बलिया: जिले का इतिहास बगावत से लेकर साहित्य और देश का प्रतिनिधित्व करने में रहा है. हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार लेखक, आलोचक और निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म भी बलिया जिले में ही हुआ था. इनका जन्म जिले के दुबहर ब्लॉक के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को ज्योतिष परिवार में हुआ. ज्योतिष विद्या की पढ़ाई में इनका रुझान शुरू से ही रहा. लेकिन बाद में हिंदी साहित्य में रुचि के साथ ही साहित्य को एक अलग पहचान दिलाई. आज उनकी 114 वी जयंती पर ईटीवी भारत ऐसे महान साहित्यकार को शत-शत नमन करता है.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी और माता का नाम ज्योतिषमति देवी था. इनकी प्राथमिक शिक्षा ओझवलिया गांव से कुछ दूर रेपुरा गांव में हुई, जिसके बाद मिडिल की पढ़ाई बरसिकापुर में हुई. इसके बाद उन्होंने कलकत्ता और फिर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिष कक्षा में प्रवेश लिया. विश्वविद्यालय में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने पर महामना मदन मोहन मालवीय ने उन्हें हिंदी में उच्च श्रेणी के विद्वान बनने का आशीर्वाद दिया था. इसके साथ ही उन्होंने शांति निकेतन में हिंदी के अध्यापक के रूप में शिक्षण कार्य किया.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी उच्च कोटि के निबंधकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिंतक और शोधकर्ता भी रहे. साहित्य के सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी का योगदान युगों-युगों तक रहेगा. सरल स्वभाव के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संपादन के क्षेत्र में भी अपना लोहा मनवाया. उनके निबंधों में दार्शनिक तत्व की प्रधानता रहती थी. वे कई वर्षों तक नागरी प्रचारिणी सभा के उपसभापति, खोज विभाग के निदेशक तथा नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक भी रहे हैं.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बीएचयू में हिंदी विभाग में अध्यक्ष एवं प्रोफेसर भी रहे हैं. साहित्य की अलग पहचान दिलाने के लिए भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को हिंदी ग्रंथ अकादमी का अध्यक्ष भी चुना गया था. 19 मई 1979 को इस महान व्यक्तित्व का देहांत हो गया.
व्योमकेश से बन गए हजारी प्रसाद द्विवेदी
बहुत कम लोगों को पता है कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का पूरा नाम व्योमकेश द्विवेदी है. लेकिन हिंदी साहित्य से लेकर आधुनिक हिंदी के विद्वान उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम से ही जानते हैं. ओझवलिया गांव के निवासी ने बताया कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जब भी गांव आते थे, लोगों से शुद्ध भोजपुरी में ही बात करते थे. हिंदी भाषा में बात करने पर वे नाराज होते थे. उनका मानना था कि हमारी माटी और हमारी मातृभाषा हमेशा हमारे साथ रहती है. इसलिए हम घर आते हैं तो भोजपुरी भाषा का ही प्रयोग करते हैं. उन्होंने बताया कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के नाना देवनारायण पांडे ने काफी लंबे समय के बाद एक कठिन अभियोग सन 1907 में जीता और और कोर्ट से उन्हें एक हजार रुपये मुकदमे की जीत में प्राप्त हुए. इसी साल में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का भी जन्म हुआ था. उनके नाना ने इस जीत का श्रेय अपने नाती को दिया और मुआवजे के तौर पर मिले एक हजार रुपये नाती व्योमकेश के हाथ में दे दिया. इस उल्लास में व्योमकेश को सब हजारी बाबू कहकर बुलाने लगे और यहीं से व्योमकेश द्विवेदी से वे हजारी बन गए.
उपेक्षा का शिकार हुआ गांव
हिंदी जगत के कालजई रचनाकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचना से भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व अलौकिक हो रहा है. लेकिन उनके पैतृक गांव बलिया में आज उन्हें अपनी पहचान दिलानी पड़ रही है. इस गांव में आज तक न जाने कितने जनप्रतिनिधि आए और विकास के तमाम वादे कर गए, लेकिन किसी ने आज तक इस महान विभूति की एक प्रतिमा को इस गांव में लगाने की चेष्टा नहीं की.
आचार्य पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के प्रबंधक सुशील द्विवेदी ने कहा कि महान साहित्यकार अपने ही गांव में उपेक्षा के शिकार हैं. गांव में उनकी कोई मूर्ति तक नहीं लगाई गई. उन्होंने कहा कि सन 1998 में तत्कालीन जिलाधिकारी रमेश कुमार ने यहां पर शिलापट्ट लगवाया और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की एक आदमकद प्रतिमा को स्थापित करने की बात कही थी. लेकिन 22 साल बीत जाने के बाद भी अभी तक इस स्थान को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा का इंतजार है.
गांव में नहीं हुआ कोई भी विकास कार्य
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में प्रत्येक सांसद को एक गांव गोद लेकर उसे आदर्श गांव बनाने का निर्देश मिला था. बलिया के सांसद भरत सिंह ने आचार्य पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी के पैतृक गांव को गोद लेकर उसे सवारने का निर्णय किया था. लेकिन सांसद भरत सिंह का कार्यकाल समाप्त हो गया और देश में दूसरी बार मोदी सरकार सत्ता में आई, लेकिन इस गांव में विकास के नाम पर सिर्फ छलावा ही किया गया. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में न तो स्वास्थ्य केंद्र है और न ही कोई पुस्तकालय. इतना ही नहीं गांव में बैंक तक नहीं खोला गया है. इसके साथ ही गांव की सड़कें भी खस्ताहाल स्थिति में है और एक ऐतिहासिक तालाब जिसे हजारी सरोवर का नाम दिया गया था, आज भी उसमें जलकुंभी ही शोभा बढ़ा रही है.
खाली पड़ा है पैतृक घर
ओझवलिया गांव में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का पैतृक घर है. लेकिन समय के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्य विदेश में अपना आशियाना बनाए हैं. ऐसे में उनका पैतृक आवास आधुनिक मकान में परिवर्तित हो गया है, जिसमें उनके दूर के रिश्तेदार रहते हैं. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने केवल बलिया को बल्कि पूरे भारत को हिंदी साहित्य के जगत में एक अलग पहचान दिलाई. उनकी रचनाओं में अशोक के फूल, कुटज, बाणभट्ट की आत्मकथा, अनामदास का पोथा, मेघदूत आदि काफी प्रसिद्ध हैं.
रेलवे का पुस्तकालय भी हुआ बंद
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम से जिले का एक मात्र पुस्तकालय रेलवे कैंपस में हुआ करता था. लेकिन पिछले काफी समय से वह भी बंद हो गया, जिस कारण हिंदी साहित्य प्रेमियों को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की कृतियों को पढ़ने का अवसर प्राप्त नहीं होता. बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में गत वर्ष एक नए भवन का निर्माण हुआ, जिसका नाम आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम पर रखा गया. इन सबके अलावा संपूर्ण जनपद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम पर न ही कोई प्रतिमा है और न ही कोई पुस्तकालय है. ऐसे में आने वाली पीढ़ी के लिए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को जानना काफी कठिन सा दिख रहा है.