अयोध्या: लक्ष्मण किला भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में सरयू तट पर स्थित है. यह किला स्वामी युगलानन्य शरण महाराज की तपोस्थली और भगवान राम की रसिक उपासना आचार्य पीठ का प्रमुख केंद्र है. लक्ष्मण किले के संस्थापक आचार्य स्वामी युगलानन्य शरण जीवाराम महाराज के शिष्य थे. वर्ष 1818 में नालंदा के ईशरामपुर में जन्मे स्वामी युगलानन्य शरण का रामानंदीय वैष्णव संप्रदाय में विशिष्ट स्थान है.
रसिक उपासना का सबसे प्राचीन पीठ है यह किला
आचार्य पीठ लक्ष्मण किला रसिक उपासना का सबसे प्राचीन पीठ है. यहां तत्सुखी भाव की आचार्य जीवाराम की परंपरा है. आचार्य जीवाराम के शिष्य स्वामी युगलानन्य शरण की तपोस्थली पर इस मंदिर को साल 1865 में रीवा स्टेट के दीवान दीनबंधु के विशेष आग्रह के बाद बनवाया गया था. दशहरे के अतिरिक्त पूरे वर्ष में यहां भगवान राम को शस्त्र धारण नहीं कराया जाता है.
दूल्हे के रूप में की जाती है भगवान राम की उपासना
रसिक उपासना के संतों द्वारा यहां भगवान राम की उपासना दूल्हे के रूप में की जाने की परंपरा है. प्रतिदिन मंदिर में विवाह के पदों का गायन होता है. सीता राम विवाह उत्सव यहां धूमधाम से मनाया जाता है और प्रतिदिन भगवान के महल के अंतरंग भाव की उपासना भी की जाती है. मंदिर की उपासना की परंपरा में श्रृंगार का विशेष महत्व है.
कई भाषाओं के थे विद्वान, गायन में भी गहरी पैठ
स्वामी युगलानन्य शरण संस्कृत, उर्दू, अरबी सहित कई भाषाओं के विद्वान थे. इसके साथ ही गायन विद्या में भी उनकी गहरी पैठ थी. गुरु गोविंद सिंह की जन्मभूमि हरमंदिर पटना में रहकर गुरु ग्रंथ साहब की व्याख्या भी उन्होंने की. स्वामी विमलानंद शरण महाराज पटना से काशी और चित्रकूट होते हुए अयोध्या आए थे.
92 से अधिक ग्रंथों की रचना
उन्होंने 92 से अधिक ग्रंथों की रचना की है. उनकी प्रमुख रचनाओं में रघुवर गुण दर्पण, पारस भाग, श्री सीताराम नाम प्रताप प्रकाश ,सतगुरु प्रकाश सागर, इश्क कांति ,धाम कांति, मधुर मंजमाला सिद्धांत सार आदि प्रमुख है.
की थी भगवान राम की कठिन तपस्या
स्वामी युगलानन्य शरण ने अयोध्या के 84 कोसी शास्त्र सीमा में स्थित घृताची कुंड पर 14 महीने का व्रत रखकर भगवान राम की कठिन तपस्या की थी. निरमोहिया से लागी लगन उनका प्रमुख भजन था. उनकी तपस्या से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने ताम्र पत्र लिखकर 40 बीघा जमीन उन्हें दान में दी थी, जो आज भी मौजूद है.
सपने में भी रोने लगते थे स्वामी युगलानन्य शरण
अयोध्या छूटने के डर से वह सपने में भी रोने लगते थे. ऐसा कहा जाता है कि एक बार वह सपने में ही भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने पुरी पहुंच गए थे. इस घटना का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक धाम कांति में किया है.
तपस्या से प्रभावित होकर आए थे स्वामी विवेकानंद
लक्ष्मण किला के वर्तमान महंत मैथिली रमण शरण ने बताया कि स्वामी युगलानन्य शरण की तपस्या आज भी हम लोगों को परम शांति और सुख का अनुभव कराती है. उन्होंने बताया कि उनकी तपस्या से प्रभावित होकर एक बार स्वामी विवेकानंद आए थे. उनके द्वारा लिखी पुस्तकें राम भक्तों के लिए अमूल्य धरोहर है. संत जनक दुलारी शरण ने कहा कि पूरे भारत के लाखों श्रद्धालु मंदिर की परंपरा से जुड़े हुए हैं.