बलिया: ये कहानी है 19 महीने के उन अंधेरे दिनों की, जिन्हें हम आपातकाल (इमरजेंसी) के नाम से जानते हैं. 25 जून 1975 को देश मे लगाए गए इमरजेंसी को आज 44 साल पूरे हो गए. तत्कालीन कांग्रेस सरकार की यातनाओं को याद कर आपातकाल के बंदी आज भी सिहर जाते हैं. बलिया के शहीद पार्क में गांधी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए लोकतंत्र सेनानियों ने कांग्रेस पार्टी खिलाफ़ जमकर नारेबाजी की. इस दौरान लोगों ने मोदी सरकार से मांग किया कि सभी आपातकाल के बंदियों को को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जाए.
- 1975 में आपातकाल के दौरान जिस तरह की यातनाएं कांग्रेस विरोधी दलों के लोगों को मिली उसे याद कर सभी की रूह कांप जाती है.
- जिले में करीब 170 से अधिक लोग एसे हैं, जिनको अलग-अलग तारीखों में पुलिस ने जबरन घर से, कॉलेज से और कार्यालय से गिरफ्तार कर बेरहमी से पीटा था.
आपातकाल के दिनो में जेल में बंद हुए लोगों ने सुनाई उन दिनों की दास्तान:
85 वर्ष के रामविचार पांडे ने बताया कि हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया. कांग्रेस के शासन में जिस तरीके से जेल में यातनाएं दी गई वह ब्रिटिश हुकूमत के दौरान लोगों को मिली यातनाओं से भी भयानक थी. अब हालात बदल गए हैं लोकतंत्र सेनानियों को पहले मुलायम सरकार फिर अखिलेश सरकार और अब योगी सरकार से बहुत मदद मिली है. अब हमारे देश के प्रधानमंत्री से मांग है कि 25 जून 2014 को उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि आपातकाल के दौरान बंदी बनाए गए लोगों को स्वतंत्र सेनानी के समकक्ष मान्यता देकर उनको सम्मान दिया जाएगा. इसी क्रम में हम लोग प्रधानमंत्री जी से अपने इस वादे को पूरा करने की अपील करते हैं.
उस दौरान मैं मुरली मनोहर टाउन डिग्री कॉलेज में महामंत्री हुआ करता था. पुलिस ने मुझे कॉलेज से ही गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद कोतवाली में ले जाकर बेरहमी से पिटाई की गई. सारे सामान छीन लिए गए और कुछ दिनों बाद जेल में डाल दिया गया. जेल में भी नाना प्रकार की यातनाएं दी जाने लगी. एक बेड पर तीन-तीन चार-चार लोगों को जैसे बोरे में जिस तरह से भरा जाता है वैसे रखते थे. कुछ दिन हम लोगों ने यातनाएं सही उसके बाद सभी वरिष्ठ लोगों ने मिलकर जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दिए थे.
-गोपाल सिंह, आपातकाल में बंदी