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दरगाह की रक्षा के लिए आगे आए थे हिन्दू, सभी धर्मों की है आस्था - हजरत नूह अलैहिस्लाम

रामनगरी अयोध्या को यूं ही नहीं हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कहा जाता है. अवध नगरी में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे. ऐसे ही एक उदाहरण के तौर पर मौजूद है नौगजी पीर की दरगाह. यह रुहानी दरगाह हजरत नूह इस्लाम की है. इस दरगाह में हिन्दू और मुस्लिम दोनों अपनी मन्नतें लेकर आते हैं. यहां के बारे में ये बात प्रचलित है कि हजरत नूह इस्लाम की लम्बाई 15 मीटर थी.

हजरत नूह इस्लाम की मजार
हजरत नूह इस्लाम की मजार
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Published : Apr 4, 2021, 3:12 PM IST

Updated : Apr 5, 2021, 8:26 AM IST

अयोध्या: धार्मिक नगरी अयोध्या पूरी दुनिया में भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में जानी और पहचानी जाती है, लेकिन इस आध्यात्मिक नगरी में मुस्लिम, सिख, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े धर्मगुरुओं, साधकों, उलेमाओं ने भी जप-तप, साधना और इबादत के जरिए इस धरती को और पवित्र किया है. यही वजह है कि हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों से जुड़े लोग भी इस पावन नगरी के प्रति आस्था रखते हैं. धार्मिक नगरी अयोध्या में कई ऐसी प्रमुख मजारें और दरगाह हैं, जहां पर मुस्लिम से ज्यादा हिंदू धर्म के लोग जियारत करने पहुंचते हैं. ऐसी ही एक दरगाह अयोध्या के बीचों-बीच स्थित नौगजी मजार. इस दरगाह में मुस्लिम धर्मगुरु हजरत नूह इस्लाम की मजार है. इस मजार का आकार ही इस दरगाह को बेहद अलग बनाती है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

कहते हैं हजरत नूह इस्लाम थे इस कायनात के पहले इंसान
दरगाह के मुतव्वली मोहम्मद नईम ने बताया कि ये हजरत नूह इस्लाम की मजार पूरे देश में जानी जाती है. कहा जाता है कि जब इस कायनात के लोग खुदा के रास्ते से भटक कर गलत काम करने लगे. उसी वक्त हजरत नूह इस्लाम ने खुदा से इस दुनिया को खत्म करने की गुजारिश की, ताकि तमाम बुराइयां खत्म हो जाएं. खुदा का आदेश मिलते ही हजरत नूह इस्लाम ने एक कश्ती बनाई. उसमें खुदा को मानने वाले और सभी जीव जंतुओं के एक-एक जोड़े को कश्ती में जगह दी. जब यह कश्ती पानी में उतर गई तो पूरी कायनात खत्म हो गई. कहा जाता है कि जब यह कश्ती किनारे लगी तो हजरत नूह इस्लाम इस नई दुनिया के पहले आदम जात थे. इसी वजह से इन्हें आदमे नूहू कहा जाता है.

15 मीटर लंबी मजार की बड़ी कहानी
मोहम्मद नईम के मुताबिक जिस वक्त हजरत नूह इस्लाम का इंतकाल हुआ. उस वक्त उनकी लंबाई करीब 15 मीटर थी. उनके सभी बाल काले थे और एक भी दांत नहीं टूटा था. इतना ही नहीं, दावा यह भी है कि हजरत नूह इस्लाम 950 वर्षों तक जिंदा रहे. उनके इंतकाल के बाद उनकी मजार अयोध्या में ही बनाई गई. इसी वजह से यह मजार और मजारों से बड़ी और विशाल है.

इसे भी पढ़ें-मोदी सरकार ने दिया तोहफा, नए सिरे से बनेगा 84 कोसी परिक्रमा मार्ग

मजार पर नहीं चढ़ाई जा सकी पूरी चादर
दरगाह के मुतव्वली मोहम्मद नईम यह भी दावा करते हैं कि आज तक कभी भी इस मजार पर चढ़ाई जाने वाली चादर की सही माप नहीं हो पाई. मजार पर जब-जब चादर चढ़ाई गई तब-तब वो छोटी पड़ गई. इस दरगाह में हिंदू और मुस्लिम आस्था रखते हैं. यही वजह है कि बड़ी तादाद में लोग दरगाह पर जियारत करने पहुंचते हैं. खास बात यह है कि दरगाह पर आने वाले ज्यादातर लोग हिंदू ही हैं.

अयोध्या.
अयोध्या.

तंत्र-मंत्र और ठगी से दूर है दरगाह
दरगाह के खादिम मोहम्मद अकरम ने बताया कि आज के दौर में तंत्र-मंत्र के नाम पर ठगी का भी एक बड़ा कारोबार चल पड़ा है. परेशानियों में घिरे व्यक्ति को तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक के चक्कर में फंसाकर कुछ लोग उन्हें आर्थिक और शारीरिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं, जबकि दरगाह और मजार पर सिर्फ दुआ दी जाती है. ऊपर वाले के करम से लोगों की मुसीबतें दूर होती हैं.

हर गुरुवार को दरगाह पर उमड़ती है भीड़
धार्मिक नगरी अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर रही है. सन 1992 में जब अयोध्या में विवादित ढांचे को तोड़ा गया, उस वक्त भी यह मजार महफूज रही. आसपास रहने वाले हिंदुओं ने ही इस मजार को सुरक्षित रहने में मदद की. यही वजह है कि चारों तरफ से मंदिरों से घिरे होने के बावजूद दरगाह में जियारत करने वालों को मंदिरों की घंटियों से कभी परेशानी नहीं हुई.

अयोध्या: धार्मिक नगरी अयोध्या पूरी दुनिया में भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में जानी और पहचानी जाती है, लेकिन इस आध्यात्मिक नगरी में मुस्लिम, सिख, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े धर्मगुरुओं, साधकों, उलेमाओं ने भी जप-तप, साधना और इबादत के जरिए इस धरती को और पवित्र किया है. यही वजह है कि हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों से जुड़े लोग भी इस पावन नगरी के प्रति आस्था रखते हैं. धार्मिक नगरी अयोध्या में कई ऐसी प्रमुख मजारें और दरगाह हैं, जहां पर मुस्लिम से ज्यादा हिंदू धर्म के लोग जियारत करने पहुंचते हैं. ऐसी ही एक दरगाह अयोध्या के बीचों-बीच स्थित नौगजी मजार. इस दरगाह में मुस्लिम धर्मगुरु हजरत नूह इस्लाम की मजार है. इस मजार का आकार ही इस दरगाह को बेहद अलग बनाती है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

कहते हैं हजरत नूह इस्लाम थे इस कायनात के पहले इंसान
दरगाह के मुतव्वली मोहम्मद नईम ने बताया कि ये हजरत नूह इस्लाम की मजार पूरे देश में जानी जाती है. कहा जाता है कि जब इस कायनात के लोग खुदा के रास्ते से भटक कर गलत काम करने लगे. उसी वक्त हजरत नूह इस्लाम ने खुदा से इस दुनिया को खत्म करने की गुजारिश की, ताकि तमाम बुराइयां खत्म हो जाएं. खुदा का आदेश मिलते ही हजरत नूह इस्लाम ने एक कश्ती बनाई. उसमें खुदा को मानने वाले और सभी जीव जंतुओं के एक-एक जोड़े को कश्ती में जगह दी. जब यह कश्ती पानी में उतर गई तो पूरी कायनात खत्म हो गई. कहा जाता है कि जब यह कश्ती किनारे लगी तो हजरत नूह इस्लाम इस नई दुनिया के पहले आदम जात थे. इसी वजह से इन्हें आदमे नूहू कहा जाता है.

15 मीटर लंबी मजार की बड़ी कहानी
मोहम्मद नईम के मुताबिक जिस वक्त हजरत नूह इस्लाम का इंतकाल हुआ. उस वक्त उनकी लंबाई करीब 15 मीटर थी. उनके सभी बाल काले थे और एक भी दांत नहीं टूटा था. इतना ही नहीं, दावा यह भी है कि हजरत नूह इस्लाम 950 वर्षों तक जिंदा रहे. उनके इंतकाल के बाद उनकी मजार अयोध्या में ही बनाई गई. इसी वजह से यह मजार और मजारों से बड़ी और विशाल है.

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मजार पर नहीं चढ़ाई जा सकी पूरी चादर
दरगाह के मुतव्वली मोहम्मद नईम यह भी दावा करते हैं कि आज तक कभी भी इस मजार पर चढ़ाई जाने वाली चादर की सही माप नहीं हो पाई. मजार पर जब-जब चादर चढ़ाई गई तब-तब वो छोटी पड़ गई. इस दरगाह में हिंदू और मुस्लिम आस्था रखते हैं. यही वजह है कि बड़ी तादाद में लोग दरगाह पर जियारत करने पहुंचते हैं. खास बात यह है कि दरगाह पर आने वाले ज्यादातर लोग हिंदू ही हैं.

अयोध्या.
अयोध्या.

तंत्र-मंत्र और ठगी से दूर है दरगाह
दरगाह के खादिम मोहम्मद अकरम ने बताया कि आज के दौर में तंत्र-मंत्र के नाम पर ठगी का भी एक बड़ा कारोबार चल पड़ा है. परेशानियों में घिरे व्यक्ति को तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक के चक्कर में फंसाकर कुछ लोग उन्हें आर्थिक और शारीरिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं, जबकि दरगाह और मजार पर सिर्फ दुआ दी जाती है. ऊपर वाले के करम से लोगों की मुसीबतें दूर होती हैं.

हर गुरुवार को दरगाह पर उमड़ती है भीड़
धार्मिक नगरी अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर रही है. सन 1992 में जब अयोध्या में विवादित ढांचे को तोड़ा गया, उस वक्त भी यह मजार महफूज रही. आसपास रहने वाले हिंदुओं ने ही इस मजार को सुरक्षित रहने में मदद की. यही वजह है कि चारों तरफ से मंदिरों से घिरे होने के बावजूद दरगाह में जियारत करने वालों को मंदिरों की घंटियों से कभी परेशानी नहीं हुई.

Last Updated : Apr 5, 2021, 8:26 AM IST
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