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अवध की वो महिला शासक, जिसने खत्म कर दिए थे सभी टैक्स

अवध की वह महिला शासक, जिसने अपने पति के बीमार होने पर वर्तमान में उत्तर प्रदेश और नवाबी दौर में अवध के नाम से मशहूर एक बड़े सूबे की सत्ता न सिर्फ संभाली बल्कि बेहद काबिलियत के साथ हुकूमत को चलाया. इतना ही नहीं सूबे की रियाया को राहत देते हुए एक बड़ा फैसला लिया और पूरे अवध से सभी तरह के टैक्स समाप्त कर दिए.

अवध की वो महिला शासक, जिसने खत्म कर दिए थे सभी टैक्स.
अवध की वो महिला शासक, जिसने खत्म कर दिए थे सभी टैक्स.
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Published : Jan 10, 2021, 8:41 PM IST

अयोध्या : जिले में राम जन्मभूमि के अलावा भी कई ऐसी जगह हैं, जिनका महत्व इतिहास के पन्नों में है. इन्हीं में से एक है 'बहू बेगम का मकबरा'. बहु बेगम, अवध की वो महिला शासक, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी अवध में लगने वाले सभी टैक्स खत्म कर दिए थे. जी हां, अवध के नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी अम्मतुज ज़हरा उर्फ बहू बेगम, जिनकी बहादुरी और नेकी के किस्से आज भी मशहूर हैं.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

बहु बेगम ईरान से कैसे पहुंचीं फैजाबाद
31 जुलाई 1731 को ईरान में जन्मी अम्मतुज जहरा के पिता नवाब मोहम्मद इश्क मुगल दरबार में दरबारी थे. इतिहास में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक 1745 में उम्मतुज जहरा का निकाह मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के कहने पर नवाब शुजाउद्दौला से हुआ था. दिल्ली के लाल किले पर बेहद शानो शौकत से शादी की रस्में पूरी हुई और उसके बाद अम्मतुज जहरा बहू बनकर फैजाबाद आईं. इसीलिए उनका नाम भी बहू बेगम पड़ गया. फैजाबाद में मशहूर बहू बेगम मकबरे के ट्रस्टी अशफाक हुसैन जिया के मुताबिक 1769 में नवाब शुजाउद्दौला को घाघरा नदी में एक मगरमच्छ ने हमला करके घायल कर दिया. इसके बाद से अपने पति के बीमार होने पर अवध की सल्तनत को उनकी बीवी बहू बेगम ने संभाला.

बहू बेगम.
बहू बेगम.

अवध में माफ हो गए थे सारे टैक्स
6 साल तक बीमार रहने के बाद 1775 में 45 साल की उम्र में ही नवाब शुजाउद्दौला की मौत हो गई, लेकिन नवाब ने अपनी मौत से पहले अपनी सारी जायदाद बहू बेगम के नाम कर दी थी. नवाब की बीमारी के दौरान 6 साल तक बहू बेगम अवध की सत्ता को चलाती रही. इस दौरान बहू बेगम ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर संघर्ष किया. सूबे की आवाम को सहूलियत देते हुए सन 1769 के बाद पूरे अवध में सभी तरह के टैक्स और लगान माफ कर दिए थे. उनके इस फैसले ने उन्हें काफी शोहरत दी.

नवाब शुजाउद्दौला.
नवाब शुजाउद्दौला.

फैजाबाद में बनवाया अपना मकबरा
इस दौरान उन्होंने फैजाबाद में कई मशहूर इमारतें बनवाईं. इनमें बहू बेगम का मकबरा, दिलकुशा महल, मोती महल जैसी इमारतें शामिल हैं. फैजाबाद यानि अयोध्या में बना बहू बेगम का मकबरा आज भी बेहद मशहूर है. दस्तावेजों के मुताबिक इस मकबरे की नींव नवाब शुजाउद्दौला ने की थी. वो अपनी पत्नी बहु बेगम के लिए मकबरा बनवाना चाहते थे. लेकिन बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गयी. उस समय तक मकबरे का कुछ काम ही पूरा हो पाया था. इसके बाद पति की इच्छा पूरी करने के लिए बहू बेगम ने इस मकबरे का निर्माण कराया.

बहू बेगम का मकबरा.
बहू बेगम का मकबरा.

आज भी कायम है बहु बेगम की शोहरत
8 जनवरी सन् 1815 को फैजाबाद के दिलकुशा महल में बहू बेगम का इंतकाल हो गया. लेकिन अपनी मौत से पहले ही उन्होंने अपने बेटे आसिफउद्दौला को अवध का नवाब बना दिया था. इसके अलावा उन्होंने कई ऐसे बड़े काम किए थे, जिसके कारण उनकी शोहरत सिर्फ फैजाबाद और लखनऊ ही नहीं पूरे देश में पहुंच चुकी थी. इंसाफ पसंद और अपनी आवाम की भलाई सोचने वाली बहू बेगम के दौर में बनवाई गई कई इमारतें आज भी फैजाबाद में मौजूद हैं. जिन्हें केंद्र सरकार के अधीन संस्था भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया है. भले ही बहू बेगम के इंतकाल को 200 वर्ष से ज्यादा का वक्त बीत गया हो लेकिन आज भी उनकी शोहरत कम नहीं हुई है. आज भी बड़ी इज्जत के साथ फैजाबाद और लखनऊ के नवाबी घरानों में उनका नाम लिया जाता है.

अयोध्या : जिले में राम जन्मभूमि के अलावा भी कई ऐसी जगह हैं, जिनका महत्व इतिहास के पन्नों में है. इन्हीं में से एक है 'बहू बेगम का मकबरा'. बहु बेगम, अवध की वो महिला शासक, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी अवध में लगने वाले सभी टैक्स खत्म कर दिए थे. जी हां, अवध के नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी अम्मतुज ज़हरा उर्फ बहू बेगम, जिनकी बहादुरी और नेकी के किस्से आज भी मशहूर हैं.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

बहु बेगम ईरान से कैसे पहुंचीं फैजाबाद
31 जुलाई 1731 को ईरान में जन्मी अम्मतुज जहरा के पिता नवाब मोहम्मद इश्क मुगल दरबार में दरबारी थे. इतिहास में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक 1745 में उम्मतुज जहरा का निकाह मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के कहने पर नवाब शुजाउद्दौला से हुआ था. दिल्ली के लाल किले पर बेहद शानो शौकत से शादी की रस्में पूरी हुई और उसके बाद अम्मतुज जहरा बहू बनकर फैजाबाद आईं. इसीलिए उनका नाम भी बहू बेगम पड़ गया. फैजाबाद में मशहूर बहू बेगम मकबरे के ट्रस्टी अशफाक हुसैन जिया के मुताबिक 1769 में नवाब शुजाउद्दौला को घाघरा नदी में एक मगरमच्छ ने हमला करके घायल कर दिया. इसके बाद से अपने पति के बीमार होने पर अवध की सल्तनत को उनकी बीवी बहू बेगम ने संभाला.

बहू बेगम.
बहू बेगम.

अवध में माफ हो गए थे सारे टैक्स
6 साल तक बीमार रहने के बाद 1775 में 45 साल की उम्र में ही नवाब शुजाउद्दौला की मौत हो गई, लेकिन नवाब ने अपनी मौत से पहले अपनी सारी जायदाद बहू बेगम के नाम कर दी थी. नवाब की बीमारी के दौरान 6 साल तक बहू बेगम अवध की सत्ता को चलाती रही. इस दौरान बहू बेगम ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर संघर्ष किया. सूबे की आवाम को सहूलियत देते हुए सन 1769 के बाद पूरे अवध में सभी तरह के टैक्स और लगान माफ कर दिए थे. उनके इस फैसले ने उन्हें काफी शोहरत दी.

नवाब शुजाउद्दौला.
नवाब शुजाउद्दौला.

फैजाबाद में बनवाया अपना मकबरा
इस दौरान उन्होंने फैजाबाद में कई मशहूर इमारतें बनवाईं. इनमें बहू बेगम का मकबरा, दिलकुशा महल, मोती महल जैसी इमारतें शामिल हैं. फैजाबाद यानि अयोध्या में बना बहू बेगम का मकबरा आज भी बेहद मशहूर है. दस्तावेजों के मुताबिक इस मकबरे की नींव नवाब शुजाउद्दौला ने की थी. वो अपनी पत्नी बहु बेगम के लिए मकबरा बनवाना चाहते थे. लेकिन बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गयी. उस समय तक मकबरे का कुछ काम ही पूरा हो पाया था. इसके बाद पति की इच्छा पूरी करने के लिए बहू बेगम ने इस मकबरे का निर्माण कराया.

बहू बेगम का मकबरा.
बहू बेगम का मकबरा.

आज भी कायम है बहु बेगम की शोहरत
8 जनवरी सन् 1815 को फैजाबाद के दिलकुशा महल में बहू बेगम का इंतकाल हो गया. लेकिन अपनी मौत से पहले ही उन्होंने अपने बेटे आसिफउद्दौला को अवध का नवाब बना दिया था. इसके अलावा उन्होंने कई ऐसे बड़े काम किए थे, जिसके कारण उनकी शोहरत सिर्फ फैजाबाद और लखनऊ ही नहीं पूरे देश में पहुंच चुकी थी. इंसाफ पसंद और अपनी आवाम की भलाई सोचने वाली बहू बेगम के दौर में बनवाई गई कई इमारतें आज भी फैजाबाद में मौजूद हैं. जिन्हें केंद्र सरकार के अधीन संस्था भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया है. भले ही बहू बेगम के इंतकाल को 200 वर्ष से ज्यादा का वक्त बीत गया हो लेकिन आज भी उनकी शोहरत कम नहीं हुई है. आज भी बड़ी इज्जत के साथ फैजाबाद और लखनऊ के नवाबी घरानों में उनका नाम लिया जाता है.

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