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बलरामपुर: NGT के निर्देशों की हो रही अनदेखी, स्वास्थ्य केंद्रों में ही फेकें जा रहे मेडिकल वेस्ट

जिले में बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए तमाम आला अधिकारी भले ही दावा कर रहे हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. यहां प्राथिमक और उच्च प्राथमिक स्वास्थय केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट (कचरे) को यूं ही फेंक दिया जाता है. जो परेशानियों का सबब बनता है.

स्वास्थ्य केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट को कहीं भी फेंक दिया जाता है.
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Published : Jun 8, 2019, 8:23 PM IST

बलरामपुर: जिले के 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 206 एनम सेंटर में उपयोग होने वाले सीरिंज, निडिल, दवाइयों और इंजेक्शन बॉयल के बायो मेडिकल वेस्ट (कचरे) को स्वास्थ्य केंद्रों के पीछे वाले हिस्से में यूं ही फेंक दिया जाता है. जो गंभीर बीमीरियों को जन्म देता है.

स्वास्थ्य केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट को कहीं भी फेंक दिया जाता है.


क्या है पूरा मामला

  • जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैसड़ी, पचपेड़वा, उतरौला, नंदनगर जैसे सभी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट को कहीं भी फेंक दिया जाता है.
  • एनजीटी ने इसके निस्तारण के लिए उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से लेकर जिले में तैनात सीएमओ आदि अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई थी.
  • इसके बाद जिले के अधिकारियों ने कागजों में यह सुनिश्चित किया कि सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बायो मेडिकल वेस्ट का एक कमरा बनाया जाएगा.
  • जहां पर उसे समुचित ढंग से इकट्ठा करके कूड़ा निस्तारण वाली कंपनी को सुपुर्द कर दिया जाएगा.
  • इसके बाद कंपनी बड़े-बड़े प्लांट्स में ले जाकर उन्हें सही ढंग से निस्तारित कर देगी. लेकिन ऐसा केवल कागजों में ही होता नजर आ रहा है.

बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए सभी एमओआईसीरज व पीएचसी प्रभारियों को नोटिस जारी कर दी गई है. अब उनके द्वारा निस्तारण के लिए व्यवस्था को सुनिश्चित कराना जरूरी हो गया है. हमने यहां से आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन जो अधिकारी इन आदेशों को नहीं मानते हैं. वह खुद भुक्तभोगी होंगे. हम उनके खिलाफ आने वाले समय में कार्रवाई भी करेंगे.
डॉ. घनश्याम सिंह, सीएमओ

बलरामपुर: जिले के 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 206 एनम सेंटर में उपयोग होने वाले सीरिंज, निडिल, दवाइयों और इंजेक्शन बॉयल के बायो मेडिकल वेस्ट (कचरे) को स्वास्थ्य केंद्रों के पीछे वाले हिस्से में यूं ही फेंक दिया जाता है. जो गंभीर बीमीरियों को जन्म देता है.

स्वास्थ्य केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट को कहीं भी फेंक दिया जाता है.


क्या है पूरा मामला

  • जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैसड़ी, पचपेड़वा, उतरौला, नंदनगर जैसे सभी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बायो मेडिकल वेस्ट को कहीं भी फेंक दिया जाता है.
  • एनजीटी ने इसके निस्तारण के लिए उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से लेकर जिले में तैनात सीएमओ आदि अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई थी.
  • इसके बाद जिले के अधिकारियों ने कागजों में यह सुनिश्चित किया कि सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बायो मेडिकल वेस्ट का एक कमरा बनाया जाएगा.
  • जहां पर उसे समुचित ढंग से इकट्ठा करके कूड़ा निस्तारण वाली कंपनी को सुपुर्द कर दिया जाएगा.
  • इसके बाद कंपनी बड़े-बड़े प्लांट्स में ले जाकर उन्हें सही ढंग से निस्तारित कर देगी. लेकिन ऐसा केवल कागजों में ही होता नजर आ रहा है.

बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए सभी एमओआईसीरज व पीएचसी प्रभारियों को नोटिस जारी कर दी गई है. अब उनके द्वारा निस्तारण के लिए व्यवस्था को सुनिश्चित कराना जरूरी हो गया है. हमने यहां से आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन जो अधिकारी इन आदेशों को नहीं मानते हैं. वह खुद भुक्तभोगी होंगे. हम उनके खिलाफ आने वाले समय में कार्रवाई भी करेंगे.
डॉ. घनश्याम सिंह, सीएमओ

Intro:सरकारी अस्पतालों के पीछे वाले हिस्से में घातक बीमारी बंट रही है। अगर आप गलती से भी यहां आ गए तो संक्रमित बीमारियों के चपेट में आकर आप बीमार हो जाएंगे और अंततः आपकी किसी गंभीर रोग के कारण मौत हो जाएगी। हम यह बातें यूं ही नहीं कह रहे हैं। इसके पीछे एक जरूरी वजह है। असल में जिले के 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व 206 एनम सेंटर में उपयोग होने वाले सीरिंज, निडिल, दवाइयों और इंजेक्शन बॉयल के कचरे यानी बायो मेडिकल वेस्ट (कचरे) को उनके पीछे वाले हिस्से में यूं ही फेंक दिया जाता है। गलती से भी अगर इस हिस्से में कोई चला जाए तो वह बीमार बंद कर ही लौटेगा।
असल में, बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए जिले के तमाम आला अधिकारी दावे चाहे, जो कर लेकिन जमीन पर स्थिति कमोबेश बदरंग ही नजर आती है।


Body:बलरामपुर जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैसड़ी, पचपेड़वा, उतरौला, नंदनगर, तुलसीपुर व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पिपरा तहसील, जोकहिया, रेहरबाज़ार जैसे सभी अस्पतालों में जाने के बाद संक्रमण बीमारी है। तब आप को अपनी चपेट में ले ले इसकी कोई गारंटी नहीं है। वजह है, बायो मेडिकल वेस्ट (मेडिकल कचरा) का निस्तारण समुचित ढंग से ना होना। एनजीटी ने इस मामले में उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से लेकर जिले में तैनात सीएमओ आदि अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। तो जिले के सोते हुए अधिकारियों की नींद खुली। कागजों में यह सुनिश्चित किया गया कि सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बायो मेडिकल वेस्ट का एक कमरा बनाया जाएगा। जहां पर उसे समुचित ढंग से इकट्ठा करके कूड़ा निस्तारण वाली कंपनी को सुपुर्द कर दिया जाएगा। जिसके बाद वह बड़े-बड़े प्लांट्स में ले जाकर उन्हें सही ढंग से निस्तारित कर देगी। लेकिन ऐसा केवल कागजों में ही होता नजर आ रहा है। इस योजना को जमीन पर उतरने की बात तो छोड़ ही दीजिए।
बायो मेडिकल वेस्ट जिले के तमाम आला अधिकारियों के लिए जहां सिरदर्द बना हुआ है। वहीं, जिले के स्वास्थ्य मामलों के सबसे बड़े अधिकारी सीएमओ को भी इस बात की चिंता है। लेकिन उनका फरमान नीचे वाले अधिकारियों पर असर होता दिखाई नहीं देता।
सीएमओ डॉ घनश्याम सिंह ने ईटीवी से बात करते हुए कहा कि बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए सभी एमओआईसीज़ व पीएचसी प्रभारियों को नोटिस जारी कर दी गई है। अब उनके द्वारा निस्तारण के लिए व्यवस्था को सुनिश्चित कराना जरूरी हो गया है।
उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की गलती मानते हुए कहा कि हमने यहां से आदेश तो जारी कर दिया। लेकिन जो अधिकारी इन आदेशों को नहीं मानते हैं। वह खुद भुक्तभोगी होंगे। हम उनके खिलाफ आने वाले समय में कार्रवाई भी करेंगे।


Conclusion:हम आपको बताते चलें कि अभी हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल मेडिकल कचरे के निस्तारण के लिए एक आदेश दिया था, जिसके बाद बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए जिले के तमाम केंद्र प्रभारियों पर शिकंजा कसते हुए उन्हें एक एक बायो मेडिकल वेस्ट रूम बनवाने के लिए बजट भी दिया गया था। लेकिन एनजीटी का यह आदेश भी बलरामपुर जिले के अस्पतालों में लागू होता नहीं दिखाई देता है।
इतना ही नहीं एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि यदि बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं की गई तो संस्था संचालक या अस्पताल के ऊपर 3 से 5 लाख और संबंधित जिला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी पर ₹10000000 तक का जुर्माना लगाया जाएगा। जिले के अधिकारी भारी-भरकम जुर्माने की राशि के बाद भी सुधरते दिखाई नहीं दे रहे हैं।
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