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फेसबुक पर ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय की छिड़ी जंग, आजमगढ़ उपचुनाव में BJP को सकता है नुकसान

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक पारा चढ़ चुका है. जहां पार्टी के प्रत्याशी एक-दूसरे पर सियासी वार करने से पीछे नहीं हट रहे हैं. वहीं, बीजेपी कार्यकर्ताओं में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर घमासान मचा हुआ है.

आजमगढ़ लोकसभा सीट.
आजमगढ़ लोकसभा सीट.
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Published : Jun 22, 2022, 1:49 PM IST

आजमगढ़: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में होने वाले लोकसभा उपचुनाव को केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जहां सपा, बीजेपी और बसपा ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. सीएम से लेकर डिप्टी सीएम और मंत्री तक बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को जिताने के लिए मैदान में उतर गए है. वहीं, दूसरी तरफ से जिला इकाई के पदाधिकारियों ने फेसबुक पर आपस में वर्चस्व की जंग शुरू कर दिया है. गुटबाजी इस कदर बढ़ गई है कि अब फेसबुक पर भड़ास निकाली जा रही है. खास बात है कि जिन ब्राह्मण और क्षत्रियों के भरोसे बीजेपी अपने जीत का सपना देख रही है. अब यह लड़ाई उन्हीं के बीच में छिड़ चुकी है. ऐसे में बीजेपी पार्टी को कहीं न कहीं नुकसान उठाना पड़ सकता है.

आजमगढ़ जिले में बीजेपी कभी भी किसी चुनाव में प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर पाई है. अब तक लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक बार 2009 में बीजेपी को आजमगढ़ संसदीय सीट पर जीत मिली है. वह भी सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हुए बाहुबली रमाकांत यादव के दम पर. इसके पूर्व बीजेपी यहां तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ती रही. वर्ष 2009 के बाद वह लगातार दूसरे नंबर पर रही है. वहीं, लालगंज सीट पर भी बीजेपी को अब तक एक मात्र जीत वर्ष 2014 की मोदी लहर में मिली थी. उस समय नीलम सोनकर यहां से सांसद चुनी गई थीं. रहा सवाल विधानसभा चुनाव का तो बीजेपी को 1991 की राम लहर में 2 सीट, वर्ष 1996 में 1 सीट और 2017 में 1 सीट मिली थी. वर्ष 2022 में बीजेपी का यहां से सूपड़ा फिर साफ हो गया. तब भी जानकारों ने इसके पीछे बड़ा कारण पार्टी की गुटबाजी को मान रहे है. वर्तमान में उपचुनाव चल रहा है. बीजेपी ने भोजपूरी फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को प्रत्याशी बनाया है.

पोस्ट.
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गौरतलब है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष ध्रुव कुमार सिंह और अन्य पदाधिकारियों की लड़ाई अब सोशल मीडिया तक पहुंच गई है. पार्टी के वरिष्ठ नेता ने फेसबुक पर पोस्ट किया है कि पार्टी में कुल 4 महामंत्री हैं. सदर विधानसभा के अकबेलपुर में मुन्ना सिंह और नन्हके सरोज को मंच मिला तो बिलरियागंज में नागेंद्र पटेल को मंच मिला, लेकिन ब्राह्मण महामंत्री विनोद उपाध्याय को मंच नहीं मिला.

पोस्ट.
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क्षेत्रीय कार्यसमिति सदस्य आशुतोष मिश्र ने एक अन्य पोस्ट में लिखा है कि ब्राह्मण भाइयों, जिलाध्यक्ष ध्रुव सिंह द्वारा चाहे जितना भी अपमान किया जाए, परंतु वोट कमल को ही देना. क्योंकि हम लोगों के पूज्य योगी और मोदीजी के हाथों को मजबूत करना है. जीतेगा 'निरहुआ' ही.

वहीं, एक अन्य पोस्ट में आशुतोष मिश्र ने लिखा है कि राज्यसभा सांसद व पूर्व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंडित शिव प्रताप शुक्ला जी के साथ किए गए अपमान के लिए आजमगढ़ भाजपा जिलाध्यक्ष मांफी मांगे.

एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि पूज्य योगी जी की अकबेलपुर जनसभा में ठंडी सड़क के दो सगे भाई मंच पर बिना किसी पद पर रहते इसलिए चढ़ गए क्योंकि वे जिलाध्यक्ष के स्वजातीय थे. जिला महामंत्री विनोद उपाध्याय इसलिए रोक दिए गए क्योंकि वे ब्राह्मण थे. उपचुनाव को लेकर ऐसे तमाम पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसपर लोग तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं. खुद बीजेपी के लोग भी अब इस जंग में कूद गए हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने जब इन लोगों से बात करने की कोशिश की तो कोई भी कुछ सार्वजनिक तौर पर बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन क्षत्रिय और ब्राह्मण की इस जंग का खामियाजा बीजेपी को उपचुनाव में उठाना पड़ सकता है.

इसे भी पढ़ें- आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होगी बसपा उम्मीदवार की जीत: मायावती

आजमगढ़: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में होने वाले लोकसभा उपचुनाव को केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जहां सपा, बीजेपी और बसपा ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. सीएम से लेकर डिप्टी सीएम और मंत्री तक बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को जिताने के लिए मैदान में उतर गए है. वहीं, दूसरी तरफ से जिला इकाई के पदाधिकारियों ने फेसबुक पर आपस में वर्चस्व की जंग शुरू कर दिया है. गुटबाजी इस कदर बढ़ गई है कि अब फेसबुक पर भड़ास निकाली जा रही है. खास बात है कि जिन ब्राह्मण और क्षत्रियों के भरोसे बीजेपी अपने जीत का सपना देख रही है. अब यह लड़ाई उन्हीं के बीच में छिड़ चुकी है. ऐसे में बीजेपी पार्टी को कहीं न कहीं नुकसान उठाना पड़ सकता है.

आजमगढ़ जिले में बीजेपी कभी भी किसी चुनाव में प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर पाई है. अब तक लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक बार 2009 में बीजेपी को आजमगढ़ संसदीय सीट पर जीत मिली है. वह भी सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हुए बाहुबली रमाकांत यादव के दम पर. इसके पूर्व बीजेपी यहां तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ती रही. वर्ष 2009 के बाद वह लगातार दूसरे नंबर पर रही है. वहीं, लालगंज सीट पर भी बीजेपी को अब तक एक मात्र जीत वर्ष 2014 की मोदी लहर में मिली थी. उस समय नीलम सोनकर यहां से सांसद चुनी गई थीं. रहा सवाल विधानसभा चुनाव का तो बीजेपी को 1991 की राम लहर में 2 सीट, वर्ष 1996 में 1 सीट और 2017 में 1 सीट मिली थी. वर्ष 2022 में बीजेपी का यहां से सूपड़ा फिर साफ हो गया. तब भी जानकारों ने इसके पीछे बड़ा कारण पार्टी की गुटबाजी को मान रहे है. वर्तमान में उपचुनाव चल रहा है. बीजेपी ने भोजपूरी फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को प्रत्याशी बनाया है.

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गौरतलब है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष ध्रुव कुमार सिंह और अन्य पदाधिकारियों की लड़ाई अब सोशल मीडिया तक पहुंच गई है. पार्टी के वरिष्ठ नेता ने फेसबुक पर पोस्ट किया है कि पार्टी में कुल 4 महामंत्री हैं. सदर विधानसभा के अकबेलपुर में मुन्ना सिंह और नन्हके सरोज को मंच मिला तो बिलरियागंज में नागेंद्र पटेल को मंच मिला, लेकिन ब्राह्मण महामंत्री विनोद उपाध्याय को मंच नहीं मिला.

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क्षेत्रीय कार्यसमिति सदस्य आशुतोष मिश्र ने एक अन्य पोस्ट में लिखा है कि ब्राह्मण भाइयों, जिलाध्यक्ष ध्रुव सिंह द्वारा चाहे जितना भी अपमान किया जाए, परंतु वोट कमल को ही देना. क्योंकि हम लोगों के पूज्य योगी और मोदीजी के हाथों को मजबूत करना है. जीतेगा 'निरहुआ' ही.

वहीं, एक अन्य पोस्ट में आशुतोष मिश्र ने लिखा है कि राज्यसभा सांसद व पूर्व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंडित शिव प्रताप शुक्ला जी के साथ किए गए अपमान के लिए आजमगढ़ भाजपा जिलाध्यक्ष मांफी मांगे.

एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि पूज्य योगी जी की अकबेलपुर जनसभा में ठंडी सड़क के दो सगे भाई मंच पर बिना किसी पद पर रहते इसलिए चढ़ गए क्योंकि वे जिलाध्यक्ष के स्वजातीय थे. जिला महामंत्री विनोद उपाध्याय इसलिए रोक दिए गए क्योंकि वे ब्राह्मण थे. उपचुनाव को लेकर ऐसे तमाम पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसपर लोग तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं. खुद बीजेपी के लोग भी अब इस जंग में कूद गए हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने जब इन लोगों से बात करने की कोशिश की तो कोई भी कुछ सार्वजनिक तौर पर बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन क्षत्रिय और ब्राह्मण की इस जंग का खामियाजा बीजेपी को उपचुनाव में उठाना पड़ सकता है.

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