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जानिए बलरामपुर के दुर्गा मंदिर की महिमा, यहां से जुड़ी है सभी धर्मों के लोगों की आस्था - balrampur balapur village durga temple

यूपी के बलरामपुर के बालापुर गांव में दुर्गा मां का प्राचीन मंदिर स्थित है. मान्यता है कि यहां सभी सम्प्रदायों के लोग माता की पूजा-अर्चना करते हैं. वहीं चैत्र नवरात्रि में नेपाल के दांग से चलकर आने वाली पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव भी यह मंदिर ही है.

दुर्गा माता का प्राचीन मंदिर
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Published : Oct 6, 2019, 8:44 PM IST

बलरामपुर: जहां पूरे देश भर में शारदीय नवरात्रि की धूम है. वहीं जिले में भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. गांव से लेकर शहरों तक मां दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की गई है. वहीं जिले के बालापुर गांव में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां सभी सम्प्रदायों के लोग मां की पूजा-अर्चना करने आते हैं और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए मन्नत मांगते हैं.

मां दुर्गा के इस मंदिर में हर धर्म के लोग रखते हैं आस्था.

पढ़ें: बलरामपुर के इस मंदिर में लोग चढ़ाते हैं खड़ाऊं और ईंटें, होती हैं मनोकामनाएं पूरी

सभी धर्मों के लोग रखते हैं मां दुर्गा में आस्था
जिले के तुलसीपुर तहसील स्थित बालापुर गांव में दुर्गा माता का प्राचीन मंदिर स्थित है. सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर पर यहां के स्थानीयों के अलावा वनवासी थारू समुदाय और मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी गहरी आस्था है. यहां पर न केवल दोनों नवरात्रि में ही श्रद्धालुओं की धूम रहती है, बल्कि स्थानीय अपने सभी मांगलिक कार्यक्रम करने से पहले यहां दर्शन करते हैं. इसके साथ ही कई लोग अपने मांगलिक कार्यक्रम भी यहीं आयोजित करते हैं.

मंदिर का निर्माण उदयभान शुक्ला ने कराया था
मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी रामजस ने ईटीवी भारत को जानकारी देते हुए बताया कि यह मंदिर तो काफी पुराना है लेकिन लगभग 35 साल पहले यहां पर मात्र पिंड ही स्थापित था और कोई मंदिर नहीं बना हुआ था. जब एक घटना घटित हुई और लोगों को यह पता चला कि इस पिंड पर मंदिर का निर्माण करवाया जाना चाहिए. तब जन सहयोग से इस मंदिर का निर्माण करवाया गया. मंदिर के निर्माण का श्रेय यहां के एक वन अधिकारी उदयभान शुक्ला को जाता है, उन्होंने इस मंदिर के निर्माण के लिए काफी प्रयास किए थे.

मां का मंदिर ही है पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव
पुजारी रामजस ने बताया कि हर वर्ष चैत्र नवरात्रि में नेपाल के दांग से चलकर आने वाली पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव यही मंदिर है. लोग यहां पर रुकते हैं और कुछ घंटे के विश्राम के बाद चले जाते हैं. इस दौरान हजारों लाखों श्रद्धालु यहां पर माता के दर्शन के लिए आते हैं.

स्थानीय निजामुद्दीन ने ईटीवी भारत को दी जानकारी
इस मंदिर की महत्वता इसी से देखी जा सकती है कि यहां पर समुदायों की या धर्मों की बेड़ियां टूट जाती है. यहां पर सभी धर्मों और जातियों के लोग आकर माता की पूजा-अर्चना करते हैं. साथ ही यहां मांगलिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.

बलरामपुर: जहां पूरे देश भर में शारदीय नवरात्रि की धूम है. वहीं जिले में भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. गांव से लेकर शहरों तक मां दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की गई है. वहीं जिले के बालापुर गांव में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां सभी सम्प्रदायों के लोग मां की पूजा-अर्चना करने आते हैं और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए मन्नत मांगते हैं.

मां दुर्गा के इस मंदिर में हर धर्म के लोग रखते हैं आस्था.

पढ़ें: बलरामपुर के इस मंदिर में लोग चढ़ाते हैं खड़ाऊं और ईंटें, होती हैं मनोकामनाएं पूरी

सभी धर्मों के लोग रखते हैं मां दुर्गा में आस्था
जिले के तुलसीपुर तहसील स्थित बालापुर गांव में दुर्गा माता का प्राचीन मंदिर स्थित है. सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर पर यहां के स्थानीयों के अलावा वनवासी थारू समुदाय और मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी गहरी आस्था है. यहां पर न केवल दोनों नवरात्रि में ही श्रद्धालुओं की धूम रहती है, बल्कि स्थानीय अपने सभी मांगलिक कार्यक्रम करने से पहले यहां दर्शन करते हैं. इसके साथ ही कई लोग अपने मांगलिक कार्यक्रम भी यहीं आयोजित करते हैं.

मंदिर का निर्माण उदयभान शुक्ला ने कराया था
मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी रामजस ने ईटीवी भारत को जानकारी देते हुए बताया कि यह मंदिर तो काफी पुराना है लेकिन लगभग 35 साल पहले यहां पर मात्र पिंड ही स्थापित था और कोई मंदिर नहीं बना हुआ था. जब एक घटना घटित हुई और लोगों को यह पता चला कि इस पिंड पर मंदिर का निर्माण करवाया जाना चाहिए. तब जन सहयोग से इस मंदिर का निर्माण करवाया गया. मंदिर के निर्माण का श्रेय यहां के एक वन अधिकारी उदयभान शुक्ला को जाता है, उन्होंने इस मंदिर के निर्माण के लिए काफी प्रयास किए थे.

मां का मंदिर ही है पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव
पुजारी रामजस ने बताया कि हर वर्ष चैत्र नवरात्रि में नेपाल के दांग से चलकर आने वाली पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव यही मंदिर है. लोग यहां पर रुकते हैं और कुछ घंटे के विश्राम के बाद चले जाते हैं. इस दौरान हजारों लाखों श्रद्धालु यहां पर माता के दर्शन के लिए आते हैं.

स्थानीय निजामुद्दीन ने ईटीवी भारत को दी जानकारी
इस मंदिर की महत्वता इसी से देखी जा सकती है कि यहां पर समुदायों की या धर्मों की बेड़ियां टूट जाती है. यहां पर सभी धर्मों और जातियों के लोग आकर माता की पूजा-अर्चना करते हैं. साथ ही यहां मांगलिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.

Intro:पूरे देश में शारदीय नवरात्रि की धूम है। बलरामपुर जिले में भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। दुर्गा मंदिर से लेकर गांव-गांव शहर-शहर में मां दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की गई है और लोग पूजन अर्चन कर रहे हैं। वहीं, बलरामपुर जिले में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं। जिनकी विशेष महत्वता है। यहां पर धर्म हर समुदाय की बेड़ियां टूट जाती हैं और सभी सम्प्रदायों के लोग माता की भक्ति में लीन नज़र आते हैं।


Body:बलरामपुर जिले के तुलसीपुर तहसील से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सोहेलवा वर्ल्ड फॉरेस्ट सेंचुरी के पास जरवा के बालापुर में समय माता का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर पर यहां के निवासियों के अलावा वनवासी थारू समुदाय के लोग के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी गहरी आस्था है। यहां पर न केवल दोनों नवरात्रि में श्रद्धालुओं की धूम रहती है। बल्कि इलाकाई लोगों के अपने सभी मांगलिक कार्यक्रम करने से पहले इस स्थान का दर्शन करते हैं। कई लोगों के घरों का मांगलिक कार्यक्रम यहीं पर मनाया जाता है। इस मंदिर के महत्व तब और बढ़ जाता है, जब नेपाल राष्ट्र के डांग जिले से चलकर आने वाली पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा इस मंदिर पर कुछ घंटे विश्राम के लिए रूकती है। इस दौरान हजारो की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और माता के साथ-साथ पीर रतन नाथ का भी दर्शन करते हैं।


Conclusion:इस मंदिर के इतिहास के बारे में बात करते हुए यहां के पुजारी रामजस बताते हैं कि यह मंदिर तो काफी पुराना है लेकिन तकरीबन 35 साल पहले यहां पर केवल पिंड स्थापित था। कोई मंदिर नहीं बना हुआ था। जब एक घटना घटित हुई और लोगों को यह पता चला कि इस पिंड पर मंदिर का निर्माण करवाया जाना चाहिए। तब जन सहयोग से इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। मंदिर के निर्माण का श्रेय यहां के एक वन अधिकारी उदय भान शुक्ला को जाता है। उन्होंने काफी कोशिश करके इस मंदिर का निर्माण करवाया। वह आगे कहते हैं कि हर वर्ष चैत्र नवरात्रि में नेपाल के दांग से चलकर आने वाली पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा का पहला पड़ाव यही मंदिर होता है। यहां पर वह रुकते हैं और एक-दो घंटे के विश्राम के बाद चले जाते हैं। इस दौरान हजारों लाखों श्रद्धालु यहां पर समय माता और उनके दर्शन के लिए आते हैं। वही, स्थानीय निजामुद्दीन इस मंदिर की महत्वता के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि इस मंदिर की महत्वता इसी से देखी जा सकती है कि यहां पर समुदायों की या धर्मों की बेड़ियां टूट जाती है। यहां पर सभी धर्मों के लोग सभी जातियों के लोग आते हैं और माता का पूजन अर्चन करते हैं। यहां पर मांगलिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता हैं। वह कहते हैं कि इस मंदिर की जो विशेष महत्वता है वह पीर रतन नाथ बाबा की यात्रा से जुड़ी हुई है। उनकी यात्रा के यहां ठहराव के वजह से ही इस मंदिर पर आदिवासी थारुओं सहित मुस्लिम धर्म के लोग भी आस्थावान हैं।
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