अयोध्याः पर्यटन नगरी आगरा में स्थित ऐतिहासिक पर्यटन स्थल ताजमहल को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है. हिंदू धर्म से जुड़े कुछ संतों और धार्मिक मामलों के जानकारों ने ताजमहल को भगवान शिव का मंदिर बताते हुए तेजो महालय का नाम दिया है. संतों का दावा है कि अगर जांच की जाए तो निश्चित रूप से इस स्थान पर भगवान शिव की मौजूदगी स्पष्ट हो जाएगी. ऐसे में अब अयोध्या के भाजपा मीडिया प्रभारी डॉ रजनीश सिंह ने लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका फाइल की है. इसमें उन्होंने कहा है की ताजमहल के बंद 22 कमरों को खोला जाए जिससे उसका राज जनता के सामने आ सके. इस याचिका पर सुनवाई होनी बाकी है. 10 मई को इस पर सुनवाई हो सकती है.
ताजमहल से जुड़ा यह पूरा विवाद काफी पुराना है. हाईकोर्ट में दायर याचिका में ताजमहल में बंद 22 कमरों को खोलने की बात कही गई हैं. इन कमरों में किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं है. इन्हीं कमरों में हिंदू देवताओं की मूर्तियां होने की आशंका जताई जा रही है. डॉ रजनीश सिंह का कहना है कि उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आग्रह किया है कि एएसआई से तथ्यों का पता लगाया जाए ताकि सभी विवाद शांत हो सके.
याचिकाकर्ता डॉ. रजनीश सिंह ने अपनी याचिका में राज्य सरकार को एक समिति गठित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है. मांग की है कि यह समिति ही ताजमहल के बंद कमरों की जांच करें और हिंदू मूर्तियों या धर्म ग्रंथों से जुड़े सभी तथ्यों और साक्ष्यों की जांच पड़ताल करे. हाईकोर्ट इस मामले की दस मई को सुनवाई करेगी. डॉ. रजनीश कहते हैं की वह हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट और फिर जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर जाएंगे.
फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के गठन की मांग
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल याचिका में मांग की गई है कि केंद्र व राज्य सरकार तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ताजमहल के संबंध में एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाकर उसका अध्ययन करे. अध्ययन के उपरांत रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए. याचिका में इतिहासकार पीएन ओक की किताब ताजमहल का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है जिसका निर्माण 1212 एडी में राजा परमार्दी देव द्वारा कराया गया था.
आगे कहा गया है कि बाद में जयपुर के महाराजा मानसिंह ने इसका संरक्षण किया. यह भी कहा गया है कि मुगल शासक शाहजहां ने मानसिंह से इस महल को हड़प लिया था. याचिका में यह भी दावा किया गया है कि माना जाता है कि ताजमहल के बंद दरवाजों के भीतर भगवान शिव का मंदिर है. याचिका में अयोध्या के जगद्गुरू परमहंस के वहां जाने व उन्हें उनके भगवा वस्त्रों के कारण रोके जाने सम्बंधी हालिया विवाद का भी जिक्र किया गया है. 1951 और 1958 में बने कानूनों जिनसे ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला व आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था, उन्हें संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग याचिका में की गई है.
सात साल पहले भी उठी थी मांग
लखनऊ निवासी हरीशंकर जैन और अधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ ने सन् 2015 में सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में ताजमहल को श्री अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजोमहालय मंदिर घोषित करने की मांग की गई थी. याचिका में बटेश्वर में मिले राजा परमार्दिदेव के शिलालेख को आधार बनाया गया था मगर सन 2017 में एएसआई ने प्रतिवाद पत्र दाखिल करके ताजमहल को शिव मंदिर या तेजो महालय होने से इनकार कर दिया था. तब एएसआई ने ताजमहल को राजा जयसिंह की संपत्ति होना बताया था. इस बारे में अधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ बताते हैं कि जिला जज ने हमारी याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद रिवीजन के लिए याचिका दायर की गई थी. ताजमहल के बंद हिस्सों की वीडियोग्राफी कराने से संबंधित याचिका एडीजे पांच के यहां अभी भी विचाराधीन है.
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि ताजमहल के मुख्य मकबरे व चमेली फर्श के नीचे 22 कमरे बने हैं जो अस्थाई तौर पर बंद हैं. इन्हें एएसआई अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी ही देख सकते हैं. यमुना किनारे की ओर चमेली फर्श पर बेसमेंट में नीचे जाने को दो जगह सीढ़ियां हैं जो लोहे के जाल से कवर हैं. इन्हें ताला लगाकर बंद कर दिया गया है जबकि आज से 40 से 45 वर्ष पहले सीढ़ियों से नीचे जाने का रास्ता व कमरे खुले थे मगर अब बंद हैं इसलिए ताज का राज सबके सामने आना चाहिए. इसकी सरकार निष्पक्ष जांच कराए.
'ट्रू स्टोरी आफ ताज' किताब से उठा विवाद
बता दें कि ताजमहल या तेजोमहालय का विवाद इतिहासकार पीएन ओक की किताब 'ट्रू स्टोरी आफ ताज' के बाद शुरू हुआ है. पीएन ओक ने अपनी किताब में ताजमहल के शिव मंदिर होने से संबंधित कई दावे किए हैं. पीएन ओक ने अपनी किताब में कई ऐसे तथ्य दिए हैं जो उस समय के राजा जयसिंह के फरमानों के आधार पर हैं.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप