आजमगढ़: सावन के महीने का सभी को इंतजार रहता है, लेकिन हालात इस बार कुछ अलग हैं. जिस तरह से इस बार पूरे देश में कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है. इससे अब गांव में न तो अब सावन के महीने में गाए जाने वाली कजरी के गीत सुनाई देते हैं और न ही कहीं पर झूले लगाए गए.
आजमगढ़ के हथिया गांव की निवासी समला ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पहले सावन के महीने का इंतजार बच्चे, बूढ़े, जवान सभी को रहता था पर अब न तो बच्चे झूलों के लिए रोते हैं और न ही बागों में झूले पड़े दिखाई देते हैं. कजरी के गीत के लिए कान अब तरसते हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि झूला झूलने वाले बच्चे अब मोबाइल में ही मसरूफ रहते हैं. ऊपर से कोरोना के संक्रमण ने भी रही सही कसर पूरी कर दी.
राम लखन ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पहले बच्चे झूले के लिए रोते थे और झूला झूलने की जिद किया करते थे, लेकिन अब इन झूलों की जगह हाथेली से चिपके मोबाइल ने ले ली है. अब बच्चों की दुनिया मोबाइल में ही सिमट कर रह गई है. वैसे तो सावन के महीने में हर गांव में कजरी के गीत सुनाई देते थे और गांव के हर बगीचों में झूले भी दिखाई दिया करते थे.