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दीपावली पर गाय के गोबर से बन रहीं लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं

आजमगढ़ में महिला संगठन द्वारा गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं बनाई जा रही हैं, इनकी पूजा होने के बाद इन्हें नदियों में प्रवाहित करने के साथ ही घरों में रखे गमलों में भी डाल सकते हैं. इससे पौधों को खाद भी मिलेगी. वहीं मूर्तियों के साथ-साथ दीये और अन्य पूजन-सामग्री भी बनाई जा रही है.

गाय के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
गाय के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
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Published : Nov 8, 2020, 12:16 PM IST

Updated : Nov 8, 2020, 4:51 PM IST

आजमगढ़: दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही घरों और बाजारों में तैयारियां शुरू हो गई हैं. लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ ही दीयों के निर्माण में भी तेजी आ गई है. ऐसे में आजमगढ़ के एक महिला संगठन द्वारा गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ ही दीये और इको फ्रेंडली पूजन सामग्री बनाई जा रही है.

गाय के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
दीपावली का पर्व नजदीक है. ऐसे में मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ दीयों की मांग तेज हो गई है, इसको तैयार करने के लिए शिल्पकार और कारीगर लगे हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ महिलाएं और लड़कियां गाय के गोबर से ऑर्गेनिक दीये और मूर्तियां बना रही हैं, जिससे प्रदूषण भी न हो और आस्था के साथ पर्यावरण का समावेश भी बना रहे.
गोबर से मूर्तियां बनाती लड़कियां.
गोबर से मूर्तियां बनाती लड़कियां.

गायों की खराब हालत देखकर आया ख्याल

समूह में मार्केटिंग का कार्य देखने वाले अंशुमान राय का कहना है कि उन लोगों ने एक वीडियो देखा जिसमें गाय तड़प-तड़पकर मर रही थी. जिसके बाद उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों न गाय के गोबर से शुद्ध दीये और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बनाई जाएं. जिससे होने वाली आमदनी से गायों की स्थिति सुधारी जा सके.

मूर्ती को आकार देती कार्यकर्ता.
मूर्ति को आकार देती कार्यकर्ता.

गोबर में मिलाते हैं तुलसी का बीज

लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा और दीयों के निर्माण से पूर्व गाय के गोबर में तुलसी के बीज का मिश्रण किया जाता है. ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इन दीयों और प्रतिमाओं को नदी में प्रवाहित न करके गमलों में डाल दिया जाता है, जिससे गोबर मिट्टी के लिए खाद बन जाता है और तुलसी के बीज से एक पौधा तैयार हो जाता है.

मूर्तियां रंगती कार्यकर्ता.
मूर्तियां रंगती कार्यकर्ता.

महिलाओं और युवतियों को मिला रोजगार

सज्जा संस्थान की डायरेक्टर संतोष सिंह के मुताबिक गोबर से इको फ्रेंडली पूजन सामग्री तैयार करने में कई महिलाएं और युवतियां लगी हुई हैं. वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रतिमाएं और दीये तैयार कर रही हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिला रहा है. इस काम में अभी तक कुल 100 के करीब महिलाएं और युवतियां लगी हैं, जो अपने घरों और संस्थान के कार्यालय से कार्य कर रही हैं.

गोबर की बनी मूर्तियां.
गोबर से बनी मूर्तियां.

पर्यावरण के लिए हैं सुरक्षित

डायरेक्टर संतोष सिंह का कहना है कि गाय के गोबर से निर्मित पूजन सामग्री में आस्था के साथ पर्यावरण की सुरक्षा को भी ध्यान में रखा गया है. इससे किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है, क्योंकि इसे नदियों में प्रवाहित नहीं किया जाता जिससे कि उसका जल प्रदूषित हो. पूजा के बाद इसे मिट्टी के गमलों में कंपोस्ट कर दिया जाता है और यह मिट्टी में खाद का काम करती है.


गाय के महत्व को बढ़ाने का है प्रयास

डायरेक्टर संतोष सिंह का कहना है कि गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है, लेकिन दूध नहीं देने पर पशु पालक इन्हें छोड़ देते हैं. ऐसे में जब इनके गोबर को लोगों से खरीदा जाएगा, तो लोग इसे रखेंगे और गायों की हालत में सुधार होगा. वहीं इससे लोगों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा.

आजमगढ़: दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही घरों और बाजारों में तैयारियां शुरू हो गई हैं. लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ ही दीयों के निर्माण में भी तेजी आ गई है. ऐसे में आजमगढ़ के एक महिला संगठन द्वारा गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ ही दीये और इको फ्रेंडली पूजन सामग्री बनाई जा रही है.

गाय के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
दीपावली का पर्व नजदीक है. ऐसे में मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ दीयों की मांग तेज हो गई है, इसको तैयार करने के लिए शिल्पकार और कारीगर लगे हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ महिलाएं और लड़कियां गाय के गोबर से ऑर्गेनिक दीये और मूर्तियां बना रही हैं, जिससे प्रदूषण भी न हो और आस्था के साथ पर्यावरण का समावेश भी बना रहे.
गोबर से मूर्तियां बनाती लड़कियां.
गोबर से मूर्तियां बनाती लड़कियां.

गायों की खराब हालत देखकर आया ख्याल

समूह में मार्केटिंग का कार्य देखने वाले अंशुमान राय का कहना है कि उन लोगों ने एक वीडियो देखा जिसमें गाय तड़प-तड़पकर मर रही थी. जिसके बाद उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों न गाय के गोबर से शुद्ध दीये और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बनाई जाएं. जिससे होने वाली आमदनी से गायों की स्थिति सुधारी जा सके.

मूर्ती को आकार देती कार्यकर्ता.
मूर्ति को आकार देती कार्यकर्ता.

गोबर में मिलाते हैं तुलसी का बीज

लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा और दीयों के निर्माण से पूर्व गाय के गोबर में तुलसी के बीज का मिश्रण किया जाता है. ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इन दीयों और प्रतिमाओं को नदी में प्रवाहित न करके गमलों में डाल दिया जाता है, जिससे गोबर मिट्टी के लिए खाद बन जाता है और तुलसी के बीज से एक पौधा तैयार हो जाता है.

मूर्तियां रंगती कार्यकर्ता.
मूर्तियां रंगती कार्यकर्ता.

महिलाओं और युवतियों को मिला रोजगार

सज्जा संस्थान की डायरेक्टर संतोष सिंह के मुताबिक गोबर से इको फ्रेंडली पूजन सामग्री तैयार करने में कई महिलाएं और युवतियां लगी हुई हैं. वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रतिमाएं और दीये तैयार कर रही हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिला रहा है. इस काम में अभी तक कुल 100 के करीब महिलाएं और युवतियां लगी हैं, जो अपने घरों और संस्थान के कार्यालय से कार्य कर रही हैं.

गोबर की बनी मूर्तियां.
गोबर से बनी मूर्तियां.

पर्यावरण के लिए हैं सुरक्षित

डायरेक्टर संतोष सिंह का कहना है कि गाय के गोबर से निर्मित पूजन सामग्री में आस्था के साथ पर्यावरण की सुरक्षा को भी ध्यान में रखा गया है. इससे किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है, क्योंकि इसे नदियों में प्रवाहित नहीं किया जाता जिससे कि उसका जल प्रदूषित हो. पूजा के बाद इसे मिट्टी के गमलों में कंपोस्ट कर दिया जाता है और यह मिट्टी में खाद का काम करती है.


गाय के महत्व को बढ़ाने का है प्रयास

डायरेक्टर संतोष सिंह का कहना है कि गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है, लेकिन दूध नहीं देने पर पशु पालक इन्हें छोड़ देते हैं. ऐसे में जब इनके गोबर को लोगों से खरीदा जाएगा, तो लोग इसे रखेंगे और गायों की हालत में सुधार होगा. वहीं इससे लोगों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा.

Last Updated : Nov 8, 2020, 4:51 PM IST
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