अयोध्याः देश की सियासत में बेहद अहम मुकाम रखने वाले शहर अयोध्या में भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों को कब्जा करने और कब्जा दिलाने के नाम पर निजी लाभ लेने के बहुत से मामले बीते सालों में सामने आये हैं. हालांकि इन मामलों में कार्रवाई होने से पहले ही राजनीतिक रसूख की वजह से पीड़ित पक्ष को समझौता करना पड़ा और शिकायत की फाइल ठंडे बस्ते में चली गयी.
सत्ता पक्ष के MLA पर लगा था रास्ता कब्जा करने का आरोप
जिले के सत्ता पक्ष के विधायक पर भी कुछ महीने पहले आरोप लगा था कि उन्होंने बढ़ई का पुरवा में अपने आवास के बगल के रहने वाले परिवार के घर की ओर जाने वाले रास्ते पर कब्जा कर लिया था. इस मामले को लेकर पीड़ित परिवार ने प्रशासन को शिकायत दर्ज करायी थी. मामला चर्चा का केंद्र बनता इससे पहले ही विधायक ने राजस्व विभाग के जरिये भूमि की नाप करवायी. इसके साथ ही राजस्व अभिलेखों में दर्ज जमीन के नक्शे की पैमाइश करवायी. जिसके बाद राजस्व विभाग ने ये पाया कि जिस स्थान पर रास्ते का विवाद है, वहां रास्ता है ही नहीं, आखिरकार मामला यहीं खत्म हो गया.
MLA के समर्थक पर लगा था जमीन कब्जा करने का आरोप
अपने सियासी कैरियर में एसपी, बीएसपी और बीजेपी में सियासत चमका चुके जिले के कद्दावर विधायक के समर्थक पर भी ये आरोप लगा है कि उन्होंने एक महिला के घर पर कब्जा कर लिया है. अयोध्या कोतवाली नगर इलाके के नाका क्षेत्र में स्थित इस मकान पर कब्जे को लेकर विवाद शुरू हुआ. लेकिन इस मामले में भी 15 दिन तक वाद-विवाद के बाद दोनों पक्षों ने आपसी समझौते से विवाद को सुलझा लिया. किसी भी तरह की कोई कानूनी कार्रवाई इस मामले में नहीं हुई.
होटल की बिल्डिंग पर कब्जे को लेकर पूर्व MLA ने की थी दो पक्षों में समझौते की कोशिश
इसी तरह का एक विवाद शहर के सिविल लाइन स्थित मशहूर होटल को लेकर भी था. जिसमें होटल के मालिकाना हक को लेकर दो भाइयों में विवाद हुआ और उसके बाद विपक्षी दल के एक दबंग नेता ने इसमें अपनी भूमिका निभाई. एक तरफा दबाव देकर मामले को सुलझाने का प्रयास भी किया गया. लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ, और मामला कोर्ट की दहलीज पर जा पहुंचा. आखिरकार मजबूर होकर नेता जी को अपने पांव पीछे खींचने पड़े. अब ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है. इसके मालिकाना हक को लेकर दोनों पक्ष कचहरी के चक्कर काट रहे हैं.
आस्था और आध्यात्मिक नगरी होने से रसूखदार नेताओं की नहीं चली
धार्मिक नगरी अयोध्या को आस्था और अध्यात्म की नगरी कहा जाता है. भगवान श्री राम की पावन जन्मस्थली होने की वजह से ये शहर राजनीति का एक बड़ा केंद्र रहा है. लेकिन बेहद हाई प्रोफाइल राम मंदिर प्रकरण को लेकर हमेशा से चर्चा का केंद्र रहने वाले इस शहर में व्हाइट कॉलर लोगों की दबंगई नहीं चल पाई. यही कारण है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस बड़े शहर में सफेदपोश लोग दबंगई करने में सफल नहीं रहे. जिसकी वजह से आज भी जिले की सियासत को साफ-सुथरा माना जाता है. चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, जिले के जनप्रतिनिधियों के ऊपर दबंगई के मामले दर्ज नहीं हैं.