अंबेडकरनगरः जनपद में स्वास्थ व्यवस्था को लेकर शासन के दावे और जमीनी हकीकत एक-दूसरे के विपरीत नजर आ रहे हैं. शासन के दावों के बावजूद राजकीय मेडिकल कॉलेजों में दवाओं की किल्लत बढ़ रही है. इमरजेंसी की महत्वपूर्ण दवाएं या तो खत्म हैं या फिर न के बराबर हैं. इमरजेंसी में दवाओं की उपलब्धता न होने के कारण मरीजों को जरूरी दवाओं के लिए बाहर भटकना पड़ता है. इन दवाओं को मरीजों के परिजन महंगे दामों पर खरीदने के लिए मजबूर हैं.
प्रदेश में योगी के दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ व्यवस्था की कमान डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को सौंपी गई है. ब्रजेश पाठक ने कोरोना काल में पत्र लिखकर स्वास्थ व्यवस्था पर बड़ा सवाल उठाया था. इसलिए इस बार ब्रजेश पाठक के मंत्री बनने के बाद लोगों को स्वास्थ व्यवस्था को लेकर काफी उम्मीदें हैं. सरकार के कई बड़े दावों के अनुसार, स्वास्थ व्यवस्था में सुधार होगा. लेकिन, शासन के ये दावे जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं. सीएचसी, पीएचसी की बात ही छोड़िए अंबेडकरनगर में महामाया राजकीय एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज में ही दवाओं की भारी कमी है.
अस्पतालों में मरीज चाहे सामान्य हों, ओपीडी के हों या फिर इमरजेंसी के सभी को दवा की समस्या से जूझना पड़ रहा है. शासन और कॉलेज प्रशासन की तरफ से इमरजेंसी सेवा में पर्याप्त दवा होने का दावा किया जाता है. लेकिन, वास्तव में इमरजेंसी में दवा न के बराबर मिल रही है. मरीज शहनाज बानो के तीमारदार का कहना है कि उसको नेबुलाइजेसन, लैक्सिस और डोबुटामिन इंजेक्शन की जरूरत थी. लेकिन, यहां कोई दवा नहीं मिली. जबकि, एक अन्य तीमारदार अमित का कहना है कि उसे नेबुलाइजेशन की जरूरत थी. लेकिन, उसे बाहर से ही लाना पड़ा.
राजकीय मेडिकल कॉलेज प्रशासन वैसे तो दवाओं की उपलब्धता का दावा करता है. लेकिन, कॉलेज के विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इमरजेंसी सेवा में नेबुलाइजेशन मशीन उपलब्ध नहीं है. यहां एंड्रीनैलिन इंजेक्शन, लैक्सिस इंजेक्शन, पैंटो प्राडोल इंजेक्शन, ट्रामाडाल इंजेक्शन, डोपामिन इंजेक्शन, डोबुटामिन इंजेक्शन, नार एड्री नैलिन इंजेक्शन, एप्सोलिन इंजेक्शन का अभाव है. सूत्र बताते हैं कि मरीज विशेष को छोड़कर अन्य लोगों को ये दवाएं बाहर से ही लानी पड़ती हैं. दिन में तो मरीजों को दवा बाहर से मिल जाती है. लेकिन, रात्रि के समय काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
शासन के दावों और जमीनी हकीकत में इतना अंतर क्यों है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यह सामने आया कि यहां आंकड़ों में खेल कर वाहवाही ली जाती है. शासन की नजरों में अच्छा बने रहने के लिए यहां के जिम्मेदार अपने अधिनस्थों से यह रिपोर्ट करवाते हैं कि यहां सब ठीक-ठाक है. यहां यह दिखाया जाता है कि सभी मरीजों को अंदर से दवा मिलती है. इसके के लिए एक खेल खेला जाता है. जानकार बताते हैं कि मांग के अनुरूप इमरजेंसी सेवा को दवा नहीं मिलती. जितनी डिमांड होती है, उसके आधे से भी कम दवा मिलती है. कभी-कभी तो मांग के कई दिन बाद बहुत कम मात्रा में दवा दी जाती है. ऐसा करने से यह दिखाया जाता है कि हमारे यहां दवा की कोई कमी नहीं है. लेकिन, यहां धरातल की हकीकत इसके उलट है.
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इस बारे में जब कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. संदीप कौशिक से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके दोनों ही नंबरों पर बात नहीं हो पाई. जब उनके कार्यालय से संपर्क किया गया तो पता चला कि वे शुक्रवार को कहीं बाहर चले गए हैं. जब उनके वाट्सऐप पर मैसेज भेजकर दवाओं की कमी के बारे में जानने की कोशिश की गई तो उनका कोई जवाब नहीं आया. वहीं, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनोज कुमार गुप्ता का कहना है कि बीच में कुछ दवाओं की समस्या हुई थी. लेकिन, अब नहीं है. यदि मरीज को दवा बाहर से लेनी पड़ रही है तो वे इसे दिखवाएंगे कि ऐसा क्यों है.
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