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रामनगरी में मनाया गया शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व

अयोध्या जिले के लवकुश और कालेराम मंदिर में तुलसी-शालिग्राम विवाह पर्व धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान तुलसी और शालिग्राम की मूर्ति को दूल्हे और दुल्हन जैसा सजाया गया. साथ ही मंगल गीतों से मंदिर का प्रागंण गुंजायमान हो उठा.

शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व.
शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व.
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Published : Nov 27, 2020, 9:27 PM IST

अयोध्याः रामनगरी में शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व लवकुश मंदिर और कालेराम मंदिर में धूमधाम से मनाया गया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का विवाह विष्णु के एक अवतार शालिग्राम से हुआ था. तुलसी लक्ष्मीरूपा हैं. जैसे सामान्यतया वर-वधू के पारंपरिक विवाह में मंगलगीतों, नवदिव्य आभूषण और परिधानों से दुल्हन को सुसज्जित किया जाता है. ठीक उसी तरह तुलसी-शालिग्राम विवाह पर्व पर लवकुश मंदिर के महंत रामकेवल दास की अगुवाई में यह विवाह समारोह संन्नप किया गया.

शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व.

सुहाग के सभी साधन सहित सम्पन्न विवाह हुआ
इस अवसर पर चंदन, फूल, इत्र और सिंदूर तथा सुहाग के सभी साधन सहित विवाह सम्पन्न हुआ. इससे पहले विवाह बारात निकाली गई. कहा जाता है कि इससे भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. यह कहा जाता है कि जो कन्या-सुख से वंचित है, उन्हें तो पूरे मनोयोग से तुलसी विवाह का आयोजन करना चाहिए.

इसका फल गो-दान से भी बढ़कर
शिक्षक संतोष कुमार तिवारी के अनुसार तुलसी विवाह से ही समस्त मांगलिक कार्यों का हिंदू धर्मानुयायी आरंभ मानते हैं. इसका फल गो-दान से भी बढ़कर बताया गया है. तुलसी मूलत:वनौषधि है. इसके महत्व को अलग से रेखांकित करने की आज आवश्यकता नहीं है. कोरोना काल मे जहां जीवन संकट में है, तुलसी इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत मददगार है.

भगवान विष्णु की प्रिया का दर्जा प्राप्त
आदि चिकित्सक धन्वन्तरि ने इसके विषय में विस्तृत उल्लेख किया है. जिसे वन की घास समझकर लोग नजरंदाज करते थे. उन्हें देवताओं के स्वामी भगवान विष्णु की प्रिया का दर्जा प्राप्त है. विभिन्न संदर्भों वनस्पतियों में जीवन बचाने की अद्भुत क्षमता की अनेक कहानियां हैं. तुलसी की पूजा का अर्थ ही उसके संरक्षण से गहरे से जुड़ा है.

शाप से मुक्त करने का आग्रह
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु ने जालंधर के वध के पूर्व उसकी पत्नी वृंदा के साथ छल से किया था. वृंदा ने पातिव्रत के बल पर भगवान विष्णु के षडयंत्र को भाप लिया और क्रोधवश उन्हें पत्थर हो जाने का शाप दे दिया. वहीं पत्थर काले रंग के शालिग्राम रूप में बदल गए. जिसके फलस्वरुप ब्रह्मांड में प्रलय की स्थित बन गई. तब देवताओं और माता लक्ष्मी ने वृंदा से भगवान विष्णु को शाप से मुक्त करने का आग्रह किया.

तुलसी को सिर पर धारण करते हैं भगवान विष्णु
शापमुक्त करने के बाद वृंदा अग्नि में समाहित हो गई. उसी राख पर वृंदा तुलसी के रूप में प्रकट हुई, तब भगवान विष्णु ने कहा..मैं तुम्हें हमेशा अपने सिर पर धारण करुंगा और देवी लक्ष्मी की भांति तुम्हारा भी मान-सम्मान रहेगा. मुझे प्रदान भोजनादि का प्रथम तुम लगाओगी. तुलसी जीवन में जिस हरियाली और विभिन्न रोगों के क्षय का स्रोत है. उसका बखान जितना किया जाए वह कम है. समय की मांग है कि आज हर घर में तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए.

अयोध्याः रामनगरी में शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व लवकुश मंदिर और कालेराम मंदिर में धूमधाम से मनाया गया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का विवाह विष्णु के एक अवतार शालिग्राम से हुआ था. तुलसी लक्ष्मीरूपा हैं. जैसे सामान्यतया वर-वधू के पारंपरिक विवाह में मंगलगीतों, नवदिव्य आभूषण और परिधानों से दुल्हन को सुसज्जित किया जाता है. ठीक उसी तरह तुलसी-शालिग्राम विवाह पर्व पर लवकुश मंदिर के महंत रामकेवल दास की अगुवाई में यह विवाह समारोह संन्नप किया गया.

शालिग्राम-तुलसी विवाह पर्व.

सुहाग के सभी साधन सहित सम्पन्न विवाह हुआ
इस अवसर पर चंदन, फूल, इत्र और सिंदूर तथा सुहाग के सभी साधन सहित विवाह सम्पन्न हुआ. इससे पहले विवाह बारात निकाली गई. कहा जाता है कि इससे भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. यह कहा जाता है कि जो कन्या-सुख से वंचित है, उन्हें तो पूरे मनोयोग से तुलसी विवाह का आयोजन करना चाहिए.

इसका फल गो-दान से भी बढ़कर
शिक्षक संतोष कुमार तिवारी के अनुसार तुलसी विवाह से ही समस्त मांगलिक कार्यों का हिंदू धर्मानुयायी आरंभ मानते हैं. इसका फल गो-दान से भी बढ़कर बताया गया है. तुलसी मूलत:वनौषधि है. इसके महत्व को अलग से रेखांकित करने की आज आवश्यकता नहीं है. कोरोना काल मे जहां जीवन संकट में है, तुलसी इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत मददगार है.

भगवान विष्णु की प्रिया का दर्जा प्राप्त
आदि चिकित्सक धन्वन्तरि ने इसके विषय में विस्तृत उल्लेख किया है. जिसे वन की घास समझकर लोग नजरंदाज करते थे. उन्हें देवताओं के स्वामी भगवान विष्णु की प्रिया का दर्जा प्राप्त है. विभिन्न संदर्भों वनस्पतियों में जीवन बचाने की अद्भुत क्षमता की अनेक कहानियां हैं. तुलसी की पूजा का अर्थ ही उसके संरक्षण से गहरे से जुड़ा है.

शाप से मुक्त करने का आग्रह
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु ने जालंधर के वध के पूर्व उसकी पत्नी वृंदा के साथ छल से किया था. वृंदा ने पातिव्रत के बल पर भगवान विष्णु के षडयंत्र को भाप लिया और क्रोधवश उन्हें पत्थर हो जाने का शाप दे दिया. वहीं पत्थर काले रंग के शालिग्राम रूप में बदल गए. जिसके फलस्वरुप ब्रह्मांड में प्रलय की स्थित बन गई. तब देवताओं और माता लक्ष्मी ने वृंदा से भगवान विष्णु को शाप से मुक्त करने का आग्रह किया.

तुलसी को सिर पर धारण करते हैं भगवान विष्णु
शापमुक्त करने के बाद वृंदा अग्नि में समाहित हो गई. उसी राख पर वृंदा तुलसी के रूप में प्रकट हुई, तब भगवान विष्णु ने कहा..मैं तुम्हें हमेशा अपने सिर पर धारण करुंगा और देवी लक्ष्मी की भांति तुम्हारा भी मान-सम्मान रहेगा. मुझे प्रदान भोजनादि का प्रथम तुम लगाओगी. तुलसी जीवन में जिस हरियाली और विभिन्न रोगों के क्षय का स्रोत है. उसका बखान जितना किया जाए वह कम है. समय की मांग है कि आज हर घर में तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए.

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