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मेंथा आयात करने से किसानों को नहीं मिल पा रहा फसलों का उचित मूल्य, इस व्यवसाय से जुड़े लोगों पर संकट के बादल

बदायूं में इस बार मेंथा (पिपरमेंट) की फसल से किसानों ने दूरी बना ली है. इसके उत्पादन से देश को लाखों डॉलर के रूप में राजस्व की कमाई हुआ करती थी. दूसरी तरफ सरकार ने सिंथेटिक तेल के आयात को पूरी छूट दे रखी है.

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मेंथा की फसल
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Published : May 23, 2022, 5:46 PM IST

बदायूं: जिले में इस बार मेंथा (पिपरमेंट) की फसल से किसानों ने दूरी बना ली है. मेंथा की जगह जिले के किसान अन्य फसलों का उत्पादन इन दिनों कर रहे हैं, जबकि अभी तक बदायूं जिला पूरी दुनिया में अपनी मेंथा की फसल को लेकर प्रसिद्ध था, लेकिन इस बार मेंथा की फसल से किसान का मोहभंग होता दिख रहा है.

मेंथा उत्पादन से देश को लाखों डॉलर के रूप में राजस्व की कमाई हुआ करती थी. लेकिन अब किसानों का इस फसल से मोहभंग होता जा रहा है. जहां सरकार एक ओर किसान की आय को दोगुना करने का प्रयास कर रही है वहीं, दूसरी तरफ मेंथा जैसी कैश क्रॉप से जिले के किसानों का मोहभंग हो गया है.

अपनी परेशानी बताते किसान

इसका कारण भारी मात्रा में अन्य देशों से सिंथेटिक तेल के आयात को माना जा रहा है. जिले के किसानों का कहना है कि पिछले 2 सालों से मेंथा की फसल से कोरोना की वजह से लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं हो पाया, वहीं, दूसरी तरफ सरकार ने सिंथेटिक तेल के आयात को पूरी छूट दे रखी है, जिसकी वजह से मेंथा उत्पादन करने वाले किसानों को फसल का भरपूर लाभ नहीं मिल पा रहा. इससे किसान क्षेत्र में इस फसल को छोड़ने को मजबूर हो गये हैं.

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मेंथा (पिपरमेंट) की फसल

इसे भी पढ़ेंः यूपी की 25 करोड़ जनता के जीवन में परिवर्तन लाने वाला होगा बजट: योगी आदित्यनाथ

बदायूं जिला पूरे एशिया में मेंथा और एसेंशियल ऑयल (essential oil cultivation) की खेती के लिए प्रसिद्ध है. जिससे राजस्व के रूप में प्रदेश को लाखों रुपये की आमदनी डॉलर के रूप में होती है. मेंथा को जिले में प्रमुख फसल का दर्जा प्राप्त है. लेकिन पिछले 2 सालों से कोरोना की वजह से मेंथा के मूल्य में भारी गिरावट देखने को मिली है, जबकी लागत मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा है.
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फैक्ट्री

इसकी वजह से मेंथा उत्पादन करने वाले किसानों का इस फसल से मोहभंग हो गया है. इस बार जिले में मेंथा की फसल काफी कम मात्रा में है. जिसकी वजह से जिले में मेंथा व्यवसाय में लगे लोगों के आगे रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है. जिले में मेंथा व्यवसाय से जुड़े हुए सैकड़ों लोगों के आगे कम फसल के कारण रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.

नन्हें किसान का कहना है कि पिछले 2 सालों से कोरोना कि वजह से मेंथा की फसल का उत्पादन कम हुआ है. वहीं, इस बार किसान इस फसल को नहीं किए है, जिसकी वजह से जिले में लगभग 800 मेंथा प्लांट को भारी नुकसान होने की संभावना नजर आ रही है. वहीं, जिले में लगभग 20 बड़ी मेंथा से अन्य उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियां कार्यरत हैं जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है.

फैक्ट्री मालिक रामनिवास ने बताया कि फैक्ट्री मालिक और श्रमिकों के आगे आगामी फसल के कम होने के कारण रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न होने की प्रबल संभावना है. वहीं, मेंथा व्यवसाय से जिले के सैकड़ों व्यपारी अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. यहां भी काफी संख्या में लोगों को मेंथा उत्पादन से रोजगार मिला हुआ था. वह भी इस सीजन में ठप होता दिखाई दे रहा है.

किसान उमेश राठौर ने बताया कि किसानों का आरोप है कि मेंथा की फसल को बढ़ावा देने के लिए सरकार कोई भी प्रयास नहीं कर रही है, जबकि अन्य देशों से सिंथेटिक मेंथा आयात किया जा रहा है. किसानों का कहना है कि अगर मेंथा के आयात पर रोक लगा दी जाए तो पुनः बदायूं जिला मेंथा उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाता नजर आएगा, जिससे क्षेत्र में विकास होगा और लोगों का रोजगार भी खत्म नहीं होगा लेकिन सिंथेटिक के आयात पर अगर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी एक-दो वर्ष में मेंथा व्यवसाय जिले से पूर्ण रूप से गायब हो जाएगा.

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बदायूं: जिले में इस बार मेंथा (पिपरमेंट) की फसल से किसानों ने दूरी बना ली है. मेंथा की जगह जिले के किसान अन्य फसलों का उत्पादन इन दिनों कर रहे हैं, जबकि अभी तक बदायूं जिला पूरी दुनिया में अपनी मेंथा की फसल को लेकर प्रसिद्ध था, लेकिन इस बार मेंथा की फसल से किसान का मोहभंग होता दिख रहा है.

मेंथा उत्पादन से देश को लाखों डॉलर के रूप में राजस्व की कमाई हुआ करती थी. लेकिन अब किसानों का इस फसल से मोहभंग होता जा रहा है. जहां सरकार एक ओर किसान की आय को दोगुना करने का प्रयास कर रही है वहीं, दूसरी तरफ मेंथा जैसी कैश क्रॉप से जिले के किसानों का मोहभंग हो गया है.

अपनी परेशानी बताते किसान

इसका कारण भारी मात्रा में अन्य देशों से सिंथेटिक तेल के आयात को माना जा रहा है. जिले के किसानों का कहना है कि पिछले 2 सालों से मेंथा की फसल से कोरोना की वजह से लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं हो पाया, वहीं, दूसरी तरफ सरकार ने सिंथेटिक तेल के आयात को पूरी छूट दे रखी है, जिसकी वजह से मेंथा उत्पादन करने वाले किसानों को फसल का भरपूर लाभ नहीं मिल पा रहा. इससे किसान क्षेत्र में इस फसल को छोड़ने को मजबूर हो गये हैं.

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मेंथा (पिपरमेंट) की फसल

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बदायूं जिला पूरे एशिया में मेंथा और एसेंशियल ऑयल (essential oil cultivation) की खेती के लिए प्रसिद्ध है. जिससे राजस्व के रूप में प्रदेश को लाखों रुपये की आमदनी डॉलर के रूप में होती है. मेंथा को जिले में प्रमुख फसल का दर्जा प्राप्त है. लेकिन पिछले 2 सालों से कोरोना की वजह से मेंथा के मूल्य में भारी गिरावट देखने को मिली है, जबकी लागत मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा है.
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फैक्ट्री

इसकी वजह से मेंथा उत्पादन करने वाले किसानों का इस फसल से मोहभंग हो गया है. इस बार जिले में मेंथा की फसल काफी कम मात्रा में है. जिसकी वजह से जिले में मेंथा व्यवसाय में लगे लोगों के आगे रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है. जिले में मेंथा व्यवसाय से जुड़े हुए सैकड़ों लोगों के आगे कम फसल के कारण रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.

नन्हें किसान का कहना है कि पिछले 2 सालों से कोरोना कि वजह से मेंथा की फसल का उत्पादन कम हुआ है. वहीं, इस बार किसान इस फसल को नहीं किए है, जिसकी वजह से जिले में लगभग 800 मेंथा प्लांट को भारी नुकसान होने की संभावना नजर आ रही है. वहीं, जिले में लगभग 20 बड़ी मेंथा से अन्य उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियां कार्यरत हैं जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है.

फैक्ट्री मालिक रामनिवास ने बताया कि फैक्ट्री मालिक और श्रमिकों के आगे आगामी फसल के कम होने के कारण रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न होने की प्रबल संभावना है. वहीं, मेंथा व्यवसाय से जिले के सैकड़ों व्यपारी अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. यहां भी काफी संख्या में लोगों को मेंथा उत्पादन से रोजगार मिला हुआ था. वह भी इस सीजन में ठप होता दिखाई दे रहा है.

किसान उमेश राठौर ने बताया कि किसानों का आरोप है कि मेंथा की फसल को बढ़ावा देने के लिए सरकार कोई भी प्रयास नहीं कर रही है, जबकि अन्य देशों से सिंथेटिक मेंथा आयात किया जा रहा है. किसानों का कहना है कि अगर मेंथा के आयात पर रोक लगा दी जाए तो पुनः बदायूं जिला मेंथा उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाता नजर आएगा, जिससे क्षेत्र में विकास होगा और लोगों का रोजगार भी खत्म नहीं होगा लेकिन सिंथेटिक के आयात पर अगर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी एक-दो वर्ष में मेंथा व्यवसाय जिले से पूर्ण रूप से गायब हो जाएगा.

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