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अनदेखी के कारण महाभारत कालीन लाक्षागृह का अस्तित्व खतरे में

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Published : Jan 3, 2021, 4:58 PM IST

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में महाभारत काल की धरोह लाक्षागृह अनदेखी की कारण आज बदाहाली की आंसू रो रहा है. यहां पर अव्यवस्थाओं का आलम है कि यहां आने वाले पर्यटक मायूस होकर लौटते हैं. आइये जानते हैं बनरवा स्थित लाक्षागृह का इतिहास...

बागबत में स्थित महाभारत कालीन लाक्षागृह.
बागबत में स्थित महाभारत कालीन लाक्षागृह.

बागपतः पर्यटन को बढावा देने को लेकर भले ही देश के प्रधानमंत्री भले ही प्रयासरत हों लेकिन भी पर्यटन स्थलों को लेकर राज्य सरकारें गंभीर नहीं है. इसकी एक बानगी उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में देखने को मिलती है. जनपद में अनेक ऐसी धरोहर है जिसे पुरातत्व विभाग आज भी खोजने में लगा है. बागपत से 35 किमी पूरब दिशा की और बसे बरनावा स्थित लाक्षाग्रह की प्राचीनता महाभारत कालीन की है. यहां पर आज भी महाभारत काल के कुछ भेद छुपे हुए हैं, जिनको देखने के लिए हर रोज सैंकड़ो पहुंचते हैं. सरकारों की अनदेखी की वजह से इस पर्यटन स्थल का अस्तित्व खतरे में हैं.

महाभारत कालीन लाक्षागृह का अस्तित्व खतरे में.

निराश होकर लौटते हैं पर्यटक
महाविद्यालय के शास्त्री विनोद आचार्य का कहना है कि सरकार की अनदेखी के चलते यहां पर मौजूद सभी स्थान विलुप्त होते जा रहे हैं. इस पर्यटन स्थल को बचाने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. सभी स्थानों पर झाड़ उग आये हैं और जो भवन आदि शेष हैं उनके पत्थर उखड़ कर बिखरे पड़े है. बरसौ पुरानी भारतीय संस्कृति की इस धरोहर को बचाने के लिए स्थानीय प्रशासन भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाया है. संस्कृत महाविद्यालय प्रशासन ही अपने क्षमता के अनुसार लाक्षागृह की देखरेख कर रहा है. वह दिन दूर नहीं जब एक दिन धीरे-धीरे भारत की संस्कृति का यह स्थान भी विलुप्त हो जायेगा. आज के समय में जो भी यहां घूमने आता है वो सिर्फ मायूस होकर ही वापस लौट जाता है, क्योंकि यहां कोई भी सुविधा नहीं है.

महाभारत कालीन लाक्षागृह.
महाभारत कालीन लाक्षागृह.

सरकार नहीं दे रही ध्यान
आचार्य ने कहा कि विश्व प्रशिद्ध जगह थी लाक्षागृह. अभी सरकार का कोई ध्यान इधर नहीं है. कई बार सांसद भी आ चुके हैं और घोषणाए भी हुई हैं, लेकिन कोई पहल नहीं हुई. यहां के संस्कृत महाविद्यालय को क्षेत्र का सहयोग भी काफी है. संस्था में आसपास के बच्चे पढ़ते हैं. लोग संस्था में निशुल्क अनाज भेजते हैं. 500 कुंतल अनाज हर वर्ष आता है. पुरातत्व ने लाक्षागृह क्षेत्र में खुदाई के समय में कुछ खण्डर निकले थे. कुछ मिट्टी के पात्र थे कुछ ईट थी जो लगभग 16 किलो वजन की है. 10 X20 की इसकी लंबाई चौड़ाई है. लगभग 40 फिट नीचे ईंट निकलती है. मिट्टी के बर्तन और ईंट निकलती है.

सरकार लाक्षागृह का करें संरक्षित
स्थानीय निवासी धनपाल सिंह ने बताया कि महाभारत काल में विदुर की नीति के अनुसार सुरंग बनाई गई थी. महाभारत काल में इस बरनावा को वारणाव्रत कहते थे. अब बरनावा पर्यटक स्थल घोषित है. यहां पर्यटन विभाग द्वारा कोई काम नहीं हुआ है. पुतत्व विभाग ने यहां 4 महीने पड़ाव डालकर के खुदाई की थी, सब जगह खुदई की गई है. महाभारत काल की उस समय पुरानी ईंट है जो नींव में दिखाई देती है. सरकार को यहां विकास कराना चाहिए ताकि पर्यटक आये और यहाँ के लोगों को कुछ रोजगार भी मिले.

लाक्षागृह का इतिहास
बागपत मेरठ हाईवे पर उत्तर दिशा की ओर एक द्वार बना हुआ है, जिससे होते हुए मुख्य स्थल की दूरी तय की जाती है. इसी द्वार से लाक्षाग्रह की पुरानी जर्जर इमारत साफ दिखाई देती है. जिसमें कभी पांडव निवास करते थे.सड़क से 500 मी की दूरी तय करने के बाद सीधे हाथ की ओर महानन्द संस्कृत महाविद्यालय है. यहां पर सैंकड़ छात्र संस्कृत सीखने के लिए आते है. गांधी धाम समीति द्वारा संचालित इस महाविद्यालय में चारों वेद का ज्ञान छात्रों को दिया जाता है. महाविद्यालय में चारों वेदों के नाम से वेदी ग्रह बने हुए हैं. यहां पर महाग्रांथों के अनुसार अनुष्ठान किये जाते रहते हैं.

यहां महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित हुई थीं
यहीं पर कृष्णा व हिण्डन नदियों का संगम होता है. जिसमें महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जन की गयी थी. उसी समय लाक्षागृह पर संस्कृत महाविद्यालय की नींव भी रखी गयी थी. इसी महाविद्यालय के सामने से होकर एक रास्ता लाक्षागृह की और जाता है. रास्ते पर एक गोशाला है, जहां सैंकड़ों गोवंश रहते हैं. यहां से आगे चलने के बाद टीले पर चढाई शुरू हो जाती है और वह स्थान आता है जहां पर पांडव ने अपना बसेरा बनाया था. यही वह लाक्षागृह है जहां पर पांडवों को समाप्त करने के लिए कौरवों ने साजिश रची थी.

महाभारत काल के चिह्न अभी भी मौजूद
वेदों में कहा गया है कि पांडवों को बागपत जनपद का यह स्थान बहुत प्रिय था. जिसका लाभ उठाते हुए कौरवों ने इस स्थान पर एक ऐसा भवन बनवाया जिसमें ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग किया गया. यह अपने आप में यह एक अनोखा भवन था. मंत्री विदुर को कौरवों की इस चाल का समय रहते पता चल गया और उसने पांडवों को बचाने के लिए इस भवन से एक सुरंग का निर्माण कराया. जिसका एक द्वार लाक्षागृह के पूर्व की और निकलता है. कहा जाता है कौरवों ने जिस दिन लाक्षागृह में आग लगाने की योजना बनायी थी उससे एक दिन पहले ही पांडव इस भवन में आग लगाकर सुरंग के रास्ते दूर निकल गये थे. इस स्थान पर आज भी वह चिन्ह मौजूद है, जिससे उस काल की बीती घटना की सत्यता प्रतीत होती है.

बागपतः पर्यटन को बढावा देने को लेकर भले ही देश के प्रधानमंत्री भले ही प्रयासरत हों लेकिन भी पर्यटन स्थलों को लेकर राज्य सरकारें गंभीर नहीं है. इसकी एक बानगी उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में देखने को मिलती है. जनपद में अनेक ऐसी धरोहर है जिसे पुरातत्व विभाग आज भी खोजने में लगा है. बागपत से 35 किमी पूरब दिशा की और बसे बरनावा स्थित लाक्षाग्रह की प्राचीनता महाभारत कालीन की है. यहां पर आज भी महाभारत काल के कुछ भेद छुपे हुए हैं, जिनको देखने के लिए हर रोज सैंकड़ो पहुंचते हैं. सरकारों की अनदेखी की वजह से इस पर्यटन स्थल का अस्तित्व खतरे में हैं.

महाभारत कालीन लाक्षागृह का अस्तित्व खतरे में.

निराश होकर लौटते हैं पर्यटक
महाविद्यालय के शास्त्री विनोद आचार्य का कहना है कि सरकार की अनदेखी के चलते यहां पर मौजूद सभी स्थान विलुप्त होते जा रहे हैं. इस पर्यटन स्थल को बचाने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. सभी स्थानों पर झाड़ उग आये हैं और जो भवन आदि शेष हैं उनके पत्थर उखड़ कर बिखरे पड़े है. बरसौ पुरानी भारतीय संस्कृति की इस धरोहर को बचाने के लिए स्थानीय प्रशासन भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाया है. संस्कृत महाविद्यालय प्रशासन ही अपने क्षमता के अनुसार लाक्षागृह की देखरेख कर रहा है. वह दिन दूर नहीं जब एक दिन धीरे-धीरे भारत की संस्कृति का यह स्थान भी विलुप्त हो जायेगा. आज के समय में जो भी यहां घूमने आता है वो सिर्फ मायूस होकर ही वापस लौट जाता है, क्योंकि यहां कोई भी सुविधा नहीं है.

महाभारत कालीन लाक्षागृह.
महाभारत कालीन लाक्षागृह.

सरकार नहीं दे रही ध्यान
आचार्य ने कहा कि विश्व प्रशिद्ध जगह थी लाक्षागृह. अभी सरकार का कोई ध्यान इधर नहीं है. कई बार सांसद भी आ चुके हैं और घोषणाए भी हुई हैं, लेकिन कोई पहल नहीं हुई. यहां के संस्कृत महाविद्यालय को क्षेत्र का सहयोग भी काफी है. संस्था में आसपास के बच्चे पढ़ते हैं. लोग संस्था में निशुल्क अनाज भेजते हैं. 500 कुंतल अनाज हर वर्ष आता है. पुरातत्व ने लाक्षागृह क्षेत्र में खुदाई के समय में कुछ खण्डर निकले थे. कुछ मिट्टी के पात्र थे कुछ ईट थी जो लगभग 16 किलो वजन की है. 10 X20 की इसकी लंबाई चौड़ाई है. लगभग 40 फिट नीचे ईंट निकलती है. मिट्टी के बर्तन और ईंट निकलती है.

सरकार लाक्षागृह का करें संरक्षित
स्थानीय निवासी धनपाल सिंह ने बताया कि महाभारत काल में विदुर की नीति के अनुसार सुरंग बनाई गई थी. महाभारत काल में इस बरनावा को वारणाव्रत कहते थे. अब बरनावा पर्यटक स्थल घोषित है. यहां पर्यटन विभाग द्वारा कोई काम नहीं हुआ है. पुतत्व विभाग ने यहां 4 महीने पड़ाव डालकर के खुदाई की थी, सब जगह खुदई की गई है. महाभारत काल की उस समय पुरानी ईंट है जो नींव में दिखाई देती है. सरकार को यहां विकास कराना चाहिए ताकि पर्यटक आये और यहाँ के लोगों को कुछ रोजगार भी मिले.

लाक्षागृह का इतिहास
बागपत मेरठ हाईवे पर उत्तर दिशा की ओर एक द्वार बना हुआ है, जिससे होते हुए मुख्य स्थल की दूरी तय की जाती है. इसी द्वार से लाक्षाग्रह की पुरानी जर्जर इमारत साफ दिखाई देती है. जिसमें कभी पांडव निवास करते थे.सड़क से 500 मी की दूरी तय करने के बाद सीधे हाथ की ओर महानन्द संस्कृत महाविद्यालय है. यहां पर सैंकड़ छात्र संस्कृत सीखने के लिए आते है. गांधी धाम समीति द्वारा संचालित इस महाविद्यालय में चारों वेद का ज्ञान छात्रों को दिया जाता है. महाविद्यालय में चारों वेदों के नाम से वेदी ग्रह बने हुए हैं. यहां पर महाग्रांथों के अनुसार अनुष्ठान किये जाते रहते हैं.

यहां महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित हुई थीं
यहीं पर कृष्णा व हिण्डन नदियों का संगम होता है. जिसमें महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जन की गयी थी. उसी समय लाक्षागृह पर संस्कृत महाविद्यालय की नींव भी रखी गयी थी. इसी महाविद्यालय के सामने से होकर एक रास्ता लाक्षागृह की और जाता है. रास्ते पर एक गोशाला है, जहां सैंकड़ों गोवंश रहते हैं. यहां से आगे चलने के बाद टीले पर चढाई शुरू हो जाती है और वह स्थान आता है जहां पर पांडव ने अपना बसेरा बनाया था. यही वह लाक्षागृह है जहां पर पांडवों को समाप्त करने के लिए कौरवों ने साजिश रची थी.

महाभारत काल के चिह्न अभी भी मौजूद
वेदों में कहा गया है कि पांडवों को बागपत जनपद का यह स्थान बहुत प्रिय था. जिसका लाभ उठाते हुए कौरवों ने इस स्थान पर एक ऐसा भवन बनवाया जिसमें ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग किया गया. यह अपने आप में यह एक अनोखा भवन था. मंत्री विदुर को कौरवों की इस चाल का समय रहते पता चल गया और उसने पांडवों को बचाने के लिए इस भवन से एक सुरंग का निर्माण कराया. जिसका एक द्वार लाक्षागृह के पूर्व की और निकलता है. कहा जाता है कौरवों ने जिस दिन लाक्षागृह में आग लगाने की योजना बनायी थी उससे एक दिन पहले ही पांडव इस भवन में आग लगाकर सुरंग के रास्ते दूर निकल गये थे. इस स्थान पर आज भी वह चिन्ह मौजूद है, जिससे उस काल की बीती घटना की सत्यता प्रतीत होती है.

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