बलरामपुर: लॉकडाउन में वापस गांव लौटे प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश सरकार काम देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन बलरामपुर जिले में मनरेगा योजना में जमकर फर्जीवाड़ा हो रहा है. रोजगार, सेवकों से ग्राम प्रधान मिली भगत करके कागजों में प्रवासी और स्थानीय श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार दे रहे हैं. जबकि इसकी हकीकत कुछ और ही है. गांव में न तो मनरेगा के तहत किसी को काम मिल रहा है और न ही मौके पर कोई मजदूर मिल रहे हैं.
बलरामपुर जिले में मनरेगा की वेबसाइट पर तो हजारों मजदूर काम करते दिखाए गए, लेकिन जब ईटीवी भारत ने 3 गांवों में जांच की तो नजारा कुछ और ही था. जब इस मामले में सीडीओ अमनदीप डुली से बातचीत की गई तो उन्होंने कार्रवाई करने के बजाए 3 गांव के मजदूरों के मनरेगा पोर्टल पर लगी ड्यूटी को शून्य करने की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ लिया.
प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के नाम पर प्रदेश सरकार मनरेगा कार्य में तेजी लाने का निरंतर प्रयास कर रही है. बलरामपुर जिला प्रशासन ने 20 जून को जिले में 72 हजार से अधिक श्रमिकों से कार्य कराए जाने का दावा किया.
ईटीवी भारत ने जमीनी हकीकत जानने के लिए 3 गांवों की पड़ताल की. इस दौरान कई मजदूर गांव में कार्य करते नजर नहीं आए. वहीं रोजगार सेवक भी गांव में मौजूद नहीं थे. जबकि 21 तारीख को 'मनरेगा' योजना के पोर्टल पर बलरामपुर ब्लाक के बरईपुर गांव में 307, भीखपुर में 308 और आड़ार-पाकड़ में 260 मजदूरों के कार्य का प्रस्ताव दिखाया गया था, लेकिन मौके पर न तो काम दिखा और न ही कोई मजदूर.
प्रवासी मजदूरों ने बताया कि गांव में मनरेगा के तहत कोई कार्य नहीं चल रहा है. रोजगार पाने के लिए लगातार ग्राम प्रधान और विभागीय अधिकारियों का चक्कर काट रहे हैं लेकिन अब तक काम नहीं मिला है, जिससे परिवार भुखमरी की कगार पर है.
मामले पर सीडीओ अमनदीप डुली ने कहा कि मास्टरोल तैयार होने के बाद ही यह स्पष्ट होता है कि कितने मजदूरों ने काम किया और कितने मजदूर अनुपस्थित रहे. यदि बारिश होती है तो कानूनी तौर पर किसी भी मजदूर से कार्य नहीं ले सकते. उस दिन की कार्य योजना शून्य दिखानी पड़ती है.
इसे भी पढ़ें- जानिए, बलरामपुर में मनरेगा में मिल रहे काम से कितने संतुष्ट हैं प्रवासी मजदूर