अयोध्या: पर्यावरण सुरक्षा के लिए सरकार तमाम जागरूकता अभियान चला रही है. वहीं जनपद में इसके उलट हो रहा है. केएम शुगर मिल किसानों के हित के लिए स्थापित की गई थी, लेकिन अब इस मिल का कचरा स्थानीय लोगों की जिंदगी निगलने पर तुल गया है. मसौधा क्षेत्र के आवासीय इलाके में ज्वलनशील पदार्थ के निर्माण की तैयारी है. इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जल, वायु और मृदा प्रदूषण होगा, जिसकी भरपाई करना संभव नहीं हो पाएगा.
यह मामला अयोध्या के मसौधा क्षेत्र स्थित अशरफपुर बिहारीपुर का है. यह ग्राम सभा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 330 से जुड़ी हुई है. इस ग्राम सभा के अंतर्गत टोनिया में केएम शुगर मिल से निकला कचरा डंप किया जा रहा है. इस कचरे का ट्रीटमेंट करके ज्वलनशील पदार्थ बनाया जाएगा. इसे ईंट के भट्ठों में प्रयोग किया जाएगा. इसके लिए अशरफपुर बिहारीपुर के ग्रामीणों की कृषि और बाग की भूमि का प्रयोग किया जा रहा है. ट्रीटमेंट के लिए प्लांट लगाने का काम तेजी से चल रहा है. वहीं बड़ी मात्रा में कचरा डंप होने से गांव में तेजी से बदबू फैल रही है.
एनजीटी की नोटिस के बावजूद नहीं चेता मिल प्रशासन
मसौधा क्षेत्र में हो रहे पेयजल प्रदूषण को लेकर एनजीटी से पहले केएम शुगर मिल को नोटिस भेजा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि नल से पानी निकलने के थोड़ी देर बाद वह पीला हो जाता है. यहां का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की नोटिस के बावजूद मिल के वेस्ट का उपयुक्त स्थल पर ट्रीटमेंट नहीं किया जा रहा है.
वेस्ट ट्रीटमेंट के लिए नगर निगम के सीमावर्ती इलाकों का रुख
मिल से निकलने वाला वेस्ट कंप्रेस्ड मड अब नगर निगम सीमा के आसपास के क्षेत्रों में डंप किया जा रहा है. बिहारीपुर अशरफपुर नगर निगम की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है. मसौधा शुगर मिल के इस रवैये से स्थानीय लोग आहत हैं. उनका कहना है कि इस कचरे से निकलने वाली बदबू से उनका यहां रहना मुश्किल हो जाएगा.
पानी में पहले से है प्रदूषण, अब हवा और मिट्टी दूषित करने की तैयारी
केएम शुगर मिल की लापरवाही के चलते मिल और उसके आसपास के क्षेत्रों का भूजल दूषित हो चुका है. ग्रामीणों का कहना है कि यहां पानी पहले से ही दूषित है. अब हवा में प्रदूषण फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. मिल के कचरे के संग्रहण से यहां की जमीन की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो जाएगी. इससे उनकी फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
बिना एनओसी के कृषि भूमि का कमर्शियल उपयोग
दरअसल मसौधा के ग्रामीण क्षेत्र में शुगर मिल का कचरा सिर्फ ट्रीटमेंट के लिए ही डंप नहीं किया जा रहा है. इससे बनने वाले वाला ज्वलनशील पदार्थ का ईंट के भट्ठों में प्रयोग होता है. कचरा ट्रीटमेंट के बाद निकलने वाले पदार्थ को एक भट्ठा मालिक खरीद लेते हैं. कमर्शियल रूप में प्रयोग होने वाले इस कृषि भूमि के लिए ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है, लेकिन बताया जा रहा है कि अब तक मिल ने इसके लिए संबंधित विभाग से एनओसी भी नहीं ली है.
ग्रामीणों की बिना सहमति के बाद में डंप हो रहा कचरा
कृषि क्षेत्र के अलावा अशरफपुर बिहारीपुर गांव के बाद की जमीन में भी कचरा जमा किया जा रहा है जब ईटीवी भारत ने इस संबंध में उस गांव के कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि मिल प्रशासन यह कार्य उनके बिना सहमति के कर रहा है. इस समस्या को लेकर ग्रामीण ओमप्रकाश सिंह ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर इसकी शिकायत की है. फिलहाल कचरा ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का काम तेजी से चल रहा है. प्रशासन ने अब तक मामले में संज्ञान नहीं लिया है.
प्रेस मड से पर्यावरण होगा प्रदूषित
पर्यावरणविदों का कहना है कि प्रेस मड जब सड़ता है तो उससे बहुत सारे माइक्रोऑर्गेनिज्म निकलते हैं जो मानव जीवन के लिए बेहद हानिकारक हैं. डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि शुगर मिल से निकलने वाला यह अपशिष्ट ज्वलनशील होता है. शोध बताते हैं कि 20 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसे कृषि योग्य भूमि में डाला जा सकता है. निर्धारित मात्रा से अधिक प्रेस मड डालने से जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है. बारिश या फिर खेत में पानी भरने से यह तेजी से जमीन के अंदर जाता है. इससे मृदा प्रदूषण बढ़ता है. प्रेस मड सड़ने पर दुर्गंध फैलती है. इसके साथ ही बहुत से माइक्रो ऑर्गेनिज्म पैदा होते हैं, जिससे संबंधित क्षेत्र में बीमारियां बढ़ सकती हैं.