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बलरामपुर : जंगली जानवरों का निवाला बन रहे ग्रामीण

बलरामपुर जिले का 80 किलोमीटर सीमा क्षेत्र सहारा वन क्षेत्र और नेपाल के पहाड़ी इलाकों से घिरा हुआ है. प्रशासन की ओर से इलाके के लोगों को जंगली जानवरों से सुरक्षा के दावे किए जाते हैं जबकि आंकड़े और जमीनी हालातों से कुछ और ही बयां होता है. यहां जंगली जानवर लगातार लोगों को अपना शिकार बनाते हैं.

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Published : Apr 5, 2019, 7:59 AM IST

जंगली जानवरों का निवाला बन रहे ग्रामीण

बलरामपुर: जिले के तुलसीपुर, पचपेड़वा, गैसड़ी और हरैया सतघरवा ब्लॉक सहारा वन क्षेत्र की सीमा से सटे हुए हैं. इनमें से तकरीबन 200 गांव वन्य सीमाओं और जंगली जानवरों से बेहद प्रभावित नजर आते हैं. यहां ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण देने की बातें तो बहुत की जाती हैं लेकिन पिछले 3 सालों में जंगली जानवरों के हमले से होने वाली मौतें इन दावों पर सवाल खड़े करती हैं. पिछले एक महीने के अंदर ही करीब आधा दर्जन लोग जानवरों का शिकार हुए हैं.

1 और 2 अप्रैल की रात हरैया सतघरवा ब्लॉक के बिनौली ग्राट ग्रामसभा में तेंदुए के हमले के कारण एक 13 वर्षीय बच्चे की जान चली गई. वहीं, अतलपरी ग्राम सभा में एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला गंभीर रूप से घायल होने की खबर है. घटना के बाद आसपास के क्षेत्रों के लोग काफी डरे हुए हैं. जंगल से सटे हुए 4 ब्लॉकों में जंगली जानवरों का सबसे ज्यादा असर हरैया सतघरवा ब्लॉक में है. वन विभाग अधिकारी और सोहेलवा वन क्षेत्र के लोग ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण देने में नाकाम साबित हो रहे हैं.
जंगली जानवरों का निवाला बन रहे ग्रामीण

ईटीवी से बात करते हुए ग्रामीण कहते हैं कि हमें किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती जबकि हमारा गांव बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल है. यहां कई बार जानवरों के हमले हो जाते हैं. जिसमें बकरी या गाय व अन्य जानवरों को मार दिया जाता है. इसके बावजूद जिला प्रशासन और वन विभाग संजीदा नहीं है. जंगल से सटे आसपास के गांवों में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां सरकार द्वारा सोलर लाइट की व्यवस्था भी नहीं की गई है जबकि सरकार सौभाग्य योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को सफल होने का दावा कर रही है.
गांव में अंधेरे के चलते ग्रामीणों को जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के वन अधिकारी रजनीश कुमार मित्तल का कहना है कि ग्रामीणों के लिए कई तरह की व्यवस्थाएं की जा रही हैं. जानवरों को पकड़ने के लिए आधुनिक उपकरणों की सहायता ली जा रही है. वन प्रभाग से सटे हुए ग्राम सभा में ड्रोन कैमरे, सीसीटीवी कैमरे, फुट प्रिंट माउंटिंग आदि की व्यवस्था भी की जा रही है. तेंदुए, बाघ या अन्य जंगली जानवरों के हमले में हुए नुकसान के लिए ग्रामीणों को भरपाई और सहायता राशि का भी प्रावधान है.

बलरामपुर: जिले के तुलसीपुर, पचपेड़वा, गैसड़ी और हरैया सतघरवा ब्लॉक सहारा वन क्षेत्र की सीमा से सटे हुए हैं. इनमें से तकरीबन 200 गांव वन्य सीमाओं और जंगली जानवरों से बेहद प्रभावित नजर आते हैं. यहां ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण देने की बातें तो बहुत की जाती हैं लेकिन पिछले 3 सालों में जंगली जानवरों के हमले से होने वाली मौतें इन दावों पर सवाल खड़े करती हैं. पिछले एक महीने के अंदर ही करीब आधा दर्जन लोग जानवरों का शिकार हुए हैं.

1 और 2 अप्रैल की रात हरैया सतघरवा ब्लॉक के बिनौली ग्राट ग्रामसभा में तेंदुए के हमले के कारण एक 13 वर्षीय बच्चे की जान चली गई. वहीं, अतलपरी ग्राम सभा में एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला गंभीर रूप से घायल होने की खबर है. घटना के बाद आसपास के क्षेत्रों के लोग काफी डरे हुए हैं. जंगल से सटे हुए 4 ब्लॉकों में जंगली जानवरों का सबसे ज्यादा असर हरैया सतघरवा ब्लॉक में है. वन विभाग अधिकारी और सोहेलवा वन क्षेत्र के लोग ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण देने में नाकाम साबित हो रहे हैं.
जंगली जानवरों का निवाला बन रहे ग्रामीण

ईटीवी से बात करते हुए ग्रामीण कहते हैं कि हमें किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती जबकि हमारा गांव बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल है. यहां कई बार जानवरों के हमले हो जाते हैं. जिसमें बकरी या गाय व अन्य जानवरों को मार दिया जाता है. इसके बावजूद जिला प्रशासन और वन विभाग संजीदा नहीं है. जंगल से सटे आसपास के गांवों में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां सरकार द्वारा सोलर लाइट की व्यवस्था भी नहीं की गई है जबकि सरकार सौभाग्य योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को सफल होने का दावा कर रही है.
गांव में अंधेरे के चलते ग्रामीणों को जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के वन अधिकारी रजनीश कुमार मित्तल का कहना है कि ग्रामीणों के लिए कई तरह की व्यवस्थाएं की जा रही हैं. जानवरों को पकड़ने के लिए आधुनिक उपकरणों की सहायता ली जा रही है. वन प्रभाग से सटे हुए ग्राम सभा में ड्रोन कैमरे, सीसीटीवी कैमरे, फुट प्रिंट माउंटिंग आदि की व्यवस्था भी की जा रही है. तेंदुए, बाघ या अन्य जंगली जानवरों के हमले में हुए नुकसान के लिए ग्रामीणों को भरपाई और सहायता राशि का भी प्रावधान है.
Intro:बलरामपुर जिले का 80 किलोमीटर सीमा क्षेत्र सहारा वन क्षेत्र और नेपाल के पहाड़ी इलाकों से आच्छादित है। क्षेत्र के लोगों को जंगली जानवरों से सुरक्षित वातावरण प्रदान करने का दावा वन विभाग और सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के अधिकारी तो खूब करते हैं। लेकिन जमीनी आंकड़े और परिस्थितियां कुछ और ही कहती हैं।


Body:बलरामपुर जिले के तुलसीपुर पचपेड़वा गैसड़ी हरैया सतघरवा ब्लॉक सहारा वन क्षेत्र की सीमा से सटे हुए हैं, जिनमें से तकरीबन 200 गांव वन्य सीमाओं से बेहद प्रभावित नजर आते हैं। यहां पर ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन 3 साल के भीतर जंगली जानवरों के हमले के कारण हुई एक दर्जन मौत और महीने भर में आधा दर्जन लोगों के गंभीर रूप से घायल होने का आंकड़ा कहीं ना कहीं यहां रहने वाले ग्रामीणों को परेशान करता है।
1 और 2 अप्रैल की बीती रात को हरैया सतघरवा ब्लॉक के बिनौली ग्राट ग्रामसभा में तेंदुए के हमले के कारण एक 13 वर्षीय बच्चे की जान चली गई। वहीं, अतलपरी ग्राम सभा में एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला बेहद गंभीर रूप से घायल हो गए, जिसका बच पाना मुश्किल है। इस घटना के बाद आसपास के क्षेत्रों के गाने काफी डरे हुए हैं। जिले के जंगल से सटे हुए 4 ब्लॉकों में जंगली जानवरों का सबसे ज्यादा प्रकोप हरैया सतघरवा ब्लॉक में है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी और सोहेलवा वन क्षेत्र के लोग ग्रामीणों को सुरक्षित वातावरण प्रदान कर पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
इस मामले पर ईटीवी से बात करते हुए ग्रामीण कहते हैं कि हमें किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती। जबकि हमारा गांव बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत आता है। यहां पर कई बार जानवरों पर हमले हो जाते हैं। इनमें हमारी बकरी या गाय व अन्य जानवरों को मार दिया जाता है। लेकिन जंगली जानवरों के प्रकोप से बचाने के लिए हमारे साथ ना तो प्रशासन खड़ा है और ना ही वन विभाग।
ग्रामीण कहते हैं कि कई बार हमारे परिवार वालों पर हमला हो जाता है। लेकिन किसी तरह की कोई सरकारी सहायता हमें उपलब्ध नहीं करवाई जाती। वन विभाग दावे तो बहुत करता है लेकिन किसी तरह के दावों में कोई हकीकत नजर नहीं आती।
ग्रामीण कहते हैं कि इस गांव और जंगल से सटे आसपास के गांवों में बिजली की कोई व्यवस्था है और ना ही यहां पर सरकार द्वारा सोलर लाइट की व्यवस्था की गई है। जबकि सरकार सौभाग्य योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को सफल होने का दावा किया जा रहा है। गांव में अंधेरा होता है। तो प्रत्येक ग्रामीण के दिल की धड़कनें तेज हो जाती है कि जंगली जानवरों द्वारा कोई अनहोनी न कर दी जाए।
इन गांवों की एक हकीकत यह भी है कि यहां पर तमाम सरकारी सुविधाएं से नदारद नजर आती है। गांव में रहने वाले लोगों के पास में तो पक्का मकान है और न ही उनके कच्चे मकानों में दरवाजे। रात होने के बाद कब, कैसे और कहां से जंगली जानवर और तेंदुए उनके घरों में घुस कर घायल कर दे या निवाला बना लें। इसका कोई ठिकाना नहीं है। जबकि सरकार सभी ग्रामसभाओं को बिजली और आवास की सुविधाओं से अच्छान्दित करने का दावा किया जा रहा है।


Conclusion:यही बातें जो हमने सलमा वन्य जीव प्रभाग के वन अधिकारी रजनीश कुमार मित्तल से पूछा तो उन्होंने कहा कि हमने कई तरह की व्यवस्था करवाई जा रही है। वन जीवों को पकड़ने के लिए तमाम तरह के आधुनिक उपकरणों की सहायता ली जा रही है। वन प्रभाग से सटे हुए ग्राम सभा में ड्रोन कैमरे, सीसीटीवी कैमरे, फुट प्रिंट माउंटिंग इत्यादि करवाया जा रहा है। तेंदुए, बाघ या अन्य जंगली जानवरों के हमले में हुए नुकसान के लिए ग्रामीणों को भरपाई और सहायता राशि का भी प्रावधान है। हम वन विभाग और सरकार के द्वारा तमाम तरह की सहायता भी उपलब्ध करवाते हैं।
सवाल ये है कैसे इन योजनाओं को इन गांवों जमीन पर उतारा जाए इसका खाका कहां है? और यदि खाका तैयार है तो लागू क्यों नहीं किया जाता? ग्रामीणों की जान को प्रशासन और वन विभाग हमेशा सांसत में क्यों बनाए रखता है।
बाईट - ग्रामीण गीता
बाईट - ग्रामीण रामछबीले
बाईट - रजनीश कुमार मित्तल, वन अधिकारी, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग
पीटीसी - योगेंद्र त्रिपाठी
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