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कैसे सफल होगी जननी-शिशु सुरक्षा योजना, जब प्रसूताओं से होगी वसूली

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Published : Feb 5, 2020, 1:02 PM IST

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में सरकार की जननी-शिशु सुरक्षा योजना में लाभार्थियों को इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है. प्रसव के लिए आई प्रसूताओं को अस्पताल में खाने-पीने के नाम पर कुछ भी नहीं मिल रहा है.

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भदोही में जननी-शिशु सुरक्षा योजना..

बलरामपुर: महिलाओं को बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार जननी-शिशु सुरक्षा योजना जैसे कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन महिलाओं को इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है. क्योंकि सेवाओं के नाम पर यहां प्रसूताओं से वसूली की जा रही है.

भदोही में जननी-शिशु सुरक्षा योजना.

ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में मुफ्त सुरक्षित प्रसव व जच्चा-बच्चा को बेहतरीन सेवाएं मुहैया कराने के लिए लागू जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जिले में दम तोड़ता दिख रहा है. जिले के उतरौला में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मरीजों से वसूली का अड्डा बन गया है, जहां प्रसव के लिए गर्भवती से 500 से 900 रुपये की वसूली होती है. जच्चा-बच्चा की जान बचाने के लिए दोनों को 48 घंटे तक अस्पताल में भर्ती रखने व उन्हें मुफ्त नाश्ता-भोजन मुहैया कराने समेत अन्य योजनाएं भी कागज में ही चल रही हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आंकड़ों की मानें तो प्रतिदिन अस्पताल में 6 से 8 प्रसव होते हैं, लेकिन जेएसवाई वार्ड बंद ही रहता है. स्वास्थ्यकर्मी जच्चा-बच्चा की जान जोखिम में डालकर डिलीवरी के कुछ घंटे बाद ही उन्हें छुट्टी दे देते हैं. इतना ही नहीं छुट्टी न मिलने तक प्रसूता व परिवारीजनों को अस्पताल में भूखे रहना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें:- भारत की सबसे बड़ी रक्षा प्रदर्शनी आज से, 40 देशों के रक्षा मंत्री करेंगे शिरकत

इस तरह की शिकायतें सीएचसी उतरौला से पहले भी आ चुकी है. हम जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
घनश्याम सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बलरामपुर

बलरामपुर: महिलाओं को बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार जननी-शिशु सुरक्षा योजना जैसे कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन महिलाओं को इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है. क्योंकि सेवाओं के नाम पर यहां प्रसूताओं से वसूली की जा रही है.

भदोही में जननी-शिशु सुरक्षा योजना.

ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में मुफ्त सुरक्षित प्रसव व जच्चा-बच्चा को बेहतरीन सेवाएं मुहैया कराने के लिए लागू जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जिले में दम तोड़ता दिख रहा है. जिले के उतरौला में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मरीजों से वसूली का अड्डा बन गया है, जहां प्रसव के लिए गर्भवती से 500 से 900 रुपये की वसूली होती है. जच्चा-बच्चा की जान बचाने के लिए दोनों को 48 घंटे तक अस्पताल में भर्ती रखने व उन्हें मुफ्त नाश्ता-भोजन मुहैया कराने समेत अन्य योजनाएं भी कागज में ही चल रही हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आंकड़ों की मानें तो प्रतिदिन अस्पताल में 6 से 8 प्रसव होते हैं, लेकिन जेएसवाई वार्ड बंद ही रहता है. स्वास्थ्यकर्मी जच्चा-बच्चा की जान जोखिम में डालकर डिलीवरी के कुछ घंटे बाद ही उन्हें छुट्टी दे देते हैं. इतना ही नहीं छुट्टी न मिलने तक प्रसूता व परिवारीजनों को अस्पताल में भूखे रहना पड़ता है.

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इस तरह की शिकायतें सीएचसी उतरौला से पहले भी आ चुकी है. हम जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
घनश्याम सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बलरामपुर

Intro:
सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं को बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के लिए एक तरफ केंद्र सरकार और राज्य सरकार के साथ-साथ तमाम संस्थान एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। वहीं, पूरे देश का ग्राउंड लेवल डेटा बिगड़ने वाला बलरामपुर सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। यहां के अस्पताल दर अस्पताल को ख़ुद इलाज़ की ज़रूरत है। क्योंकि सेवाओं के नाम पर यहां प्रसूताओं से लेकर मरीजों तक से वसूली आम है। अधिकारियों के नाक के ठीक नीचे कर्मचारियों द्वारा वसूली ना केवल प्रसव के नाम पर वसूली की जाती है। बल्कि दुर्व्यवहार के मामले भी लगातार सामने आते रहते हैं। मरीजों को ना तो जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत आने वाली सेवाओं का लाभ मिलता है और ना ही उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाएं। ऐसे में सुरक्षित और संस्थागत प्रसव के मामले में पहले से पिछड़े बलरामपुर की स्थिति केवल कागज़ों में सुधर रही है।Body:ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में मुफ्त सुरक्षित प्रसव व जच्चा-बच्चा को बेहतरीन सेवाएं मुहैया कराने के लिए लागू जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जिले में दम तोड़ता दिख रहा है। बलरामपुर जिले के उतरौला में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मरीजों से वसूली का अड्डा बन गया है। जहां प्रसव के लिए गर्भवती से 500 से 900 रूपये की वसूली होती है। जच्चा-बच्चा की जान बचाने के लिए दोनों को 48 घंटे तक अस्पताल में भर्ती रखने व उन्हें मुफ्त नाश्ता-भोजन मुहैया कराने समेत अन्य योजनाएं भी कागज में ही चल रही है।
अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आंकड़ों की मानें तो प्रतिदिन अस्पताल पर 6 से 8 प्रसव होते हैं, लेकिन जेएसवाई वार्ड बंद ही रहता है। स्वास्थ्यकर्मी जच्चा-बच्चा की जान जोखिम में डालकर डिलीवरी के कुछ घंटे बाद ही उन्हें छुट्टी दे देते हैं। इतना ही नहीं, छुट्टी ना मिलने तक प्रसूता व परिवारजन को अस्पताल में भूखे रहना पड़ता है। Conclusion:प्रसूता के साथ आए परिजनों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधिकारियों व कर्मचारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि हमसे पैसे वसूले जाते हैं। हमें कोई सुविधा नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि हमें न केवल बाहर से दवाइयां लानी पड़ती हैं। बल्कि इस तरह की कई अन्य समस्याएं भी हमारे साथ लगातार होती रहती है। मसलन, जच्चा बच्चा को 48 घंटे अस्पताल में रखने के बजाय पहले ही छोड़ दिया जाता है। भोजन पानी नहीं मिलता। और तमाम अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

वहीं, इस संबंध में जब सीएससी अधीक्षक डॉ. चंद प्रकाश से बात की गई तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।
जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह ने हमसे बात करते हुए कहा कि इस तरह की शिकायतें सीएचसी उतरौला से पहले भी आ चुकी है। हम जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।

बाइट 1 - नजीबुननिशा
बाइट 2 - मजीदुननिशा
बाइट 3 - सद्दाम
बाईट 4- घनश्याम सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बलरामपुर
योगेंद्र त्रिपाठी, 9839325432
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