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श्रीराम जन्मभूमि परिसर में मिले स्तंभ-शिलाएं प्राचीन राम मंदिर के प्रमाण: आचार्य सत्येंद्र दास

श्रीराम जन्मभूमि परिसर में वर्ष 1902 में स्थापित एक शिलापट को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. श्रीराम जन्मभूमि परिसर में मिल रहे अवशेषों को रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र ने प्राचीन राम मंदिर का बताया है. उन्होंने कहा है कि ये कसौटी के खंभे, शिलापट और अन्य प्राचीन अवशेष सभी भगवान राम के जन्म स्थान को दर्शाते हैं.

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Published : Aug 22, 2020, 7:36 PM IST

अयोध्या: श्रीराम जन्मभूमि परिसर में वर्ष 1902 में स्थापित एक शिलापट को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस स्तंभ से एक निश्चित दूरी पर वह स्थल है, जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया है. अयोध्या तीर्थ विवेचनी महासभा द्वारा स्थापित इस स्तंभ को ट्रस्ट ने उसके मूल स्थान से न हटाने का निर्णय लिया है. वहीं श्रीराम जन्मभूमि परिसर में मिल रहे अवशेषों को रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र ने प्राचीन राम मंदिर का बताया है. उन्होंने कहा है कि ये कसौटी के खंभे, शिलापट और अन्य प्राचीन अवशेष सभी भगवान राम के जन्म स्थान को दर्शाते हैं.

मीडिया से बातचीत करते आचार्य सत्येंद्र दास.

अयोध्या में भगवान राम के मूल जन्म स्थान से कुछ दूर पर एक शिलापट स्थापित किया गया है. इस शिलापट के करीब कसौटी का एक स्तंभ है. स्तंभ के पास स्थित शिलापट को अयोध्या तीर्थ क्षेत्र की परिधि नापने के लिए एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा द्वारा स्थापित किया गया था. इस शिलापट और स्तंभ का जिक्र अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्णय में भी है. इस स्तंभ से ठीक पश्चिम दिशा में 30 मीटर दूर भगवान राम का जन्म स्थान है, जहां पर गत 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का अनुष्ठान संपन्न किया था.

कसौटी के खंभे और शिलापट के महत्व को देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने आस-पास की जमीन का समतलीकरण तो कर दिया है, लेकिन इस स्थल को यथावत रखा है. भगवान राम के जन्म स्थान से ठीक पूरब दिशा में 30 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल एक टीले जैसा दिखता है. इस स्थल पर कसौटी के काले कलर के खंभे के साथ एक शिलापट स्थापित है. कहा जा रहा है कि राम मंदिर ट्रस्ट ने भी फिलहाल इस स्थल से स्तंभ और शिलापट को न हटाने का निर्णय लिया है. यह स्थल भगवान राम का जन्म स्थान होने को प्रमाणित करता है. पत्थर पर स्पष्ट शब्दों में जन्मभूमि लिखा गया है. इस शिलापट को अभी नहीं हटाया गया है, जबकि राम जन्मभूमि परिसर में निर्माण स्थल और उसके आसपास का समतलीकरण होने के बाद पूरी तरह परिसर का नवीनीकरण हो चुका है.

अवशेषों से होगा मंदिर की प्राचीनता की स्थिति का आभास

रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि श्रीराम जन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के दौरान जो भी अवशेष मिले हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण और हमारी प्राचीनता के प्रतीक हैं. इससे हमें ज्ञान होता है कि जो अवशेष मिल रहे हैं, वे प्राचीन मंदिर के हैं. रामलला पहुंचने वाले श्रद्धालु इन अवशेषों को देखकर भगवान राम के जन्म स्थान पर प्राचीन मंदिर होने के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे. इससे उन्हें राम मंदिर की प्राचीनता की स्थिति का आभास होगा. कसौटी के खंभे शिवलिंग और समतलीकरण के दौरान जो अन्य वस्तुएं निकली हैं, वे सभी प्राचीनता के बोधक हैं. जितना महत्वपूर्ण रामलला का दर्शन है, उससे कम महत्व के अवशेषों का दर्शन नहीं हैं. ये अवशेष राम मंदिर के हैं, जिसे देखकर लोग आकर्षित होते थे. श्रीराम जन्मभूमि में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि रामलला के दर्शन करने के साथ श्रद्धालु प्राचीन मंदिर के अवशेषों का भी दर्शन कर सकें.

श्री रामलला विराजमान स्थल को चिन्हित करता है शिलापट

रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है कि श्रीराम जन्मभूमि में स्थापित शिलापट श्री रामलला विराजमान स्थल को चिन्हित करता है. उन्होंने बताया कि अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा द्वारा राम जन्म स्थान को चिन्हित किया गया था. बीते 9 नवंबर 2019 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी इस शिलापट का जिक्र है. यह भगवान राम के जन्म स्थान होने का प्रमाण देता है, जिसके चलते शिलापट और उसके पास स्थित खंभे को अब तक नहीं हटाया गया. इस शिलापट से ठीक 20 फीट की दूरी पर भगवान राम का जन्म स्थान है. इसी स्थान पर भूमि पूजन किया गया है. इसलिए अभी तक इस शिलापट को नहीं हटाया जा सका है.

सभी अवशेषों को सुरक्षित रखा जाएगा

आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि राम जन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के दौरान मिल रहे सभी अवशेषों को सुरक्षित रखा जाएगा. भगवान राम के जन्म स्थान के पास मिला 24 कसौटी का खंभा अभी यथावत स्थिति में है. यहीं से भगवान राम के जन्म स्थान और 84 कोसी अयोध्या तीर्थ की परिक्रमा की परिधि का निर्धारण किया जाता है. ऐसे में यह स्तंभ बेहद महत्वपूर्ण है.

अयोध्या: श्रीराम जन्मभूमि परिसर में वर्ष 1902 में स्थापित एक शिलापट को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस स्तंभ से एक निश्चित दूरी पर वह स्थल है, जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया है. अयोध्या तीर्थ विवेचनी महासभा द्वारा स्थापित इस स्तंभ को ट्रस्ट ने उसके मूल स्थान से न हटाने का निर्णय लिया है. वहीं श्रीराम जन्मभूमि परिसर में मिल रहे अवशेषों को रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र ने प्राचीन राम मंदिर का बताया है. उन्होंने कहा है कि ये कसौटी के खंभे, शिलापट और अन्य प्राचीन अवशेष सभी भगवान राम के जन्म स्थान को दर्शाते हैं.

मीडिया से बातचीत करते आचार्य सत्येंद्र दास.

अयोध्या में भगवान राम के मूल जन्म स्थान से कुछ दूर पर एक शिलापट स्थापित किया गया है. इस शिलापट के करीब कसौटी का एक स्तंभ है. स्तंभ के पास स्थित शिलापट को अयोध्या तीर्थ क्षेत्र की परिधि नापने के लिए एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा द्वारा स्थापित किया गया था. इस शिलापट और स्तंभ का जिक्र अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्णय में भी है. इस स्तंभ से ठीक पश्चिम दिशा में 30 मीटर दूर भगवान राम का जन्म स्थान है, जहां पर गत 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का अनुष्ठान संपन्न किया था.

कसौटी के खंभे और शिलापट के महत्व को देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने आस-पास की जमीन का समतलीकरण तो कर दिया है, लेकिन इस स्थल को यथावत रखा है. भगवान राम के जन्म स्थान से ठीक पूरब दिशा में 30 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल एक टीले जैसा दिखता है. इस स्थल पर कसौटी के काले कलर के खंभे के साथ एक शिलापट स्थापित है. कहा जा रहा है कि राम मंदिर ट्रस्ट ने भी फिलहाल इस स्थल से स्तंभ और शिलापट को न हटाने का निर्णय लिया है. यह स्थल भगवान राम का जन्म स्थान होने को प्रमाणित करता है. पत्थर पर स्पष्ट शब्दों में जन्मभूमि लिखा गया है. इस शिलापट को अभी नहीं हटाया गया है, जबकि राम जन्मभूमि परिसर में निर्माण स्थल और उसके आसपास का समतलीकरण होने के बाद पूरी तरह परिसर का नवीनीकरण हो चुका है.

अवशेषों से होगा मंदिर की प्राचीनता की स्थिति का आभास

रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि श्रीराम जन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के दौरान जो भी अवशेष मिले हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण और हमारी प्राचीनता के प्रतीक हैं. इससे हमें ज्ञान होता है कि जो अवशेष मिल रहे हैं, वे प्राचीन मंदिर के हैं. रामलला पहुंचने वाले श्रद्धालु इन अवशेषों को देखकर भगवान राम के जन्म स्थान पर प्राचीन मंदिर होने के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे. इससे उन्हें राम मंदिर की प्राचीनता की स्थिति का आभास होगा. कसौटी के खंभे शिवलिंग और समतलीकरण के दौरान जो अन्य वस्तुएं निकली हैं, वे सभी प्राचीनता के बोधक हैं. जितना महत्वपूर्ण रामलला का दर्शन है, उससे कम महत्व के अवशेषों का दर्शन नहीं हैं. ये अवशेष राम मंदिर के हैं, जिसे देखकर लोग आकर्षित होते थे. श्रीराम जन्मभूमि में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि रामलला के दर्शन करने के साथ श्रद्धालु प्राचीन मंदिर के अवशेषों का भी दर्शन कर सकें.

श्री रामलला विराजमान स्थल को चिन्हित करता है शिलापट

रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है कि श्रीराम जन्मभूमि में स्थापित शिलापट श्री रामलला विराजमान स्थल को चिन्हित करता है. उन्होंने बताया कि अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा द्वारा राम जन्म स्थान को चिन्हित किया गया था. बीते 9 नवंबर 2019 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी इस शिलापट का जिक्र है. यह भगवान राम के जन्म स्थान होने का प्रमाण देता है, जिसके चलते शिलापट और उसके पास स्थित खंभे को अब तक नहीं हटाया गया. इस शिलापट से ठीक 20 फीट की दूरी पर भगवान राम का जन्म स्थान है. इसी स्थान पर भूमि पूजन किया गया है. इसलिए अभी तक इस शिलापट को नहीं हटाया जा सका है.

सभी अवशेषों को सुरक्षित रखा जाएगा

आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि राम जन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के दौरान मिल रहे सभी अवशेषों को सुरक्षित रखा जाएगा. भगवान राम के जन्म स्थान के पास मिला 24 कसौटी का खंभा अभी यथावत स्थिति में है. यहीं से भगवान राम के जन्म स्थान और 84 कोसी अयोध्या तीर्थ की परिक्रमा की परिधि का निर्धारण किया जाता है. ऐसे में यह स्तंभ बेहद महत्वपूर्ण है.

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