बहराइच : किसानों के लिए गले की फांस बनी पराली अब उनके लिए वरदान साबित होगी. पराली को जलाने पर प्रतिबंध लगने के बाद अब कृषि वैज्ञानिकों ने पराली को खाद के रूप में परिवर्तित करने की आधुनिक तकनीक ढूंढ ली है. आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर किसान अपनी फसल के अवशेष का निस्तारण कर सकते हैं. जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सकता है.
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विज्ञान केंद्र की बहराइच के प्रभारी डॉक्टर एमपी सिंह ने बताया कि पराली जलाने से किसानों को भीषण नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिसे वह समझ नहीं पाते हैं. उन्होंने बताया कि पराली जलाने से किसानों को पहला सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि उनकी भूमि में कार्बन .2% रह गया है, जो कि .7% होना चाहिए. उन्होंने बताया कि जब हम पराली को जला देते हैं तब जो जीवांश पदार्थ धान की पराली से निकलता है वह नष्ट हो जाता है. आग लगाने से खेतों में मौजूद सूक्ष्मजीव जो खेतों के लिए लाभदायक होते हैं वह नष्ट हो जाते हैं. जिसके कारण किसानों की भूमि में उर्वरा शक्ति कम हो जाती है. जब हम आग लगाते हैं तब हमारा वातावरण प्रदूषित होता है. आग लगाने से निकलने वाली गैस वातावरण को प्रदूषित करती हैं. उन्होंने बताया कि इसको देखते हुए सरकार और हमारे वैज्ञानिकों ने एक रास्ता निकाला है. किसान भाई पराली को जलाएं नहीं बल्कि उसे खेत में ही मिला दें. उन्होंने ये भी बताया कि पराली को पशु के खाने के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही उन्होंने बताया कि जिले में ऐसे कारखाने खुल गए हैं जो पराली को डेढ़ सौ रुपए कुंतल की दर से खरीद रहे हैं. किसान उस पराली को जलाने के बजाय उसे उस कारखाने में बेंच सकते हैं.
किसान इन आधुनिक तकनीकों का करें प्रयोग
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एमपी सिंह ने बताया की सरकार और कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी आधुनिक तकनीक विकसित की है, जिससे पराली को खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के इस्तेमाल में किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र में अनेकों ऐसे संयंत्र मौजूद हैं जिसका प्रयोग कर किसान पराली को खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र में मौजूद उपकरण किसान अपने संसाधन से ले जाकर उसका उपयोग पराली को खाद बनाने में कर सकते हैं. उन्होंने ये भी बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र उन कृषि यंत्रों को बिना किसी किराये के उपलब्ध करा रहा है. उनका कहना था कि इसके अलावा कई कंपोजर पराली को खाद बनाने के लिए उपलब्ध हैं, जो इससे बायोकंपोजर बना रही हैं. उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने पूसड कम्पोजर बनाया है. पूसर कंपोजर के चार कैप्सूल एक हेक्टेयर की फसल की पराली को खाद में परिवर्तित करने के लिए काफी होते हैं. उन्होंने बताया की 4 कैप्सूल को 100 ग्राम गुड़ पानी में डालकर 5 दिन रख दें. उसके बाद उसे 25 लीटर पानी में मिलाकर उसका पराली पर छिड़काव कर दें. छिड़काव करने से पूर्व पराली को भिगो दें. इस प्रक्रिया से पराली सड़कर खाद बन जाएगी.