आजमगढ़: जिले में इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण अब सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है. भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 26 दिन से धरने पर बैठे किसान अब आर पार के मूड में दिख रहे हैं. पहले किसानों ने नारा दिया था कि जान दे देंगे लेकिन जमीन नहीं देंगे, पर राजनीति दलों और सामाजिक और किसान संगठनों के समर्थन के बाद इन्होंने नारा भी बदल दिया है. अब इनका नारा है न जान देंगे न जमीन, जरूरत पड़ी तो करेंगे संग्राम.
किसानों के समर्थन में रविवार को हरियाणा के किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी, उत्तराखंड के किसान नेता जगतार सिंह बाजवा, संदीप पांडेय धरने में शामिल होने के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं आगे राकेश टिकैत और मेधा पाटेकर आने वाली हैं. इससे आंदोलन का और बल मिल रहा है. किसान सरकार से दो दो हाथ के लिए पूरी तरह तैयार हैं. ऐसे में सरकार के लिए भूमि अधिग्रहण करना और इंटरनेशनल एअरपोर्ट बनाना आसान नहीं होगा.
पिछले दिनों सरकार के आजमगढ़ के मंदुरी एअरपोर्ट को इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की घोषणा की थी. अब इसके विस्तारीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण होना है. भूमि अधिग्रहण से 8 गांव की लगभग 40 हजार की आबादी प्रभावित हो रही है. तमाम लोगों के घर और जमीन एयरपोर्ट में जाने की संभावना है. इससे किसानों में भारी नाराजगी है. वे सरकार पर लगातार किसानों को उजाड़ने का आरोप लगा रहे है. पीड़ित किसान पिछले 26 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, प्रशासन तमाम प्रयास के बाद अब तक भूमि का सीमाकंन तक नहीं कर पाया है. पहले किसान कहते थे कि जान दे देंगे, पर जमीन नहीं दें लेकिन सपा, बसपा, कांग्रेस और किसान संगठनों के समर्थन के बाद अब इन्होंने नारा बदल दिया है. अब किसान न जान देंगे और न ही जमीन का नारा बुलंद करते हुए इंटरनेशनल एयरपोर्ट का मास्टर प्लान वापस लेने की मांग पर अड़े हैं.
धरना के संयोजक किसान नेता राजीव यादव का कहना है कि उन्हें एयरपोर्ट नहीं चाहिए. हमारी जमीनों पर जिला प्रशासन के लोग कब्जा न करें. 12 और 13 अक्टूबर की रात जिला प्रशासन ने यहां की महिलाओं के साथ सर्वे के नाम पर अभद्रता की. इसको लेकर डीएम से मुलाकात भी किया, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई. अब सवाल इन 8 गांवों का नहीं है, बल्कि गरीबों को उजाड़ने का है. इसके खिलाफ सभी लोग गोलबंद हो रहे हैं. यदि प्रशासन पीछे नहीं हटता है तो आने वाले दिनों में यहां पर किसान महापंचायत करेंगे.
वहीं, धरने पर बैठी महिलाओं का कहना है कि हम लोग बहुत गरीब हैं. किसी तरह से अपने घर-परिवार की अजीविका चलाते हैं. ऐसे में यदि सरकार यहां से हम लोगों को हटाती है तो हम लोगों के सामने बड़ा संकट आ जाएगा. इस जमीन अधिग्रहण में हसनपुर, कादीपुर हरिकेश, जमुआ, जोलहा, गदनपुर, हिंछन पट्टी, मंदुरी, जेहरा पिपरी, जिगिना गांव आ रहे हैं. इतनी बड़ी आबादी आखिर कहां जाएगी.
राजदेई देवी का कहना है कि हम मजदूर लोग हैं. दिन भर काम करते हैं तब घर का चुल्हा जलता है. जहाज हमरे कउने काम कै बा। इ तो बड़े लोगन कै बा, एकर तो फायदा बड़ा लोग उठइहैं. हम लोग के पास एक दो बिस्वां जमीन है अगर उहौ चल जाई तो का कमबा का खाब, जमीन गइल तो मगले पर भीख भी ना मिली.
न जान देब न जमीन: ग्रामीण
उर्मिला का कहना है कि हम लोगों के पास खेती भी बहुत कम है. अगर हम लोग अपना सब कुछ दे देंगे तो हम कहां जाएंगे. हम न तो जमीन देंगे न जान. आखिरी दम तक सरकार से लड़ेंगे, हमें सरकार से हर महीना 5 किलो गेंहू और चावल नहीं चाहिए. हमें हमारी जमीन चाहिए. इसके लिए हम कुछ भी करने के लिए तैयार है. हम लोगों को एयरपोर्ट नहीं चाहिए.
सोभावती ने आरोप लगाया कि अधिकारी सर्वे के लिए आए तो लोगों ने विरोध किया. अधिकारी महिलाओं के साथ अभद्रता किए. जब दिन में उनकी नहीं चली तो रात में सीमाकंन की कोशिश की गई, फिर विरोध हुआ तो महिलाओं को मारा पीटा गया. हमें फर्जी मुकदमें में फंसाने की धमकी दी गई.
धरने में शामिल होने पहुंची सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम वर्मा ने कहा कि सरकार खुलेआम किसानों का उत्पीड़न कर रही है और उनका हक छीन रही है. यह महिलाएं जिस तरह अपनी लड़ाई लड़ रही है वे समाज में अन्य लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत है साफ है कि अब पूर्वांचल बदल रहा है. भूमि अधिग्रहण का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मुनीषा रफीक खान का कहना है कि जब यहां के लोग नहीं चाहते कि एयरपोर्ट बने और वे सरकार से किसी तरह का मुआवजा नहीं चाहते तो आखिर सरकार जिद पर क्यों अड़ी है. जहां एयरपोर्ट की दरकार है वहां सरकार बनाए। आखिर इन गरीब किसानों का उत्पीड़न क्यों किया जा रहा है.
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