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दुर्गा पूजा पर अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग

यूपी के अयोध्या समेत पूरे देश में नवरात्रि मनाई जाती है. जिले में नवरात्रि की तैयारी जोरों से चल रही है. अयोध्या में इन दिनों कोलकाता स्वरूप मां काली और दुर्गा की प्रतिमाओं की बिक्री बढ़ गई है.

अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग.
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Published : Sep 26, 2019, 10:30 AM IST

अयोध्या: देश भर में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. 29 सितंबर से नवरात्रि शुरू हो रही है, जिसकी तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं. मां दुर्गा, मां काली और समस्त नव दुर्गाओं की नवरात्रि में नौ दिन तक लगातार पूजा होती है. इन दिनों में कन्याओं की पूजा कर लोग मां दुर्गा के नौ रूपों को देखते हैं.

अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग.


पूरे देश में कोलकाता की मां काली और दुर्गा की पूजा इतनी मशहूर है कि सभी जगहों पर अब कोलकाता की दुर्गा स्वरूप की मूर्तियां दिखने लगी हैं. ऐसा ही एक नजारा अयोध्या में भी दिखने को मिल रहा है. अयोध्या में इन दिनों कोलकाता स्वरूप मां काली और दुर्गा की प्रतिमाओं की बिक्री बढ़ गई है.


ईटीवी भारत ने कारीगर से की बातचीत-
करीगर शिबू ने बताया कि हम लोगों की पसंद के हिसाब से मूर्तियां तैयार करते हैं. जो लोग जैसा फोटो लेकर आते हैं, जैसा बताते हैं हम उन्हें वैसा मूर्ति बना कर देते हैं. इन दिनों ज्यादातर फोटोज हमारे पास कोलकाता में बनाई जाने वाली मूर्तियों की आ रही है.

पढ़ें:- हमीरपुर: अराजक तत्वों ने तोड़ी दुर्गा मूर्ति, भड़के ग्रामीण

उन्होंने बताया कि हम लोग लगभग 10 से 15 रंगों का इस्तेमाल करते हैं. इन रंगों का एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाने का इंतजार करना होता है. एक रंग के ऊपर दूसरे रंग के चढ़ने में लगभग 13 से 14 घंटे का समय लगता है. वहीं मां दुर्गा की आंखों में तीन प्रकार के रंगों का इस्तेमाल होता है, जिससे उन्हें देखते ही एक प्राकृतिक ऊर्जा संचारित होती है.


मूर्ति बनाने में करते हैं प्राकृतिक रंगों का उपयोग-
इस वक्त हम लोग लगभग 50 से ज्यादा छोटी बड़ी मूर्तियों की ऑर्डर्स ले चुके हैं. इन सभी मूर्तियों में हम प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है. इसमें किसी प्रकार का हम लोग केमिकल इस्तेमाल नहीं करते हैं. मूर्ति बनाने में प्रयोग की जाने वाली पुआल और लकड़िया इतनी हल्की होती है और ऐसे पेड़ से काटी जाती है, जिसके जलने के बाद कार्बन बहुत कम मात्रा में निकलता है.


वहीं मूर्तियों को बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिट्टी को लेकर बताया कि यह मिट्टी हर जगह उपलब्ध नहीं होती. आस-पास के गांवों में जाते हैं. वहां की मिट्टी को देखते हैं, चेक करते हैं तब जाकर हमें वह मिट्टी मिल पाती है, जिससे मां की प्रतिमा को एक रूप दिया जा सके.

अयोध्या: देश भर में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. 29 सितंबर से नवरात्रि शुरू हो रही है, जिसकी तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं. मां दुर्गा, मां काली और समस्त नव दुर्गाओं की नवरात्रि में नौ दिन तक लगातार पूजा होती है. इन दिनों में कन्याओं की पूजा कर लोग मां दुर्गा के नौ रूपों को देखते हैं.

अयोध्या में कोलकाता मॉडल मूर्तियों की मांग.


पूरे देश में कोलकाता की मां काली और दुर्गा की पूजा इतनी मशहूर है कि सभी जगहों पर अब कोलकाता की दुर्गा स्वरूप की मूर्तियां दिखने लगी हैं. ऐसा ही एक नजारा अयोध्या में भी दिखने को मिल रहा है. अयोध्या में इन दिनों कोलकाता स्वरूप मां काली और दुर्गा की प्रतिमाओं की बिक्री बढ़ गई है.


ईटीवी भारत ने कारीगर से की बातचीत-
करीगर शिबू ने बताया कि हम लोगों की पसंद के हिसाब से मूर्तियां तैयार करते हैं. जो लोग जैसा फोटो लेकर आते हैं, जैसा बताते हैं हम उन्हें वैसा मूर्ति बना कर देते हैं. इन दिनों ज्यादातर फोटोज हमारे पास कोलकाता में बनाई जाने वाली मूर्तियों की आ रही है.

पढ़ें:- हमीरपुर: अराजक तत्वों ने तोड़ी दुर्गा मूर्ति, भड़के ग्रामीण

उन्होंने बताया कि हम लोग लगभग 10 से 15 रंगों का इस्तेमाल करते हैं. इन रंगों का एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाने का इंतजार करना होता है. एक रंग के ऊपर दूसरे रंग के चढ़ने में लगभग 13 से 14 घंटे का समय लगता है. वहीं मां दुर्गा की आंखों में तीन प्रकार के रंगों का इस्तेमाल होता है, जिससे उन्हें देखते ही एक प्राकृतिक ऊर्जा संचारित होती है.


मूर्ति बनाने में करते हैं प्राकृतिक रंगों का उपयोग-
इस वक्त हम लोग लगभग 50 से ज्यादा छोटी बड़ी मूर्तियों की ऑर्डर्स ले चुके हैं. इन सभी मूर्तियों में हम प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है. इसमें किसी प्रकार का हम लोग केमिकल इस्तेमाल नहीं करते हैं. मूर्ति बनाने में प्रयोग की जाने वाली पुआल और लकड़िया इतनी हल्की होती है और ऐसे पेड़ से काटी जाती है, जिसके जलने के बाद कार्बन बहुत कम मात्रा में निकलता है.


वहीं मूर्तियों को बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिट्टी को लेकर बताया कि यह मिट्टी हर जगह उपलब्ध नहीं होती. आस-पास के गांवों में जाते हैं. वहां की मिट्टी को देखते हैं, चेक करते हैं तब जाकर हमें वह मिट्टी मिल पाती है, जिससे मां की प्रतिमा को एक रूप दिया जा सके.

Intro:अयोध्या. देशभर में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाने की तैयारियां चल रही है यह पर्व सिर्फ एक त्यौहार नहीं है बल्कि एक पवित्र महीने से भी कहीं ज्यादा बड़ा है क्योंकि मां दुर्गा मां काली और समस्त नव दुर्गाओं में सभी की 9 दिन तक लगातार पूजा होती है और इसे पर्व इसलिए भी कहा गया है क्योंकि इस पूजा के दौरान लो हर्षोल्लास से खुशियां बांटते हैं खुशी मनाते हैं, जयकारे लगाते हुए मां के सामने उनके आने की और इसके नव दिन तक खुशियों से भर देने की कामना करते हैं।
इन दिनों में कन्याओं को पूजा करके उन्हें पूजन कराते हैं इन कन्याओं में लोग मां दुर्गा के नौ रूपों को देखते हैं।
भारत में यह प्रथा बहुत पुरानी है पूरे देश में कोलकाता की मां काली और दुर्गा की पूजा इतनी मशहूर है कि सभी जगहों पर अब कोलकाता दुर्गा स्वरूप की मूर्तियां दिखने लगी है ऐसा ही एक नजारा अयोध्या में भी दिखा अयोध्या में इन दिनों कोलकाता स्वरूप मां काली और दुर्गा की प्रतिमाओं की बिक्री बढ़ गई है ईटीवी भारत विशेष बातचीत के दौरान बंगाल से आए कारीगरों की एक टीम ने बताया कि,
हम लोगों की पसंद के हिसाब से मूर्तियां तैयार करते हैं, जो फोटो लेकर आते हैं, जैसा बताते हैं हम उन्हें वैसा बना कर दे देते हैं, इन दिनों ज्यादातर फोटोज हमारे पास कोलकाता में बनाई जाने वाली मूर्तियों की तरह ही आती है।


Body:रंगो से मां दुर्गा के स्वरूप को निखारने वाले कार्य करने बताया कि हम लोग लगभग 10 से 15 रंगों का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें बहुत सावधानी से एक दूसरे के ऊपर चरण जाने तक का इंतजार करना होता है एक रंग के ऊपर दूसरे रंग के चढ़ने में लगभग 13 से 14 घंटे का समय लगता है वही मां दुर्गा की आंखों में तीन प्रकार के रंगों का इस्तेमाल होता है जिससे उन्हें देखते ही एक प्राकृतिक उर्जा संचारित होती है।

इस वक्त हम लोग करीब 4 दर्जन से ज्यादा छोटी बड़ी मूर्तियों की ऑर्डर्स ले चुके हैं इन सभी मूर्तियों में हम प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं जिससे पानी पढ़ते ही यह किसी प्रकार का प्राकृतिक नुकसान नहीं करते हैं पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है। इसमें किसी प्रकार का हम लोग केमिकल इस्तेमाल नहीं करते हैं मछलियों के पेट में जाने पर यह उन्हें भी नुकसान नहीं करता है।
पानी के साथ रंग मिल जाने पर यह पानी को दूषित नहीं करता है। जिससे पर्यावरण बचा रहता है, इस में प्रयोग की जाने वाली पुआल और लकड़िया इतनी हल्की होती है और ऐसे पेड़ से काटी जाती है, जिसके जलने के बाद कारबन बहुत कम मात्रा में निकलता है हम प्राकृतिक का इस्तेमाल प्रकृति के तरीके से करते हैं।

वही मूर्तियों को बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिट्टी को लेकर के बताया गया कि यह मिट्टी हर जगह उपलब्ध नहीं होती इसके लिए हम सीजन से पहले ही 45 शहरों में मिट्टी तलाशते हैं आसपास के दर्जनों गांव में जाते हैं वहां की मिट्टी को देखते हैं चेक करते हैं तब जाकर हमें वह मिट्टी मिल पाती है जिससे मां की प्रतिमा को एक रुप दिया जा सके।


Conclusion:dinesh mishra
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