विशेषता
लोग बताते हैं कि देवीपाटन शक्तिपीठ के निकट स्थित होने के कारण इस मंदिर की अपनी विशेषता है. यहां पर मां दुर्गा की जो पिंडी स्थापित है, वहां पर सालों से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है. लोग बताते हैं कि इसका जुड़ाव सीधे देवीपाटन शक्तिपीठ परिसर में स्थित कर्ण सरोवर से है, जहां पानी बिना किसी अतिरिक्त सोर्स से बहकर यहां पर धीरे-धीरे रिसता है.

यहां कई सालों से दर्शन करने के लिए और माता की सेवा करने के लिए आने वाले श्रद्धालु रामबहादुर बताते हैं कि मैं बचपन से ही इस मंदिर पर आता हूं और यहां से मेरी प्रगाढ़ आस्था जुड़ी हुई है. नवरात्रि के दौरान जो भी इस मंदिर में आता है और मां की पिंडी की दर्शन करके उनसे मिन्नतें करता है तो मां उसकी मुरादें जरूर पूरा करती हैं.

नवरात्रि में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं. जो भी सच्चे दिल से माता की प्रार्थना कर उनका दर्शन-पूजन करता है. माता उसकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूर्ण करती हैं.
महंत गोपाल नाथ, पुजारी

बलरामपुर: जिले के तुलसीपुर स्थित देवीपाटन शक्तिपीठ से तकरीबन 500 मीटर दूर नव देवी का मंदिर है. इस मंदिर का अपना पौराणिक महत्व के साथ ही पुराना इतिहास है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित मां दुर्गा की पिंडी से सालों साल से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है.

हजारों साल पुराना है नव देवी का मंदिर.

क्या है इतिहास
दुनिया भर में स्थापित मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में शुमार देवीपाटन मंदिर तुलसीपुर के उत्तर दिशा में तकरीबन 500 मीटर दूरी पर हजारों साल पुराना एक दुर्गा मंदिर स्थित है, जिसे नव देवी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. शारदीय नवरात्रि के अलावा नवरात्रों और अन्य महीनों की विशेष तिथियों में इस पर श्रद्धालुओं की न केवल भीड़ लगी रहती है. बल्कि यहां पर तरह-तरह के आयोजन और पूजन भी किए जाते हैं.

1244 में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार
इस बारे में बात करते हुए महंत गोपाल नाथ बताते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना है. इसकी वास्तविक जानकारी शायद किसी को नहीं है. उनके अनुसार इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. इसका उल्लेख दरवाजे पर भी अंकित है. मंदिर के विषय में लोग एक प्रसिद्ध कहानी सुनाते हैं. वह बताते हैं कि राजा सुहेलदेव के भाई राजा बेन को कुष्ठ रोग हो गया था, इसलिए तमाम लोगों से मंत्रणा के बाद उनके भाई ने उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया. राज्य से बाहर निकाले जाने के बाद राजा बेन वीराने जंगल में चले आए और यहीं पर नव दुर्गा की प्रतिमा पर साधना करने लगे. कई वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद माता नव दुर्गा उन पर प्रसन्न हुईं और उनका कुष्ठ रोग माता के वरदान से ठीक हो गया. इस साथ ही माता ने उन्हें एक और वरदान देते हुए दूसरे राज्य के रूप में देवीपाटन किला भेंट किया था.

इसे भी पढ़ें- नवरात्र का आठवां दिनः इस मंत्र और विधि से करें महागौरी की पूजा

कहा जाता है कि उनके द्वारा ही इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था. लोग बताते हैं कि यहां पर पिंड के रूप में गर्भगृह में जो माता की मूर्ति स्थापित है, वह हजारों साल पहले खुदाई में निकली थी. खुदाई के समय उसमें फावड़ा लग जाने के कारण खून की धार बहने लगी थी. इस मंदिर में उस पिंड के अलावा मां दुर्गा की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है.

क्या है विशेषता
लोग बताते हैं कि देवीपाटन शक्तिपीठ के निकट स्थित होने के कारण इस मंदिर की अपनी विशेषता है. यहां पर मां दुर्गा की जो पिंडी स्थापित है, वहां पर सालों से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है. लोग बताते हैं कि इसका जुड़ाव सीधे देवीपाटन शक्तिपीठ परिसर में स्थित कर्ण सरोवर से है, जहां पानी बिना किसी अतिरिक्त सोर्स से बहकर यहां पर धीरे-धीरे रिसता है.

यहां कई सालों से दर्शन करने के लिए और माता की सेवा करने के लिए आने वाले श्रद्धालु रामबहादुर बताते हैं कि मैं बचपन से ही इस मंदिर पर आता हूं और यहां से मेरी प्रगाढ़ आस्था जुड़ी हुई है. नवरात्रि के दौरान जो भी इस मंदिर में आता है और मां की पिंडी की दर्शन करके उनसे मिन्नतें करता है तो मां उसकी मुरादें जरूर पूरा करती हैं.

नवरात्रि में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं. जो भी सच्चे दिल से माता की प्रार्थना कर उनका दर्शन-पूजन करता है. माता उसकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूर्ण करती हैं.
महंत गोपाल नाथ, पुजारी

Intro:(नोट :- आदरणीय अश्विन कुमार जी के ध्यानार्थ)

शारदीय नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की होने वाली महापूजा में पूरा देश सराबोर नजर आता है। ईटीवी बलरामपुर जिले के उन दुर्गा मंदिरों तक जा रहा है और आपको उनके ऐतिहासिक महत्व और यहां से जुड़ी कहानियों को बताने का काम कर रहा है। इसी के तहत ईटीवी भारत की टीम आज जिले के तुलसीपुर में स्थित देवीपाटन शक्तिपीठ से तकरीबन 500 मीटर दूर पर स्थित नव देवी मंदिर पहुंची। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्व है और अपना इतिहास भी।


Body:क्या है इतिहास :-
दुनिया भर में स्थापित माँ दुर्गा कब 51 शक्तिपीठों में शुमार देवीपाटन मंदिर तुलसीपुर के उत्तर दिशा में तकरीबन 500 मीटर दूरी पर हजारों साल पुराना एक दुर्गा मंदिर स्थित है। इसे नव देवी मंदिर के नाम से जानते हैं। शारदीय नवरात्र के अलावा सभी तरह के नवरात्रों और अन्य महीनों की विशेष तिथियों में इस पर श्रद्धालुओं की न केवल भीड़ लगी रहती है। बल्कि यहां पर तरह तरह आयोजन और पूजन भी किए जाते हैं।
इस बारे में बात करते हुए महंत गोपाल नाथ बताते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना है। इसकी वास्तविक जानकारी शायद किसी को नहीं है। उनके अनुसार इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था। जिसका उल्लेख दरवाजे पर अंकित है। मंदिर के विषय में लोग एक प्रसिद्ध कहानी सुनाते हैं। वह बताते हैं कि राजा सुहेलदेव के भाई राजा बेन को कुष्ठ रोग हो गया। इसलिए तमाम लोगों से मंत्रणा के बाद उनके भाई ने उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया। राज्य से बाहर निकाले जाने के बाद राजा बेन वीराने जंगल में चले आए और यहीं पर नव दुर्गा की प्रतिमा पर साधना करने लगे। कई वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद माता नव दुर्गा उन पर प्रसन्न हुई और उनका कुष्ठ रोग माता के वरदान से ठीक हो गया। इस साथ ही माता ने उन्हें एक और वरदान देते हुए दूसरे राज्य के रूप में देवीपाटन किला भेंट किया और यहां पर शासन करने को कहा। कहा जाता है कि उनके द्वारा ही इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। लोग बताते हैं कि यहां पर पिंड के रूप में गर्भगृह में जो माता की मूर्ति स्थापित है वह हजारों साल पहले खुदाई में निकली थी। खुदाई के समय उसमें फावड़ा लग जाने के कारण खून की धार बहने लगी थी। इस मंदिर में। उस पिंड के अलावा मां दुर्गा की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है।
क्या है विशेषता :-
लोग बताते हैं कि देवीपाटन शक्तिपीठ के निकट स्थित होने के कारण इस मंदिर की अपनी विशेषता है। यहां पर मां दुर्गा की जो पिंडी स्थापित है। वहां पर सालों साल से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है। लोग बताते हैं कि इसका जुड़ाव सीधे देवीपाटन शक्तिपीठ परिसर में स्थित कर्ण सरोवर से है। जहां पानी बिना किसी अतिरिक्त सोर्स से बहकर यहां पर धीरे धीरे रिसता है।


Conclusion:यहां कई सालों से दर्शन करने के लिए और माता की सेवा करने के लिए आने वाले श्रद्धालु रामबहादुर बताते हैं कि मैं बचपन से ही इस मंदिर पर आता हूं। यहां से मेरी प्रगाढ़ आस्था जुड़ी हुई है। नवरात्रों के दौरान जो भी इस मंदिर में आता है और मां की पिंडी की दर्शन करके उनसे मिन्नते करता है। मां उसकी मुरादें जरूर पूरा करती है।
वहीं, महंत गोपाल नंद ने हमसे बात करते हुए कहा कि नवरात्र में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं। दुकानदार यहां प्रसाद की दुकान लगाते हैं। वह कहते हैं कि जो भी सच्चे दिल से माता की प्रार्थना करके उनका दर्शन करता है। उनका पूजन करता है। वह उस पर अवश्य प्रसन्न होती हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं।
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