बहराइच: जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर एक दिन हर कोई पहुंचेगा. तब शरीर काम नहीं करेगा. ढलते सूरज के साथ ही आंखों की रोशनी भी कमजोर होती जाएगी. ऐसे वक्त में हर कोई अपने बच्चों से ही आस लगाता है. लेकिन जब बच्चे ही बुजुर्गों को घर से बेदखल कर दें, तो बेबसी के बीच जिंदगी गुजार पाना कठिन हो जाता है. सलाखों के बीच अपने गुनाहों की सजा काट रहीं महिला बंदियों ने नाटक का मंचन कर बुजुर्गों की इसी पीड़ा को बयां किया. जिला कारागार में जेल दिवस के दूसरे दिन बुधवार को वृद्धाश्रम की व्यथा पर नाटक का मंचन किया गया.
महिला बंदियों ने प्रस्तुत किया नाटक
महिला बंदियों ने बच्चों की परवरिश और उनके बड़े होने की लालसा के साथ बुजुर्ग होने पर उनसे लगाई जाने वाली उम्मीद तक सभी बिंदुओं को समेटते हुए नाटक का मंचन किया. ज्यो-ज्यों मंचन आगे बढ़ता गया माहौल भावुक होता गया. वृद्धाश्रम में पहुंचने के बाद बच्चों की याद पर महिला बंदियों की प्रस्तुति को देखकर राज्य महिला आयोग की सदस्य कुमुद श्रीवास्तव भी भावुक हो गईं. उन्होंने मंचन के बाद कहा कि बुजुर्ग को बोझ न समझें, उनकी छांव में ही जिंदगी संवारकर सफलता अर्जित की जा सकती है. जेल वार्डन सरिता यादव और अमित श्रीवास्तव ने मंचन की रूपरेखा तैयार की. संचालन डिप्टी जेलर शरेंदु त्रिपाठी ने किया. इस दौरान जेल अधीक्षक एएन त्रिपाठी, जेलर वीके सिंह शुक्ल भी मौजूद रहे.