बदायूं: उत्तर प्रदेश के बदायूं में एसडीएम न्यायिक कोर्ट से 10 अक्टूबर को महामहिम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के नाम नोटिस जारी कर दिया था. साथ ही 18 अक्टूबर को एसडीएम कोर्ट में अपना पक्ष रखने को हाजिर होने का आदेश दिया था. विधि व्यवस्था के नजर अंदाज होने के बाद राज्यपाल की ओर से चेतावनी जारी की गई है. इस नोटिस के बाद जिले में हड़कंप मच गया है.
पूरा मामला थाना सिविल लाइन क्षेत्र के गांव लोड़ा बहेड़ी का है. गांव निवासी चंद्रहास ने सदर तहसील के एसडीएम न्यायिक कोर्ट में विपक्षी पक्षकार के रूप में लेखराज, पीडब्ल्यूडी के संबंधित अधिकारी और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पक्षकार बनाते हुए वाद दायर किया था. एसडीएम न्यायिक कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक आरोप है की उसकी चाची कटोरी देवी की संपत्ति उनके एक रिश्तेदार ने अपने नाम दर्ज करा ली है. इसके बाद उस जमीन को लेखराज के नाम बेच दी गई.
चंद्रहास के मुताबिक कुछ दिन बाद बदायूं बाईपास बहेड़ी के समीप उस जमीन का कुछ हिस्सा शासन द्वारा अधिग्रहण कर लिया गया. उस संपत्ति के अधिग्रहण होने के बाद लेखराज को शासन की तरफ से मुआवजा 12 लाख रुपये मिले. जिसकी जानकारी होने के बाद कटोरी देवी के भतीजे चंद्रहास ने सदर तहसील के न्यायिक एसडीएम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जिस पर एसडीएम न्यायिक कोर्ट से लेखराज, पीडब्ल्यूडी के संबंधित अधिकारी और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को कोर्ट में हाजिर होकर पक्ष रखने का राजस्व संहिता की धारा 144 का नोटिस जारी कर दिया. राज्यपाल को नोटिस मिलने के बाद उनके विशेष सचिव ने एसडीएम न्यायिक कोर्ट को चेतावनी जारी की है.
मुकदमा करने वाले ने कहा- नहीं मालूम किसको नोटिस दिया गया
वहीं मुकदमा करने वाले पक्ष के चंद्रहास का कहना है कि कटोरी देवी उसकी बुआ थीं. उनकी शादी नहीं हुई थी. उनकी मृत्यु के उपरांत जमीन उसके नाम आनी चाहिए थी लेकिन वह जमीन गलत तरीके से किसी चंद्रपाल के नाम कर दी गई. जिसने जमीन लेखराज नाम के व्यक्ति को बेच दी. जब जमीन बाईपास में चली गई तो उसका मुआवजा भी लेखराज को दे दिया गया. इस पर उसने एसडीएम कोर्ट में मुकदमा किया था. हमें यह जानकारी नहीं है कि एसडीएम के यहां से किस-किस पक्ष को नोटिस जारी हुआ है.
राज्यपाल को नोटिस जारी होना दुर्भाग्यपूर्ण
पूरे प्रकरण पर वरिष्ठ अधिवक्ता हरी प्रताप सिंह राठौर का कहना है कि एसडीएम कोर्ट द्वारा नोटिस जनवरी होना दुर्भाग्यपूर्ण है. भारतीय संविधान 361 में देश के राष्ट्रपति राज्यपाल को संरक्षण दिया गया है. राष्ट्रपति और राज्यपाल के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी. लोक सेवक राजा जैसा आचरण करते हैं. पत्रावली का अध्ययन नहीं करते हैं. विधि का अध्ययन नहीं करते हैं. यह पूरी तरह अपने अधीनस्थ और बाबुओं पर निर्भर रहते हैं. यह नियमावली का भी पालन नहीं करना जानते हैं. पेशकार ही पूरी कार्रवाई करता है.
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