अयोध्याः सरयू तट स्थित कालेराम मंदिर में स्थापित भगवान के विग्रह धार्मिक दृष्टि से जितने महत्वपूर्ण हैं उनकी ऐतिहासिक प्रसिद्धि भी उतनी ज्यादा है. मंदिर के व्यवस्थापकों और संतो के अनुसार दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या की पुर्नस्थापना कर रामजन्मभूमि पर जिस श्रीरामपंचायतन के जिस विग्रह की स्थापना की थी, उसे मीरबांकी ने सरयू में बहा दिया था. मूर्तियां स्नान के दौरान महाराष्ट्र के ब्राह्मण पंडित नरसिंहराव को मिली थी. इन मूर्तियों को इस मंदिर में पुर्नस्थापित किया गया है.
विक्रमादित्य ने पांच प्रमुख मंदिरों की स्थापना कर बसाई अयोध्या
कालेराम मंदिर रामनगरी के सिद्धस्थानों में शुमार है. मंदिर के व्यवस्थापक राघवेंद्र देश पाण्डेय ने बताया कि मंदिरों की नगरी श्री अयोध्या वर्तमान स्वरूप में हम जिसका दर्शन करते हैं. वह आज से 2059 वर्ष पूर्व महाराजा वीर विक्रमादित्य ने पांच प्रमुख मंदिरों की स्थापना कर बसाई है. जिसमें 84 कसौटी के स्तम्भों पर निर्मित 7 कलशों वाला श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर प्रथम मंदिर था.
मुगलों से बचाने के लिए श्रीरामपंचायतन विग्रह को सरयू कर दिया था प्रवाहित
दुर्भाग्यवश सन् 1528 ई. में मुगलकाल में बाबर बादशाही के समय उस मंदिर को ध्वस्त कर दिया. उस समय अपने प्राणप्रिय प्रभु को मुगल आक्रमणकारियों की कुदृष्टि से बचाने के लिए श्रीरामपंचायतन विग्रह को श्री सरयू की धारा में प्रवाहित कर दिया. इसलिये श्रीरामपंचायतन सुरक्षित रहा. कालान्तर में अयोध्या के राजादर्शन सिंह के समय में सन् 1748 में यही रामपंचायतन दक्षिण भारत के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण पं.श्रीनरसिंह राव मोघे को दृष्टान्त द्वारा प्राप्त है. पाण्डेय बताते हैं कि उपरोक्त स्वप्न आदेश के अनुसार श्रीराम जन्मभूमि के पंचायतन विग्रह की प्राप्ति ब्राह्मण योगी को सहस्त्र धारा लक्ष्मणघाट पर स्नान करते समय सरयू नदी में हुयी. जिसे उन्होंने सुप्रसिद्ध नागेश्वरनाथ के सानिध्य में स्थापना की जो आज श्री कालेराम मंदिर ट्रस्ट के नाम से प्रसिद्ध है.
संपूर्ण श्रीरामपंचायत एक ही शालिग्राम शिला में हैं
व्यवस्थापक के अनुसार यह मंदिर श्री अयोध्या के सिद्धस्थानों में प्रसिद्ध है. हजारों रामभक्त नित्य दर्शन एवं उपासना कर अपनी मनौतियों को पूर्ण करते हैं. इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां संपूर्ण श्रीरामपंचायत एक ही शालिग्राम शिला में हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है. मध्य में रामजी, उनके वामांग में किशोरी जी, उनके वामांग में भरतलालजी रामजी के दक्षिण लक्ष्मण जी, उनके दक्षिण शत्रुहनलाल जी, श्रीरामपंचायतन राज्याभिषेक का दर्शन है. लखनलाल जी के हाथ में छत्र का दण्ड हैं, शत्रुघ्नलाल जी के हाथ में चंवर एवं भरतलाल जी के हाथ में पंखा, श्री चरणों में सेवाभाव में दक्षिण मुखी श्रीहनुमान जी महाराज विराजमान है.