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अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस विशेष: नोबल नर्सिंग की मिसाल हैं 'प्रियंका रावत'

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की उतरौला सीएचसी में तैनात प्रियंका रावत एक नर्स हैं. प्रियंका सीएचसी में अपना काम पूरी मेहनत और लगन से कर रही हैं. वह अपनी सेवा भावना के कारण अपने पांच साल के कैरियर में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं. 'अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस' के मौके पर ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

International Nurses Day
उतरौला सीएचसी में तैनात हैं प्रियंका रावत.
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Published : May 12, 2020, 3:33 PM IST

बलरामपुर: सेवा भावना का दूसरा नाम नर्सिंग कहा जाता है. इस काम में शामिल होने वाले व्यक्ति के अंदर न केवल अपार ऊर्जा होनी चाहिए बल्कि अपने मरीजों के लिए मेहनत करने की शक्ति और समर्पण का भाव भी होना चाहिए, जिससे वह अपने पेशे के साथ न केवल न्याय कर सकें बल्कि वह मरीजों की देखरेख करते हुए उनके जीवन को एक नया आयाम दे सकें. इसी कारण से 'नोबल नर्सिंग सेवा' की शुरूआत करने वाली 'फ्लोरेंस नाइटइंगेल' के जन्मदिन पर हर साल दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है.

नर्स प्रियंका रावत से ईटीवी भारत संवाददाता ने की खास बातचीत.

जिले में भी नोबल नर्सिंग की पर्याय मानी जाने वाली प्रियंका रावत अपने मेहनत और सेवा भावना के कारण मरीजों के साथ-साथ अपने पांच साल के करियर में वह एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं. इनके कारण जिले में शिशु-मातृ मृत्युदर में न केवल कमी आई है बल्कि अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर सुरक्षित संस्थागत प्रसव करवाकर इन्होंने एक मिसाल कायम की है.

कौन हैं प्रियंका रावत
प्रियंका बलरामपुर जिले के रेहरा बाजार की रहने वाली हैं. प्रियंका ने नर्सिंग की पढ़ाई भालचंद्र नर्सिंग इंस्टीट्यूट लखनऊ से की है. इन्होंने 2015 में सीएचसी उतरौला में बतौर स्टाफ नर्स अपनी सेवाएं देनी शुरू की. इनकी पढ़ाई के पीछे पिता सीताराम का बहुत योगदान रहा. छोटे शहर से लखनऊ भेजकर अपनी बेटी को उन्होंने न केवल नर्सिंग की पढ़ाई करवाई बल्कि उनके प्रेरणा के कारण वह स्टाफ नर्स बनने में भी सफल रहीं.

प्रियंका 2015 से ही अपनी सेवाएं उतरौला सीएचसी में दे रही हैं. इस दौरान उन्होंने यहां पर तकरीबन 950 संस्थागत प्रसव करवाए हैं, जिनमें से कई तो बेहद कॉम्प्लिकेटेड केस रहे हैं. प्रियंका का मानना है कि नर्सिंग का क्षेत्र सेवा भावना के कारण जाना जाता है. इसलिए मेहनत और लगन से वह अपना काम करती हैं. मरीजों के लिए समर्पण और सेवा भावना उनका मूल उद्देश्य है.

क्या कहती हैं प्रियंका
प्रियंका बताती हैं कि मुझे शुरुआत से ही यह नौकरी पसंद थी, क्योंकि मेरा शुरू से ही सेवा भाव में मन लगता था. मुझे अच्छा लगता है कि किसी दूसरे की सेवा करना और किसी बीमार का केयर करना. प्रियंका बताती है कि उतरौला सीएचसी में मेरी पोस्टिंग के बाद सीधे लेबर रूम में ही मेरी ड्यूटी लगाई गई, जिसके बाद से मैंने मेटरनिटी वार्ड में ही लगातार जॉब की है. इससे पहले मैंने कहीं और नर्सिंग की जॉब नहीं की थी. बस पढ़ाई की थी.

प्रियंका बताती हैं कि मैंने अपनी नौकरी के दौरान कई ऐसे केसेज अटैंड किए हैं, जो काफी क्रिटिकल थे. वह बताती हैं कि यहां पर ज्यादातर एनेमिक गर्भवती महिलाएं आती हैं, जिसमें उनके साथ पीपीएच से जुड़ा मामला कुछ ज्यादा ही होता है. वह बताती हैं कि एक बार की बात है, जब एक एनेमिक गर्भवती हमारे लेबर रूम आई और उसके पास किसी तरह की कोई जांच भी नहीं थी. उसको हम लोग उच्च स्वास्थ्य संस्थानों में भेजने के लिए तैयार थे, लेकिन उसके साथ आए लोग जाने को तैयार नहीं हुए. ऐसे में यहीं पर डायग्नोस करने के अलावा हमारे सामने कोई रास्ता नहीं था.

क्रिटिकल केस को किया हैंडल
प्रियंका बताती हैं कि उस महिला की सकुशल डिलीवरी हुई, लेकिन फिर भी हमने क्योर एयर चेकअप के लिए उसे दोबारा बुलाया. जब वह महिला दोबारा आई तो उसके पीपीएच के साथ जो समस्या थी, उसको सही किया गया. उसे आयरन और फ्लोरिक ऑक्साइड का सस्पेंशन और एसएन के थ्रू दिया गया, जिसके बाद वह काफी सही हो गई. इस तरह ही मेरे कार्यकाल में कई क्रिटिकल केसेस हुए हैं, जिसे हमने अपने सूझबूझ से यहीं पर सकुशल निपटाने का काम किया.

साथियों के लिए प्रियंका का संदेश
प्रियंका कहती हैं कि हम अपने साथियों को यही संदेश देना चाहते हैं कि वह जिस क्षेत्र में हैं, उस क्षेत्र का नाम ही सेवा भावना से जुड़ा हुआ है. इस कारण वह अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी के साथ करें, जिससे वह एक नया आयाम स्थापित कर सकते हैं.

प्रियंका रावत वह एक जुझारू और मेहनतकश नर्स हैं. इन्होंने अपने काबिलियत के बलबूते यहां के शिशु-मातृ मृत्यु दर और संस्थागत प्रसव में काफी सुधार किया है.
-डॉ. एससी भारती, चिकित्सा अधिकारी, सीएचसी उतरौला

बलरामपुर: सेवा भावना का दूसरा नाम नर्सिंग कहा जाता है. इस काम में शामिल होने वाले व्यक्ति के अंदर न केवल अपार ऊर्जा होनी चाहिए बल्कि अपने मरीजों के लिए मेहनत करने की शक्ति और समर्पण का भाव भी होना चाहिए, जिससे वह अपने पेशे के साथ न केवल न्याय कर सकें बल्कि वह मरीजों की देखरेख करते हुए उनके जीवन को एक नया आयाम दे सकें. इसी कारण से 'नोबल नर्सिंग सेवा' की शुरूआत करने वाली 'फ्लोरेंस नाइटइंगेल' के जन्मदिन पर हर साल दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है.

नर्स प्रियंका रावत से ईटीवी भारत संवाददाता ने की खास बातचीत.

जिले में भी नोबल नर्सिंग की पर्याय मानी जाने वाली प्रियंका रावत अपने मेहनत और सेवा भावना के कारण मरीजों के साथ-साथ अपने पांच साल के करियर में वह एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं. इनके कारण जिले में शिशु-मातृ मृत्युदर में न केवल कमी आई है बल्कि अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर सुरक्षित संस्थागत प्रसव करवाकर इन्होंने एक मिसाल कायम की है.

कौन हैं प्रियंका रावत
प्रियंका बलरामपुर जिले के रेहरा बाजार की रहने वाली हैं. प्रियंका ने नर्सिंग की पढ़ाई भालचंद्र नर्सिंग इंस्टीट्यूट लखनऊ से की है. इन्होंने 2015 में सीएचसी उतरौला में बतौर स्टाफ नर्स अपनी सेवाएं देनी शुरू की. इनकी पढ़ाई के पीछे पिता सीताराम का बहुत योगदान रहा. छोटे शहर से लखनऊ भेजकर अपनी बेटी को उन्होंने न केवल नर्सिंग की पढ़ाई करवाई बल्कि उनके प्रेरणा के कारण वह स्टाफ नर्स बनने में भी सफल रहीं.

प्रियंका 2015 से ही अपनी सेवाएं उतरौला सीएचसी में दे रही हैं. इस दौरान उन्होंने यहां पर तकरीबन 950 संस्थागत प्रसव करवाए हैं, जिनमें से कई तो बेहद कॉम्प्लिकेटेड केस रहे हैं. प्रियंका का मानना है कि नर्सिंग का क्षेत्र सेवा भावना के कारण जाना जाता है. इसलिए मेहनत और लगन से वह अपना काम करती हैं. मरीजों के लिए समर्पण और सेवा भावना उनका मूल उद्देश्य है.

क्या कहती हैं प्रियंका
प्रियंका बताती हैं कि मुझे शुरुआत से ही यह नौकरी पसंद थी, क्योंकि मेरा शुरू से ही सेवा भाव में मन लगता था. मुझे अच्छा लगता है कि किसी दूसरे की सेवा करना और किसी बीमार का केयर करना. प्रियंका बताती है कि उतरौला सीएचसी में मेरी पोस्टिंग के बाद सीधे लेबर रूम में ही मेरी ड्यूटी लगाई गई, जिसके बाद से मैंने मेटरनिटी वार्ड में ही लगातार जॉब की है. इससे पहले मैंने कहीं और नर्सिंग की जॉब नहीं की थी. बस पढ़ाई की थी.

प्रियंका बताती हैं कि मैंने अपनी नौकरी के दौरान कई ऐसे केसेज अटैंड किए हैं, जो काफी क्रिटिकल थे. वह बताती हैं कि यहां पर ज्यादातर एनेमिक गर्भवती महिलाएं आती हैं, जिसमें उनके साथ पीपीएच से जुड़ा मामला कुछ ज्यादा ही होता है. वह बताती हैं कि एक बार की बात है, जब एक एनेमिक गर्भवती हमारे लेबर रूम आई और उसके पास किसी तरह की कोई जांच भी नहीं थी. उसको हम लोग उच्च स्वास्थ्य संस्थानों में भेजने के लिए तैयार थे, लेकिन उसके साथ आए लोग जाने को तैयार नहीं हुए. ऐसे में यहीं पर डायग्नोस करने के अलावा हमारे सामने कोई रास्ता नहीं था.

क्रिटिकल केस को किया हैंडल
प्रियंका बताती हैं कि उस महिला की सकुशल डिलीवरी हुई, लेकिन फिर भी हमने क्योर एयर चेकअप के लिए उसे दोबारा बुलाया. जब वह महिला दोबारा आई तो उसके पीपीएच के साथ जो समस्या थी, उसको सही किया गया. उसे आयरन और फ्लोरिक ऑक्साइड का सस्पेंशन और एसएन के थ्रू दिया गया, जिसके बाद वह काफी सही हो गई. इस तरह ही मेरे कार्यकाल में कई क्रिटिकल केसेस हुए हैं, जिसे हमने अपने सूझबूझ से यहीं पर सकुशल निपटाने का काम किया.

साथियों के लिए प्रियंका का संदेश
प्रियंका कहती हैं कि हम अपने साथियों को यही संदेश देना चाहते हैं कि वह जिस क्षेत्र में हैं, उस क्षेत्र का नाम ही सेवा भावना से जुड़ा हुआ है. इस कारण वह अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी के साथ करें, जिससे वह एक नया आयाम स्थापित कर सकते हैं.

प्रियंका रावत वह एक जुझारू और मेहनतकश नर्स हैं. इन्होंने अपने काबिलियत के बलबूते यहां के शिशु-मातृ मृत्यु दर और संस्थागत प्रसव में काफी सुधार किया है.
-डॉ. एससी भारती, चिकित्सा अधिकारी, सीएचसी उतरौला

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