बहराइच: जिले में स्वाधीनता आंदोलन में फिरंगी हुकूमत के छक्के छुड़ाने वाले चहलारी नरेश राजा बलभद्र सिंह का जन्म आज ही के दिन 10 जून 1840 ईस्वी को थाना बौडी क्षेत्र के मुरौव्वा डीहा नामक गांव में हुआ था.
चहलारी नरेश की वीरता की कहानी कई इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखी है. इसमें अमृतलाल नागर की कृति गदर के फूल, डॉक्टर अतहर अब्बास रिजवी की पुस्तक अवध का इतिहास और टीकाराम त्रिपाठी रचित बौंडी का अतीत में राजा बलभद्र सिंह का वर्णन किया गया है.
10 जून 1840 ईस्वी में हुआ था बलभद्र सिंह का जन्म
बहराइच में 154 वर्ष पूर्व 18 वर्ष की अल्पायु में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले चहलरी नरेश बलभद्र सिंह की वीरगाथा आज भी बौंडी, चहलारी और रहुआ क्षेत्र के कण-कण में विद्यमान है. बलभद्र सिंह का जन्म महसी तहसील के चहलारी स्टेट के राजा श्रीपाल सिंह के यहां 10 जून 1840 ईस्वी में बौंडी से 9 किमी दूर मुरौव्वा डीहा नामक गांव में हुआ था.
18 वर्ष की में बलभद्र सिंह बने थे सेना पीटीआई
बौंडी नरेश हरदत्त सिंह सवाई और रहुआ स्टेट के राजा गजपति देव के बलभद्र सिंह सगे भतीजे थे. सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की गदर में जब 10 जून 1858 को बेगम हजरत महल अंग्रेजों से बचते हुए बौंडी आई तो, बौंडी नरेश हरदत्त सिंह सवाई ने उन्हें शरण दी. बेगम हजरत महल ने बौंडी, रहुआ और चहलारी स्टेटों की सेनाओं को एकत्रित किया और संगठित कर 18 वर्ष की अल्पायु वाले बलभद्र सिंह को सेना पीटीआई बनाया.
पीढ़ी-दर-पीढ़ी युवाओं को प्रेरणा देगी बलभद्र सिंह की वीरता की कहानी
बौंडी से रामनगर होते हुए लखनऊ तक फिरंगियों को खदेड़ने में बलभद्र सिंह ने सफलता प्राप्त की. युद्ध के दौरान लखनऊ के रेत नदी ओबरी के जंगल में जमुनिया नाले के पास गोरो और बलभद्र सिंह के बीच भीषण संग्राम हुआ. इसी जगह बलभद्र सिंह वीरगति को प्राप्त हुए. बलभद्र सिंह की वीरता की कहानी का वर्णन डा. अतहर अब्बास रिजवी के 'अवध का इतिहास', अमृतलाल नागर कृति 'गदर के फूल' और टीकाराम त्रिपाठी रचित 'बौंडी का अतीत' में किया गया है. हालफिलहाल चहलारी नरेश का बलिदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करेगा.