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पूजा करने के अधिकार को लेकर पिताजी ने दायर किया था मुकदमा: राजेंद्र सिंह

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला आने के बाद प्रमुख पक्षकारों में शामिल गोपाल सिंह विशारद के बेटे राजेंद्र सिंह ने खुशी जाहिर की है. इस दौरान ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने अपने पिता गोपाल सिंह विशारद की ओर से मुकदमा दायर करने से लेकर अन्य कई मुद्दों पर चर्चा की.

राजेंद्र सिंह से खास बातचीत.
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Published : Nov 14, 2019, 1:42 PM IST

बलरामपुर: अयोध्या के राम मंदिर में पूजा का हक मांगने वाले और राम मंदिर जन्मभूमि के पक्षकार गोपाल सिंह विशारद के परिवार को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के वक्त गोपाल सिंह विशारद के बेटे राजेंद्र सिंह अहमदाबाद में थे. अहमदाबाद से वापस लौटने के बाद ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने बताया कि फैसला आने के बाद पूरा परिवार बेहद भावुक था और पूरे परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.

राजेंद्र सिंह से खास बातचीत.

राजेंद्र सिंह ने अपने पिता गोपाल सिंह विशारद के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि वह साइकिल से ही मुकदमा लड़ने जाया करते थे. कई बार जब रात को उन्हें आने में देर हो जाती थी तो हम लोग काफी चिंतित हो जाया करते थे, लेकिन पिताजी हम लोगों से कभी कुछ नहीं बताते थे. उन्होंने अपने अंतिम दिनों में इस मुकदमे के बारे में हम लोगों को बताया था. वह खुद वकील थे, इसलिए उन्हें इस मामले की बेहद जानकारी भी थी.

इसे भी पढ़ें- रामपुर: आजम खां के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी, यह है पूरा मामला

यह मुकदमा दायर करने की जरूरत को लेकर पूछे गए सवाल पर राजेंद्र सिंह बताते हैं कि उस समय कांग्रेस की सरकार ने कलेक्टर और कई अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था. हम लोगों को पूजन और दर्शन का हक देने से मना कर दिया गया था. तब पिताजी के दिमाग में आया कि कोई भक्त अपने भगवान की पूजा क्यों नहीं कर सकता? इसलिए हम लोगों ने 1950 में पहला मुकदमा दायर किया और पूजा करने के हक के लिए सालों लंबी लड़ाई लड़ी. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है तो हम उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते.

राजेंद्र सिंह कहते हैं कि पिताजी का लंबा संघर्ष इसलिए भी याद किया जाता है, क्योंकि उस दौरान हम लोगों ने तमाम ऐसी चीजें देखीं जो नहीं होनी चाहिए थी. हम लोगों ने बड़े-बड़े वकीलों को हायर किया, जो इस मामले में वॉलिंटियर के तौर पर लड़े. उन्होंने कभी कोई फीस तक नहीं ली. यह अपने आप में बड़ी बात है.

बलरामपुर: अयोध्या के राम मंदिर में पूजा का हक मांगने वाले और राम मंदिर जन्मभूमि के पक्षकार गोपाल सिंह विशारद के परिवार को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के वक्त गोपाल सिंह विशारद के बेटे राजेंद्र सिंह अहमदाबाद में थे. अहमदाबाद से वापस लौटने के बाद ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने बताया कि फैसला आने के बाद पूरा परिवार बेहद भावुक था और पूरे परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.

राजेंद्र सिंह से खास बातचीत.

राजेंद्र सिंह ने अपने पिता गोपाल सिंह विशारद के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि वह साइकिल से ही मुकदमा लड़ने जाया करते थे. कई बार जब रात को उन्हें आने में देर हो जाती थी तो हम लोग काफी चिंतित हो जाया करते थे, लेकिन पिताजी हम लोगों से कभी कुछ नहीं बताते थे. उन्होंने अपने अंतिम दिनों में इस मुकदमे के बारे में हम लोगों को बताया था. वह खुद वकील थे, इसलिए उन्हें इस मामले की बेहद जानकारी भी थी.

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यह मुकदमा दायर करने की जरूरत को लेकर पूछे गए सवाल पर राजेंद्र सिंह बताते हैं कि उस समय कांग्रेस की सरकार ने कलेक्टर और कई अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था. हम लोगों को पूजन और दर्शन का हक देने से मना कर दिया गया था. तब पिताजी के दिमाग में आया कि कोई भक्त अपने भगवान की पूजा क्यों नहीं कर सकता? इसलिए हम लोगों ने 1950 में पहला मुकदमा दायर किया और पूजा करने के हक के लिए सालों लंबी लड़ाई लड़ी. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है तो हम उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते.

राजेंद्र सिंह कहते हैं कि पिताजी का लंबा संघर्ष इसलिए भी याद किया जाता है, क्योंकि उस दौरान हम लोगों ने तमाम ऐसी चीजें देखीं जो नहीं होनी चाहिए थी. हम लोगों ने बड़े-बड़े वकीलों को हायर किया, जो इस मामले में वॉलिंटियर के तौर पर लड़े. उन्होंने कभी कोई फीस तक नहीं ली. यह अपने आप में बड़ी बात है.

Intro:(कृपया पैकेज बनाकर पब्लिश करें। हो सके तो कृपया इसे एंकर लिंक के जरिए न्यूज़ टाइम्स में भी प्रसारित किया जाए। अयोध्या से जुड़े विजुअल को भी जोड़ा जा सकता है। इसके अतिरिक्त इसमें रॉ वीडियो भेजा जा रहा है। आपका ही योगेंद्र त्रिपाठी, 09839325432)

एक तरफ जहां पूरी दुनिया ने देश के सबसे पुरानी और सबसे बड़े सिविल सूट अयोध्या पर आने वाले फैसले को लेकर अपनी आँखें गड़ाए रखी थी। वहीं, राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला जॉब 9 नवंबर को सुनाया। तब देश में एक अलग तरह की लहर थी। प्रशासन और पुलिस ने शांति व्यवस्था के लिए चप्पे-चप्पे में मोर्चा संभाल रखा था। तो वहीं दूसरी तरफ बलरामपुर जिले में रहने वाले पूजा का हक मांगने वाले और राम मंदिर जन्मभूमि के पक्षकार गोपाल सिंह विशारद का परिवार भी इसी आशा में था कि यह फैसला रामलला के पक्ष में आएगा। जब यह फैसला आया तो गोपाल सिंह के बेटे सेवानिवृत्त बैंक कर्मी राजेंद्र सिंह (82 वर्ष) गुजरात के अहमदाबाद में थे।


Body:जब राजेंद्र सिंह वापस बलरामपुर लौटे तो ईटीवी भारत ने उनके साथ विशेष बातचीत की। इस दौरान न केवल पूरा परिवार बेहद भावुक दिखाई दिया। बल्कि परिवार के जहन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर बेहद खुशी थी।
82 वर्षीय रिटार्यड बैंक कर्मी राजेंद्र सिंह ने अपने पिता गोपाल सिंह विशारद के संघर्षों को याद करते हुए कहते हैं कि पिताजी साइकिल से मुकदमा लड़ने जाया करते थे। कई बार जब रात में देर हो जाती तो हम लोग काफी चिंतित हो जाया करते थे। लेकिन पिताजी हम लोगों से कभी कुछ नहीं बताते थे। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में इस मुकदमे के बारे में हम लोगों को बताया था। वह खुद वकील थे इसलिए उन्हें इस मामले की बेहद जानकारी भी थी।
यह मुकदमा दायर करने की जरूरत क्यों पड़ी? इस पर सवाल पर बात करते हुए राजेंद्र सिंह बताते हैं कि तब कांग्रेस की गवर्नमेंट ने कलेक्टर और कई अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था। हम लोगों को पूजन और दर्शन का हक देने से मना कर दिया। तब पिताजी के दिमाग में आया कि भक्त अपने भगवान की पूजा क्यों नहीं कर सकता? इसलिए हम लोगों ने साल 1950 में पहला मुकदमा दायर किया और पूजा के हक़ के लिए सालों लंबी लड़ाई लड़ी। अब सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला आया है तो हमें बेहद खुशी है। हम उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते।


Conclusion:बाबरी विध्वंस को याद करते हुए वह कहते हैं कि उस दौरान जो भी हुआ ठीक तो नहीं हुआ। लेकिन इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि अगर बाबरी मस्जिद ना गिरी होती तो आज यह फैसला किसी के पक्ष में या विपक्ष में नहीं आया होता। खाली जमीन पर ही कुछ बनाया जा सकता है इसलिए बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया। कानूनी तौर पर तो यह गलत था। लेकिन भावनात्मक तौर पर यह सही था।
एसआई द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उपलब्ध करवाए गए प्रमाणों पर बात करते हुए वह कहते हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद वहां से जो खुदाई की गई। उससे बाद जो प्रमाण मिले वह मंदिर होने की पुष्टि करते थे। वहां के अवशेष में मिला कि वहां पर हिंदू देवी देवताओं की पूजा की जाती थी। इस प्रमाण को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया।
गोपाल सिंह विशारद कहते हैं कि पिताजी का लंबा संघर्ष इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि उस दौरान हम लोगों ने तमाम ऐसी चीजें देखी जो नहीं होनी चाहिए थी। हम लोगों ने बड़े-बड़े वकीलों को हायर किया। जो इस मामले में वॉलिंटियर के तौर पर लड़े। उन्होंने कभी कोई फीस तक नहीं लिया। यह अपने आप में बड़ी बात है।
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