अमेठी : सुलतानपुर में यूपी एसटीएफ ने इनामी बदमाश विनोद उपाध्याय को शुक्रवार की तड़के ढेर कर दिया. विनोद के कई आपराधिक कारनामे फिर से सुर्खियों में आ गए हैं. एक दौर में विनोद उपाध्याय माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का विकल्प बनना चाहता था. उसने राजनीतिक सरंक्षण लेने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाया. एक थप्पड़ का बदला लेने के लिए उसने बीच सड़क पर गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी. पुलिस उस पर लगातार मुकदमे और इनाम की रकम में बढ़ोतरी कर रही थी.
एक थप्पड़ के बदले कर दी थी हत्या : गोरखपुर के धर्मशाला बाजार क्षेत्र में रहने वाले और अयोध्या के मूल निवासी विनोद उपाध्याय की धमक श्रीप्रकाश शुक्ल की हत्या के बाद से दिखने लगी थी. वह श्रीप्रकाश शुक्ला के विकल्प के रूप में पूर्वांचल पर राज करना चाहता था. साल 2004 में दिसंबर में उसे गोरखपुर जेल में बंद रहने के दौरान नेपाल के अपराधी जीत नारायण मिश्र ने थप्पड़ मारा था. इसी दौरान विनोद उपाध्याय भी जेल में था. उस दौरान वह छात्र नेता के तौर पर भी जाना जाता था. खाने की टेबल पर हुए झगड़े में जीत नारायण ने उसे थप्पड़ मारा था. आठ माह बाद जेल से निकलने के बाद साल 2005 में संतकबीरनगर में विनोद ने जीत नारायण को गोलियों से भून दिया था. जीत नारायण का बहनोई गोरेलाल भी इस घटना में मारा गया था. इस कांड ने पूर्वांचल की धरती पर एक और माफिया को जन्म दे दिया था.
सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था : वर्ष 2001 से छात्र जीवन में ही विनोद ने अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था. विनोद ने विश्वद्यालय में खुद चुनाव लड़ने से बेहतर दूसरों को लड़ाना सही समझा. वह अपने उम्मीदवार उतरता था और फिर उन्हें जितवा भी लेता. उसने 2002 में एक उम्मीदवार जितवाया जबकि 2004 में उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सका. विनोद उपाध्याय को छात्रों का जमकर साथ मिलता था. इसी के दम पर वह रोबिन हुड बना फिरता था. वह धीरे-धीरे ठेकेदारी में हाथ आजमाने लगा. इसी दौरान उसका हिंदू युवा वाहिनी के नेता सुशील सिंह से ठेके को लेकर विवाद हो गया. विनोद ने गोरखपुर शहर में सुशील सिंह को सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था.
गैंगवार में गई दोस्तों की जान का लिया बदला : विनोद उपाध्याय चर्चा में तब और आया जब वर्ष 2007 में गोरखपुर के सिविल लाइंस में विनोद और लालबहादुर गैंग के बीच गैंगवार हुई थी. दोनों ही ओर से सैकड़ों फायरिंग हुई. इसमें विनोद के खासम खास रिपुंजय राय और सत्येंद्र की मौत हो गई. विनोद उपाध्याय की ओर से दर्ज एफआईआर में अजीत शाही, संजीव सिंह समेत छह लोगों को आरोपी बनाया गया. बताया जाता है कि यह गैंगवार भले ही विनोद व लाल बहादुर के बीच हुआ लेकिन विनोद को ठिकाने लगाने के लिए कई बड़े चेहरे लाल बहादुर को बैकअप दे रहे थे. यही वजह थी कि पुलिस ने इस मामले में लाल बहादुर को आरोपी नहीं बनाया था. ऐसे में सात वर्ष बाद विनोद ने अपने दो साथियों की मौत का बदला खुद लिया. मई 2014 को विनोद ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के गेट पर लाल बहादुर की गोली मार कर हत्या कर दी.
लखनऊ से लेकर गोरखपुर में दर्ज हैं 35 मुकदमे : इस कांड के बाद तो मानो विनोद यूपी के टॉप माफिया की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवाने में आमादा था. वर्ष 2007 में ही लखनऊ आकार हत्याकांड को अंजाम दिया. हजरतगंज कोतवाली में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. वर्ष 2007 में विनोद उपाध्याय बसपा से गोरखपुर सदर की सीट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा. गोरखपुर व संतकबीर नगर में कुल 35 मुकदमे दर्ज हो गए. आखिरी बार विनोद 17 जुलाई 2020 को लखनऊ के गोमती नगर से गिरफ्तार हुआ था. इसके बाद जमानत पर बाहर आया और फिर मई 2023 को दर्ज एक रंगदारी के मामले में विनोद फरार हो गया. गोरखपुर जोन के एडीजी अखिल कुमार ने उसके ऊपर एक लाख का इनाम घोषित कर रखा था.
हिंदू युवा वाहिनी के नेता को अगवा कर पीटा था : गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी के नेता सुशील सिंह को अगवा कर पीटने का भी आरोप विनोद पर लगा था. जिसे लेकर बतौर सांसद रहते हुए योगी आदित्यनाथ ने पुलिस प्रशासन पर गम्भीर आरोप भी लगाए थे. विनोद उपाध्याय 2022 की शुरुआत में 25 हजार रुपये का इनामी था, लेकिन साल भर में उस पर इनाम को बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया था. वह प्रदेश के टॉप 61 माफियाओं में शुमार था. इस लिस्ट में विनोद के चार साथी भी शामिल हैं. पिछले एक साल में विनोद पर जालसाजी और रंगदारी के गुलरिहा, शाहपुर, रामगढ़ताल थाने में आठ केस दर्ज हुए. गैंगेस्टर में कोर्ट से एनबीडब्लू पर पुलिस को विनोद की तलाश भी थी. पिछले दिनों गोरखपुर विकास प्राधिकरण की तरफ से विनोद के अवैध निर्माण पर बुलडोजर भी चला था.
जमीन कब्जा और रंगदारी था मुख्य धंधा : विनोद का मुख्य धंधा रंगदारी और विवादित जमीनों पर कब्जा करने का था. योगी सरकार के आने के बाद उस पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया गया. खोआ मंडी गली में एक जमीन को लेकर सीएम योगी ने पुलिस को जमकर फटकार भी लगाई थी. चंद मिनटों में भी विनोद के कब्जे से जमीन को मुक्त किया गया था. योगी सरकार में विनोद पर लगातार केस दर्ज हो रहे थे, लेकिन वह सरेंडर करने को तैयार नहीं था. योगी के सत्ता में आने पर विनोद ने जमानत निरस्त कराकर सरेंडर किया था, लेकिन चंद दिनों बाद भी जेल से निकल कर पुलिस के निशाने पर आ गया.
यह भी पढ़ें : गोरखपुर के गैंगस्टर विनोद उपाध्याय को यूपी एसटीएफ ने सुलतानपुर में किया ढेर, एक लाख रुपए का था इनाम